श्रीनगर
जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने के बाद पहली बार राज्य में ब्लॉक स्तर पर चुनाव कराने का काम शुरू हो गया है। राज्य में निर्वाचन आयोग ने 24 अक्टूबर को बीडीसी चुनने के लिए वोटिंग कराने का फैसला किया है। लेकिन असल हकीकत में जिन सरपंचों के माध्यम से इन बीडीसी का चुनाव होना है, कई इलाकों में उनकी 90 फीसदी से ज्यादा सीटें खाली पड़ी हुई हैं। राज्य में पंचायत चुनावों के दौरान मुख्य राजनीतिक पार्टियों और अन्य लोगों द्वारा इसका बहिष्कार किए जाने के कारण ऐसी स्थितियां बनी हैं।
कश्मीर घाटी के 10 जिलों में सरपंच और पंच के कुल 19578 पद हैं जिनमें से सिर्फ 7029 सीटों पर ही प्रतिनिधि चुने गए हैं। इसका मतलब है कि बीडीसी चुनाव में जिन वोटरों को अपने वोट देने हैं, उसमें से 64 फीसदी वोटर नदारद हैं। सबसे बुरी स्थिति घाटी के दो शहरों पुलवामा और शोपियां में है, जहां पंचायत की 90 फीसदी से अधिक सीटें खाली हैं। पुलवामा में पंचायत के 1710 पदों में से सिर्फ 132 पदों पर ही प्रतिनिधि मौजूद हैं। इसके अलावा शोपियां में 889 पदों के सापेक्ष सिर्फ 82 पदों पर ही प्रतिनिधियों का चुनाव हो सका है। इस तरह बीडीसी चुनाव के दौरान पुलवामा में 92.3 और शोपियां में 90.8 फीसदी वोटर वोट डालने के लिए मौजूद नहीं होंगे।
जम्मू और लद्दाख में बेहतर हालात
शोपियां और पुलवामा के अलावा दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले में भी स्थितियां ऐसी ही हैं। कुलगाम में भी पंचायत के 89 फीसदी से अधिक पद रिक्त हैं। वोटरों की कम संख्या की समस्या सिर्फ कश्मीर घाटी की ही है। भले ही घाटी के जिलों में पंचायत के 90 फीसदी तक पद रिक्त हों, लेकिन जम्मू और लद्दाख में यह संख्या क्रमश: 1.6 पर्सेंट और 2.8 पर्सेंट ही है। कश्मीर में बीते दिनों हुए पंचायत चुनाव में पीडीपी और नैशनल कॉन्फ्रेंस के बायकॉट करने के कारण अन्य राजनीतिक दलों को दक्षिण कश्मीर समेत अन्य जिलों में चुनाव प्रत्याशी ही नहीं मिल सके। इस कारण प्रदेश की तमाम पंचायत सीटें प्रत्याशियों के ना होने के कारण खाली रह गईं।
चुनाव में नेतृत्व के अभाव की स्थिति
कश्मीर में बीडीसी के लिए हो रहे चुनाव में एक स्थिति नेतृत्व की कमी की भी है। राज्य की मेनस्ट्रीम पार्टियों के नेता फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला फिलहाल पुलिस हिरासत में ही हैं। भले ही बीजेपी के नेता और जम्मू-कश्मीर प्रशासन घाटी में किसी भी प्रकार की पाबंदी ना होने की बात कह रहा हो, लेकिन फिलहाल यह सभी नेता पुलिस की कस्टडी में ही हैं। गुरुवार को ही जम्मू-कश्मीर सरकार के एक सलाहकार ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि राज्य में सियासी लोगों को एक क्रम में रिहा किया जा रहा है, जिससे की कानून व्यवस्था की स्थितियां बरकरार रहें। प्रशासन के इस कदम एवं बीडीसी चुनाव पर प्रमुख दलों ने कहा कि यह सीधे तौर पर लोकतंत्र का मजाक बनाने जैसा है, वहीं बीजेपी ने सरकार के कदम का स्वागत किया है।