![Every fifth person in the world will speak Hindi by 2030](https://www.jansamparklife.in/wp-content/uploads/2023/09/dr-sanjay2-300x169.jpg)
Every fifth person in the world will speak Hindi by 2030
‘हिंदी की दशा और दिशा’ पर कोलकाता में राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
By 2030, every fifth person in the world will speak Hindi: Prof. Dwivedi: कोलकाता/भोपाल. ‘पिछले कुछ वर्षों में हिंदी और भारतीय भाषाओं को बहुत बढ़ावा मिला है। लोगों में भाषा को लेकर हीनता का भाव खत्म हो रहा है। आज भारत सरकार के सभी कार्यक्रमों में हिंदी का बोलबाला है। भारतीय भाषाओं का यह ‘अमृतकाल’ है।’ यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान के पूर्व महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी ने पश्चिम बंगाल की प्रतिष्ठित संस्था ‘समर्पण ट्रस्ट’ की ओर से कोलकाता में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान व्यक्त किये। ‘हिंदी की दशा और दिशा’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता ‘छपते-छपते’ और ‘ताजा टीवी’ के प्रधान संपादक विश्वंभर नेवर ने की।
इस अवसर पर बाबा साहेब अंबेडकर शिक्षा विश्वविद्यालय, कोलकाता की कुलपति प्रो. (डॉ.) सोमा बंद्योपाध्याय, हावड़ा हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) विजय कुमार भारती, पूर्व आईपीएस और भोजपुरी साहित्य के मूर्धन्य लेखक मृत्युंजय कुमार सिंह, हावड़ा दीनबंधु कॉलेज के सहायक प्राध्यापक डॉ. सत्य प्रकाश तिवारी, प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. ऋषि भूषण चौबे, कल्याणी विश्वविद्यालय के काचरापाड़ा कॉलेज में हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. गोस्वामी जीके भारती और पश्चिम बंगाल सरकार के सूचना एवं संस्कृति विभाग में राज्य सरकार के मुखपत्र ‘पश्चिम बंगाल’ के संपादक डॉ. जयप्रकाश मिश्रा मौजूद रहे।
![Every fifth person in the world will speak Hindi by 2030](https://www.jansamparklife.in/wp-content/uploads/2023/09/dr-sanjay1-1-300x188.jpg)
Every fifth person in the world will speak Hindi by 2030
68 करोड़ लोगों की हिंदी मातृभाषा है
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में विचार व्यक्त करते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा कि आज दुनिया के 260 से ज्यादा विदेशी विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है। 68 करोड़ लोगों की हिंदी मातृभाषा है। 26 करोड़ लोगों की दूसरी और 45 करोड़ लोगों की तीसरी भाषा हिंदी है। इस धरती पर 1 अरब 40 करोड़ लोग हिंदी बोलने और समझने में सक्षम हैं। 2030 तक दुनिया का हर पांचवां व्यक्ति हिंदी बोलेगा। उन्होंने कहा कि तीन साल पहले अंग्रेजी इंटरनेट की सबसे बड़ी भाषा थी, लेकिन अब हिंदी ने उसे पीछे छोड़ दिया है। गूगल सर्वेक्षण के अनुसार इंटरनेट पर डिजिटल दुनिया में हिंदी सबसे बड़ी भाषा है।
भारत में बोली जाने वाली सभी भाषाएं राष्ट्रभाषा, हिंदी राजभाषा है
प्रो. द्विवेदी के अनुसार सोशल मीडिया ने हिंदी की दशा और दिशा को सशक्त करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रही हिंदी की साख से प्रेरित होकर अहिंदी प्रदेशों के लोग भी फेसबुक और इंटरनेट के माध्यम से हिंदी के निकट आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमें इस भ्रम को दूर करने की जरूरत है कि हिंदी राष्ट्रभाषा है। भारत में बोली जाने वाली सभी भाषाएं राष्ट्रभाषाएं हैं। हिंदी राजभाषा है, इसका किसी से कोई विरोध नहीं है। बहुभाषिक होना, भारत का गुण है। हमारे देश में सभी लोग सभी भाषाओं को सम्मान करते हैं।
मातृभाषा मां के दूध के समान होती है
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए बाबा साहेब अंबेडकर शिक्षा विश्वविद्यालय, कोलकाता की कुलपति प्रो. (डॉ.) सोमा बंद्योपाध्याय ने कहा कि मातृभाषा मां के दूध के समान होती है। मातृभाषा वह होती है, जिसमें हम सोचते हैं, सपने देखते हैं और जीवन का लक्ष्य निधारित करते हैं। उन्होंने कहा कि मेरी मातृभाषा बांग्ला है, लेकिन हिंदी ने मुझे पाला-पोसा है। आज मैं हिंदी का दिया ही खाती हूं।
हिंदी आज विश्व की तीसरी सबसे बड़ी और प्रमुख भाषा है
हावड़ा हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) विजय कुमार भारती ने कहा कि हिंदी आज विश्व की तीसरी सबसे बड़ी और प्रमुख भाषा बन चुकी है। देश के लोग राष्ट्र भाषा को लेकर चिंतित जरूर हैं, लेकिन जो विश्व भाषा बन चुकी है, उसके लिए यह चिंता काफी छोटी है। उन्होंने कहा कि आज हिंदी काफी समृद्ध हुई है। सोशल मीडिया और इंटरनेट पर भी हिंदी में तमाम सामग्री उपलब्ध है, लेकिन सवाल यह है कि क्या हिंदी बोलने-समझने वालों की आर्थिक- सामाजिक स्थिति ऐसी है कि वे इसके लिए आवश्यक उपकरण खरीद सकें, इन उपकरणों के लिए जरूरी व्यय भार उठा सकें, हमें इस दिशा में भी सोचना होगा।
संगोष्ठी में अन्य वक्ताओं ने भी हिंदी की दशा एवं दिशा पर अपने विचार रखे। संगोष्ठी के आयोजन में ‘समर्पण ट्रस्ट’ के अध्यक्ष निरंजन अग्रवाल, महासचिव प्रदीप ढेडिया, जयप्रकाश मिश्र, राकेश मिश्रा, महावीर प्रसाद रावत सहित बड़ी संख्या में विद्वान शामिल हुए।