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विकास के पश्चिमी माडल से उपजा पर्यावरण संकट: प्रो.संजय द्विवेदी

Environmental crisis arising from western model of development
Environmental crisis arising from western model of development

Environmental crisis arising from western model of development

बलरामपुर गार्डन, लखनऊ में राष्ट्रीय पुस्तक मेला का आयोजन
Environmental crisis arising from western model of development: लखनऊ. भारतीय जन संचार संस्थान, (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक प्रो.(डॉ.) संजय द्विवेदी ने कहा कि प्रकृति पूजक भारतीय समाज और पर्यावरण का संरक्षण करने वाला समाज रहा है। विकास के पश्चिमी माडल ने समूचे विश्व के सामने गहरी पर्यावरण चिंताएं उपस्थित कर दी हैं। द्विवेदी रविवार को बलरामपुर गार्डन, लखनऊ में आयोजित राष्ट्रीय पुस्तक मेला के अंतर्गत विश्व साहित्य सेवा ट्रस्ट और माधवी फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में ‘पर्यावरण, चिंतन एवं विमर्श’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के तौर पर अपनी बात रखते हुए कही।

प्रकृति से संवाद ही सभी संकटों का हल
उन्होंने कहा कि प्रकृति से संवाद ही सब संकटों का हल है, इसके लिए ‘विचारों की घर वापसी’ जरूरी है। द्विवेदी ने कहा कि हमारी परंपरा प्रकृति के साथ सहजीवन की रही है, वह राह हम भूल आए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रेरित स्वच्छता अभियान को उन्होंने एक महान कार्यक्रम बताते हुए कहा कि ऐसा करके ही हम राष्ट्रपिता के सपनों का स्वच्छ, स्वस्थ और सुंदर भारत बना सकते हैं।

हमें सामाजिक और वैचारिक प्रदूषण की भी चिंता करनी चाहिए
कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग और राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के सभापति प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने की। प्रो. दीक्षित ने पर्यावरण की चिंता पर विचार प्रकट करते हुए कहा कि प्राकृतिक आपदाओं के साथ हमें सामाजिक और वैचारिक प्रदूषण की भी चिंता करनी चाहिए। प्रकृति और मानव का सुंदर संपर्करहा है। राजस्थान के संत जम्भो जी ने सबसे पहले पेड़ों के कटने की चिंता प्रकट की। हिंदी साहित्यकार अपने लेखन में निरंतर प्रकृति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताते और बताते रहे हैं।

संगोष्ठी में लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पवन अग्रवाल, डॉ. रामबहादुर मिश्र, रवींद्र प्रभात ने अपने विचार व्यक्त किए। आयोजन में संयोजक डॉ. मिथिलेश दीक्षित, निखिल प्रकाशन समूह के मुरारी शर्मा, लेखिका अलका प्रमोद, डॉ. राम कठिन सिंह, डॉ. सुरेंद्र विक्रम, डॉ. पप्पू अवस्थी, डॉ. अजेंद्र प्रताप सिंह, प्रकाश, मुकेश तिवारी आदि साहित्यकार और गणमान्य नागरिक मौजूद रहे।

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