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अपने परिवेश की प्रेरक कहानियां दिखाए सिनेमा: गुल्लक फेम दुर्गेश सिंह

सतपुड़ा चलचित्र समिति की दो दिवसीय ‘फिल्म निर्माण कार्यशाला’ में युवा फिल्मकारों को दिया फिल्म निर्माण के विविध आयामों का प्रशिक्षण

Cinema showing inspiring stories from your surroundings: Gullak fame Durgesh Singh: भोपाल. सतपुड़ा चलचित्र समिति की ओर से आयोजित ‘फिल्म निर्माण कार्यशाला’ में लोकप्रिय वेबसीरीज Gullak fame Durgesh Singh ‘गुल्लक’ के पटकथा लेखक दुर्गेश सिंह ने कहा कि मारधाड़, हिंसा और अश्लीलता को प्राथमिकता देने की अपेक्षा Cinema सिनेमा को अपने परिवेश की साफ-सुथरी और प्रेरक कहानियां दिखानी चाहिए। आज Cinema सिनेमा में और हमारी कहानियों में परिवार दिखता ही नहीं है। हम अपनी कहानी नहीं कह रहे हैं। हमारी कहानियां बाहर के लोग अपने नजरिए से कह रहे हैं। जबकि अपनी कहानी कहने का अधिकार हमारा है। हमें Cinema सिनेमा के माध्यम से अपनी पौराणिक एवं प्राचीन ऐतिहासिक कहानी समाज के सामने लानी चाहिए। कार्यशाला का आयोजन सेज विश्वविद्यालय भोपाल में किया गया। उद्घाटन समारोह में सेज विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संजीव अग्रवाल, सतपुड़ा चलचित्र समिति के अध्यक्ष लाजपत आहूजा और भारतीय चित्र साधना, दिल्ली के कोषाध्यक्ष अनुपम भटनागर उपस्थित रहे।

Cinema showing inspiring stories from your surroundings: Gullak fame Durgesh Singh

हाभारत दुनिया में पटकथा लेखन का सबसे उत्तम उदाहरण
पटकथा लेखन पर Gullak fame Durgesh Singh दुर्गेश सिंह ने कहा कि कोई भी काम करते समय, मन में यह प्रश्न पूछें कि मुझे यह काम क्यों करना है? अगर आप इस प्रश्न का उत्तर खोजेंगे तो आप जो भी काम करेंगे, वह बेहतर होगा। Gullak fame Durgesh Singh उन्होंने कहा कि पटकथा लेखन एक अलग विधा है, यहां आपको कहानी कहने से पूर्व उसके विषय में पता होना चाहिए। महाभारत दुनिया में पटकथा लेखन का सबसे उत्तम उदाहरण है। Gullak fame Durgesh Singh कभी भी सामाजिक मान्यताओं को दरकिनार नहीं करना चाहिए। उन्होंने कोविड के यूरोप और भारत पर हुए प्रभावों का उदाहरण देते हुए समाज, परिवार और उसकी आवश्यकता पर जोर दिया। Gullak fame Durgesh Singh उन्होंने कहा कि यह लेखकों का स्वर्णिम समय है। आज एक शो का लेखन तीन से छह तक लेखक मिलकर करते हैं। इसलिए ओटीटी के आने के बाद से इस क्षेत्र में लेखकों के लिए बहुत संभावनाएं हैं।

युवा फिल्मकारों को इसकी बारीकियों पर ध्यान देना चाहिए
इस अवसर पर दिल्ली से आए मुख्य अतिथि अनुपम भटनागर ने कहा कि भारतीय चित्र साधना और सतपुड़ा चलचित्र समिति का उद्देश्य है कि युवा फिल्मकारों को एक मंच उपलब्ध कराना। इसके साथ ही सिनेमा में भारतीय मूल्यों की स्थापना के लिए फिल्मकार प्रेरित हों, यह भी प्रयास है। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे लाजपत आहूजा ने कहा कि फिल्म निर्माण एक गंभीर और बारीक कार्य है। युवा फिल्मकारों को इसकी बारीकियों पर ध्यान देना चाहिए।

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निर्देशक को सभी विधाओं की जानकारी होना चाहिए
वहीं, दूसरे सत्र में मुंबई से आए प्रख्यात फिल्म निर्देशक वीरेंद्र पासवान और नारायण चौहान ने युवा फिल्मकारों को निर्देशन के सिद्धांत पर बात की और निर्देशन की बारीकियों का प्रशिक्षण दिया। उन्होंने कहा कि निर्देशक को सभी विधाओं की जानकारी होना आवश्यक है। इस अवसर पर दोनों ही विद्वानों ने विद्यार्थियों के समूह बनाकर फिल्म निर्माण का अभ्यास भी कराया। जबकि तीसरा सत्र ‘अभिनय’ विषय पर हुआ। इसमें प्रख्यात फिल्म अभिनेता संजय मेहता ने अभिनय की बारीकियों पर बात की। उन्होंने कहा कि अभिनेता बनने के लिए सबसे पहले अपने मन को खाली करना करना और फिर से नया विचार करना होगा। अभिनेता को अच्छा रिसीवर होना चाहिए। उन्होंने अभिनय के दार्शनिक पक्ष को भी प्रशिक्षार्थियों के सामने रखा। फिल्मकार मनीष गोडबोले ने ‘स्टोरी बोर्ड निर्माण’ का महत्व बताया और उसका प्रशिक्षण दिया। कार्यशाला में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चयनित 30 युवा फिल्मकार शामिल हुए हैं।

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