लखनऊ
गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज के बाल रोग विभाग के निलंबित प्रवक्ता डॉ. कफील अहमद पर एक और जांच बिठा दी गई है। जांच की जिम्मेदारी प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण देवेश चतुर्वेदी को सौंपी गई है।
डॉ. कफील पर निलम्बन की अवधि में जिला अस्पताल बहराइच में जबरन घुसकर इलाज करने, इस अवधि में सोशल मीडिया पर सरकार विरोधी टिप्पणियां करने और निलम्बन के दौरान सम्बद्ध चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक कार्यालय में योगदान न देने का भी आरोप है। जिला अस्पताल बहराइच के मामले में डॉ. कफील पर बहराइच कोतवाली में प्राथमिकी भी दर्ज कराई गई है।
चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. रजनीश दुबे ने गुरुवार को प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि डॉ. कफील पर चार आरोपों की जांच कर रहे प्रमुख सचिव स्टाम्प एवं निबंधन हिमांशु कुमार ने दो आरोप सही पाए हैं। दो आरोपों की जांच चल रही है। उन्हें शासन द्वारा किसी प्रकार की क्लीन चिट नहीं दी गई है।
उन्होंने कहा कि डा. कफील के खिलाफ सरकारी सेवा के दौरान बीआरडी मेडिकल कालेज में सीनियर रेजीडेंट रहते हुए निजी प्रैक्टिस करने का आरोप सही पाया गया। वह गोरखपुर के मेडि्प्रिरंग हास्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में निजी प्रैक्टिस कर रहे थे। ये गंभीर भ्रष्टाचार तथा नियमों का घोर उल्लंघन है। मेडिकल कालेज, गोरखपुर के 100 बेडेड वार्ड के प्रभारी के दौरान उन्होंने अपने दायित्वों का सही निर्वहन नहीं किया। कालेज में ऑक्सीजन की कमी की बात उच्चाधिकारियों के संज्ञान में नहीं लाए। जबकि नोडल ऑफिसर के रूप में उनके पत्र मिले हैं। इसकी जांच जारी है। डा. कफील पर सात आरोपों की जांच चल रही है। इन पर किसी भी विभागीय कार्रवाई में अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।
डॉ. दुबे ने कहा कि डॉ. कफील जांच आख्या की गलत व्याख्या कर रहे हैं। वह खुद को शासन द्वारा दोषमुक्त करने की बात मीडिया में प्रसारित कर रहे हैं और वीडियो सोशल मीडिया पर भेज रहे हैं। उन्होंने कहा कि बीआरडी मेडिकल कालेज में अगस्त 2017 में बच्चों की आकस्मिक मृत्यु की घटना में तीन अधिकारी दोषी पाए गए थे। इनमें कार्यवाहक प्रधानाचार्य राजीव कुमार मिश्रा, तत्कालीन आचार्य सतीश कुमार एनेस्थीसिया और डॉ. कफील अहमद तत्कालीन प्रवक्ता बाल रोग विभाग को निलंबित किया गया था।