भोपाल
प्रदेश में अब भी 12 हजार प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल ऐसे हैंं जहां पर आज भी अलग-अलग शौचालयों के अभाव में बालक-बालिकाओं को एक ही शौचालय का उपयोग करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। यही नहीं इन स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं का हाल तो यह है कि जिनमें पीने के पानी का भी अभाव है। ऐसे स्कूलों की संख्या 14 हजार है। यह खुलासा हुआ है उस रिपोर्ट से जो हाल ही में सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधाओं को लेकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) को राज्य सरकार की ओर से भेजी गई है। इसके बाद राज्य शिक्षा केंद्र को सभी कलेक्टर और जिला मिशन संचालक को लिखित आदेश जारी कर स्कूलों में शौचालय व पीने के पानी की व्यवस्था करने के लिए कहना पड़ा है। राज्य शिक्षा केंद्र द्वारा एमएचआरडी को सौंपी रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के 6957 प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में लडक़ों के लिए और 5253 स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय नहीं हैं। साथ ही 96343 स्कूलों में दिव्यांग बच्चों के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं है। वहीं, रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के 14 हजार सरकारी स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा तक नहीं है। बच्चों को घर से पानी लेकर आना पड़ता है। पानी के अभाव में इन स्कूलों में शौचालय की व्यवस्था पूरी तरह से ठप है। स्वच्छ विद्यालय अभियान के अंतर्गत वर्ष 2015-16 में जिले की मांग के आधार पर सरकारी स्कूलों में बालक एवं बालिकाओं के लिए शौचालय निर्माण के कार्य स्वीकृत किए गए थे, लेकिन यह योजना प्रदेश में पूरी तरह फेल है। एमएचआरडी ने सरकारी स्कूलों में मूलभूत सुविधाएं नहीं होने पर नाराजगी जताते हुए पत्र लिखकर व्यवस्था दुरुस्त करने को कहा है।
भोपाल के स्कूलों की स्थिति भी कुछ ज्यादा बेहतर नहीं है। यहां पर 109 प्राइमरी व मिडिल स्कूलों में लडक़ों के लिए और 56 स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय नहीं है। वहीं, राजधानी के 177 स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा नहीं है।
प्रदेश के 96 हजार 343 स्कूलों में दिव्यांग बच्चों के लिए शौचालय और 28 हजार 395 स्कूलों में रैंप नहीं हैं। वहीं, राजधानी के 501 स्कूलों में भी कोई रैंप की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में दिव्यांग बच्चों को मुख्यधारा से जोडऩा मुश्किल हो रहा है।
प्रदेश के 10 हजार 763 ऐसे भी स्कूल हैं, जिनमें पुस्तकालय ही नहीं है। पूर्व राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने सभी स्कूलों में अनिवार्य रूप से पुस्तकालय शुरू करने के निर्देश दिए थे। वहीं 64 हजार 278 प्राइमरी और मिडिल स्कूलों में प्रधानाध्यापक के लिए अलग से कक्ष नहीं हैं। वे शिक्षकों के साथ बैठते हैं।