भोपाल
राज्य सरकार नगरीय निकाय चुनाव से पहले निकायों को कसने की तैयारी में है। महापौर और अध्यक्ष पद के लिए जनता से चुनाव कराने की बजाय पार्षदों के माध्यम से इलेक्शन कराने का फैसला ले चुकी सरकार अब निकायों के कामों की गुणवत्ता पर फोकस कर रही है। इसीलिए निर्माण कार्यों और सरकार के फोकस वाली योजनाओं की मानीटरिंग की पड़ताल कर गड़बड़ी के मामलों में एक्शन की तैयारी है।
अफसरों के कामों में कसावट की यह शुरुआत संभागों में पदस्थ संयुक्त संचालकों, अधीक्षण यंत्रियों और कार्यपालन यंत्रियों की जिम्मेदारी तय करने के साथ की जा रही है।
प्रदेश के सभी 378 निकायों के छोटे-बड़े कामों का निरीक्षण करने और रिपोर्ट देने के निर्देश प्रशासकीय और तकनीकी अफसरों को दिए गए हैं। सरकार की इस बात को लेकर भी नाराजगी है कि निर्माण कार्यों में गड़बड़ी के साथ लोगों की समस्याओं के निदान को लेकर भी निकाय गंभीर नहीं हैं जिससे सरकार की छवि खराब हो रही है। नगरीय विकास विभाग के निर्देशों में कहा गया है कि निकायों के निरीक्षण नहीं किए जाने से कार्यप्रणाली और कार्य संचालन की गलतियों पर एक्शन नहीं हो पाता है।
इसलिए संयुक्त संचालक अपने क्षेत्र के निकायों का निरीक्षण करें। यह निरीक्षण हर तीन माह में होना चाहिए। इसमें खासतौर पर यह देखा जाएगा कि नगरीय निकायों की ऐसी अचल संपत्ति जिसका हस्तांतरण सार्वजनिक कार्यों के लिए किया गया है, उनके मामले में दस सालों में क्या कार्यवाही हुई है? इस अचल संपत्ति की प्रीमियम राशि समय सीमा में मिलने के बाद ही निकाय द्वारा एग्रीमेंट किया गया है या फिर पहले ही संपत्ति का अंतरण कर दिया गया है।
इसकी जानकारी भी सरकार को चाहिए ताकि ऐसे मामलों में दोषी अफसरों के विरुद्ध कार्यवाही की जा सके। इन्हें केंद्र और राज्य सरकार की मदद से संचालित योजनाओं के क्रियान्वयन की रिपोर्ट भी हर माह की समीक्षा बैठक के साथ भेजना होगी। उधर नगरीय विकास के कार्यपालन यंत्रियों, अधीक्षण यंत्रियों को दिए निर्देश में कहा गया है कि निकायों में घटिया निर्माण की शिकायतें बहुत आ रही हैं। इसलिए निकायों के कामों का निरीक्षण कर रिपोर्ट दी जाए।