नई दिल्ली
अयोध्या के रामजन्मभूमि विवाद पर चल रहे मुकदमे में गुरुवार को नया मोड़ आ गया, जब उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस मुद्दे का न्यायिक फैसला होगा कि विवादित स्थल पर बनी मस्जिद इस्लामिक संस्कृति और भावनाओं के अनुसार बनी थी या नहीं। रामजन्मस्थान पुनरुद्धार समिति के वकील की दलील पर शीर्ष अदालत ने कहा मस्जिद के रूप में नहीं इस्तेमाल हुआ विवादित ढांचा: रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने यह टिप्पणी तब की, जब जन्मस्थान पुनरोद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने कहा, यह मस्जिद इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार नहीं बनी थी। लिहाजा इसे मस्जिद नहीं कहा जा सकता। यह ढांचा कभी मस्जिद के रूप में प्रयोग ही नहीं किया, इसमें कभी नियमित नमाज नहीं हुई।
मस्जिद वही जो स्वतंत्र रूप से खरीदी जमीन पर बनी हो
मिश्रा ने दलील दी कि हनीफी इस्लामिक कानून जो भारत में मध्यकाल से लेकर अब तक मान्य है, उसके मुताबिक मस्जिद तभी मानी जाएगी, जब वह स्वतंत्र रूप से खरीदी गई जमीन पर बनी हो। उसे लोकार्पित किया गया हो। उसमें मुअज्जन हो, जो अजान देकर लोगों को नमाज के लिए बुलाए। दूसरे धर्म का कोई स्थान उसके पास न हो।
मंदिर पर कब्जा कर बनी मस्जिद, हिंदू भी करते रहे पूजा
मिश्रा ने कहा कि विद्वान काजी मुहद्दीस ने इसे अपनी किताब में लिखा है, जो प्राचीन काल से मान्य है। यहां तक कि बाबर से पहले अलाउद्दीन खिलजी के समय भी यही व्यवस्था थी, लेकिन यहां मस्जिद जबरन कब्जा किए गए मंदिर पर बनी है। इसके ही साथ उसमें हिंदू भी पूजा करते रहे। इसमें कभी मुअज्जन नहीं रहा, इसमें मूर्तियां थीं और खंबों पर देव चित्र खुदे थे, घंटियां भीं।
इस पर डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि जब बाबर 1526 में भारत आया और उसने अफगान शासक इब्राहिम लोदी को हराकर अवध को अपने कब्जे में लिया था, तब क्या सभी जमीन उसके स्वामित्व में आ गई थी? क्या उसे मस्जिद बनाने के लिए जमीन खरीदने की जरूरत थी? क्या आज हम इस सवाल की जांच कर सकते हैं कि यह मस्जिद उसने लोकार्पित नहीं की थी? इस मुद्दे में न्यायिक फैसला कैसे दिया जा सकता है? मिश्रा ने जवाब दिया कि यह फैसला शीर्ष अदालत ही कर सकती है और कोई नहीं।
जजिया कर के रूप में शुरुआत में हुई नमाज
जस्टिस एसए बोब्डे ने कहा कि सही है। हम आपकी बात से सहमत हैं। उच्चतम न्यायालय इसका फैसला कर सकता है क्योंकि यह मुद्दा और कहां उठाया जाएगा। मिश्रा ने कहा,शुरुआती दौर में जब यहां नमाज हुई तो वह एक तरह से जजिया कर के रूप में थी।