मध्य प्रदेश

मुगलकाल में भारतीय संस्कृति खत्म करने के लिए रखे गए थे ऐसे नाम

In the Mughal period such names were kept to end Indian culture

बरखेड़ा पठानी अब शास्त्री नगर के नाम से जाना जाएगा, लोगों ने जताई खुशी, कहा
In the Mughal period such names were kept to end Indian culture : भोपाल. राजधानी में इन दिनों नगर, गांव कस्बों के साथ ही विभिन्न स्थानों के नाम बदलने का सिलसिला चल रहा है। इसी क्रम में भेल क्षेत्र के बरखेड़ा पठानी का नाम बदल कर पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाम पर शास्त्री नगर रखा गया है। इससे इस क्षेत्र के लोगों ने खुशी जताते हुए सांसद, विधायक व वार्ड 56 के पार्षद नीरज सिंह का इसके लिए आभार जताया।

स्थानीय लोगों ने कहा कि मुगल काल में भारतीय संस्कृति को समाप्त करने के लिए तत्कालीन मुगल शासकों ने अपने परिवारजनों और नाते रिस्तेदारों के नाम पर शहर, नगर, गांव, कस्बों के साथ ही कई अन्य जगहों का नाम बदल कर रख दिया था, जिसका न तो कोई शाब्दिक अर्थ था, न प्रेरणादायी था और न ही इसके कोई मायने थे। यह सिर्फ परिवार बाद के रूप में था। ऐसे मे यहां का नाम बदलकर पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाम पर रखा जाना बेहतर और सार्थक है, क्योंकि वे देश के प्रधानमंत्री रहे हैं। अपने कार्यकाकल में कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं। वे सादा जीवन उच्च विचार व गांधीवादी विचारधारा को लेकर सदैव अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते रहे। लोगों ने कहा कि देश और प्रदेश में ऐसे नामों को बदला जाना चाहिए, जिनका कोई अर्थ नहीं है।

यह क्षेत्र भेल में आता है। भेल कर्मचारियों का यहां से लगाव होने से नाम पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाम पर रखे जाने से क्षेत्र के लोगों में खुशी है।
नीरज सिंह, पार्षद वार्ड 56

बरखेड़ा पठानी का न तो कोई शाब्दिक अर्थ है और न ही कोई मायने। ऐसे में यहां का नाम लाल बहादुर शास्त्री के नाम पर किया जाना खुशी की बात है।
अरुण विश्वकर्मा, प्राचार्य शासकीय हाई स्कूल शास्त्री नगर भेल

सांसद, विधायक और क्षेत्रीय पार्षद के कारण यह काम संभव हो पाया है। बरखेड़ा नाम पठानी अटपटा लगता था। अब इसका नाम पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाम पर होने से खुशी है।
मनोज सिंह राजपूत, विश्व हिन्दू परिषद साकेत मंडल

यह बहुत खुशी का विषय है। इसके लिए हम सांसद, विधायक और क्षेत्रीय पार्षद को साधुवाद देते हैं। और भी जगहों पर जहां इस तरह के नाम हैं उन्हें भी बदलना चाहिए।
वीरेंद्र राजपूत, स्थानीय रहवासी

यह बेहतर काम हुआ है। मुगल काल में हमारी सांस्कृतिक को खत्म करने के लिए इस तरह के नाम रखे गए थे।
सत्येंद्र कुमार, अध्यक्ष ऐबु

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