वास्तु के कुछ नियम सरल और व्यवहारिक होते हैं यदि इनका ठीक ढंग से पालन किया जाए तो भवन में रहने वाले सभी लोग शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य रह सकते हैं। उनका जीवन सुख,शांति और प्रेम भाव से बीत सकता है। किसी भी रोग के लिए जन्मजात ग्रह प्रभावी भूमिका निभाते हैं,लेकिन वास्तु का हस्तक्षेप भी इसमें कम नहीं है।
पूर्व तथा उत्तर दिशा का हल्का और नीचा होना तथा दक्षिण व पश्चिम दिशा का भारी व ऊँचा होना वास्तु सम्मत है। यदि पूर्व दिशा में भारी निर्माण हो तथा पश्चिम दिशा एकदम खाली व निर्माण रहित हो तो अनिद्रा का शिकार होना पड़ सकता है। उत्तर दिशा में भारी निर्माण हो परन्तु दक्षिण और पश्चिम दिशा निर्माण रहित हो तो भी ऐसी स्थिति उत्त्पन्न होती है ।
गृहस्वामी अग्निकोण या वायव्य कोण में शयन करे या उत्तर में सिर व दक्षिण में पैर करके सोए तब भी अनिद्रा या बेचैनी जैसी परेशानी हो सकती है। घर में भूमिगत जल की गलत स्थिति भी बहुत सारे रोगों का कारण होती है। उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में भूमिगत जल स्रोत धनदायक होते हैं एवं संतान को भी सुंदर निरोगी बनाते हैं। यहाँ निवास करने वाले सदस्यों के चेहरे पर कांति बनी रहती है। इन स्थानों पर जल की स्थिति रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करती है।
दक्षिण-पश्चिम दिशा में प्रवेश द्वार या चाहरदीवारी अथवा खाली जगह होना शुभ नहीं है। ऐसा होने से हार्ट अटैक,लकवा, हड्डी एवं स्नायु रोग संभव हैं। रसोई घर में भोजन बनाते समय यदि गृहणी का मुख दक्षिण दिशा की ओर है तो त्वचा एवं हड्डी के रोग हो सकते हैं। पूर्व दिशा की ओर चेहरा करके रसोई में भोजन बनाना स्वास्थ्य के लिए श्रेष्ठ माना गया है।
ध्यान रहे कि आपके भवन की दीवारें एकदम सही सलामत हों, उनमें कहीं भी दरार या रंग रोगन उड़ा हुआ या फिर दाग-धब्बे आदि न हों वरना वहां रहने वालों में जोड़ों का दर्द,गठिया, कमर दर्द,सायटिका जैसे समस्याएं हो सकती हैं।
दीवारों पर रंग -रोगन भी ध्यान से करवाना चाहिए। काला या गहरा नीला रंग वायु रोग, पेट में गैस, हाथ-पैरों में दर्द , नारंगी या पीला रंग ब्लड प्रेशर, गहरा लाल रंग रक्त विकार या दुर्घटना का कारण बन सकता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए दीवारों पर दिशा के अनुरूप हल्के एवं सात्विक रंगों का प्रयोग करना चाहिए।