बरसाना में एक गुजरी रहती थी, जिसका नाम कमला था, जो थोड़ी सी बावरी थी। उसकी सभी सखी-सहेलियां हर रोज अपने मटकी में दूध, दही, शहद, मक्खन भरकर गली-गली बेचने जातीं। बावरी भी अपनी सखियों की नकल करते हुए एक मटकी को जो कि खाली होती है, उस पर ढक्कन लगाकर उनके पीछे-पीछे चल पड़ती है और गांव की गली-गली जाकर बोलती- शहद ले लो, शहद।
गांव के लोगों को पता होता है कि मटकी खाली है
गांव के सब लोगों को पता होता है कि इसकी मटकी में कुछ नहीं है। गांव के सब बच्चे बावरी को चिढ़ाते हैं, कोई उसकी चुनरी खींचता है, तो कोई घाघरा। पर वह समझती है कि यह सब लोग मुझसे कुछ खरीदना चाहते हैं, तो वह अपने मुंह में चुनरी को रखकर गर्दन इधर-उधर घुमाकर हंसती हुई आगे निकल जाती है।
जब सब सखियां गली-गली जाकर दही-मक्खन बेच लेती हैं, तो बाकी बचा हुआ दही मक्खन और छाछ बरसाने की सीढिय़ों में जाकर बैठ जाती है और वहां जाकर आने-जाने वालों को सभी बेचती है। बावरी उनके पीछे-पीछे चल पड़ती है और वह भी वहां जाकर ऐसे बैठ जाती है कि वह शहद बेच रही है। जब कोई उससे शहद मांगता और देखता कि इसके पास तो कुछ है ही नहीं, तो वह आगे हो लेते, वह तब भी बहुत खुश रहती है।
जब सब सखियां सारा दही, दूध बेचकर घर वापस चली जाती हैं, तो यह भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ती है, लेकिन जाने से पहले वह किशोरी जी की चौखट पर माथा टेकना नहीं भूलती। उसका रोज का यही नियम होता। ऐसी भोली-भाली और जिसके मन में कोई पाप नहीं है, ऐसी भक्त तो किशोरी जी को बहुत प्रिय हैं। किशोरी जी को बांवरी बहुत प्रिय है।
एक दिन बावरी बरसाना की सबसे आखिरी सीढ़ी पर बैठकर सब लोगों को बोल रही होती है-शहद ले लो शहद, तभी, दो औरतें वहां आकर बैठती हैं और वह बावरी को बड़े ध्यान से देखती हैं कि इसकी मटकी में तो कुछ है नहीं फिर भी यह सब को शहद बेच रही है। इस पर वह पूछती हैं कि अरे लड़की, क्या बेच रही है, तो वह चुनरी मुंह में डालकर गर्दन घुमाकर हंसकर कहती है, माताजी शहद बेच रही हूं।
उसकी यह बातें सुनकर उसकी बाकी सखियां हंस पड़ती हैं, लेकिन वह दोनों भली औरतें उसका मान रखने के लिए कहती हैं, अच्छा अपना यह शहद हमें भी थोड़ा सा चखाओ, तो बावरी बहुत खुश होकर उछल-उछल कर अपनी मटकी में से दोना भरती हुई उनको शहद दे देती है। औरतें सोचती हैं कि अगर हम कहेंगे कि इसमें शहद नहीं है, तो बावरी को दुख होगा, ऐसे में वह अपनी उंगली से जानबूझकर दोने में से खाली उंगली घुमाकर मुंह में डालती हैं, तो एकदम से हैरान-परेशान हो जाती हैं कि उनके मुंह में वास्तव में शहद का स्वाद आता है और वह हक्की-बक्की होकर एक दूसरे की तरफ देखती हैं, क्योंकि उन्होंने ऐसा शहद कभी जिंदगी में चखा ही नहीं होता।
वह कहती हैं बांवरी तुम्हारा शहद तो बहुत ही अच्छा है और वह उसको थोड़े से पैसे देकर आगे हो जाती हैं। वह दोनों सब लोगों को बताती हैं कि बावरी के पास सचमुच का शहद है, तो सब लोग जाकर उसकी खाली मटकी को देखते हैं, लेकिन उन दो औरतों की बातों को मानते हुए जब वह शहद का दोना लेते हैं, तो वास्तव में उसमें शहद होती है, इसकी चर्चा अब दूर-दूर तक फैल जाती है।
सब लोग बावरी का शहद चखने के लिए दूर-दूर से आते हैं। तभी वहां पर एक लड़का जो कि दूर गांव से आया होता है, वह यह सब देखता है और सोचता है कि बावरी के पास ऐसी मटकी है, जो खाली होने के बाद भी सब लोग इसका शहद खाते हैं, अगर यह मटकी मेरे पास आ जाए तो मैं इस शहद को बेंचकर रातोंरात अमीर बन जाऊंगा।
अब वह इसी ताक में रहता है कि कब वह इस बावरी की चमत्कारी मटकी को छीन ले। एक दिन जब बावरी अपने घर को जा रही होती है, तो रास्ते में सुनसान जगह पर उस लड़के को मौका मिल ही जाता है और वह बावरी को धक्का देकर उसकी मटकी छीन कर भाग जाता है।
जब तक बावरी संभलती है, तब तक लड़का दूर भाग चुका होता है। बावरी को अपनी मटकी बहुत प्रिय होती है। अपनी मटकी को चोरी हुआ देखकर वह जोर-जोर से दहाड़े मारकर रोना शुरू कर देती है और पैर पटक-पटक कर अपने घर की तरफ दौड़ती भागती-जाती है। घर जाकर बहुत रोती है।
उधर, वह लड़का जब घर जाकर देखता है कि देखूं तो सही इसमें कैसा शहद है। कैसी यह चमत्कारी मटकी है। जब वह मटकी के अंदर हाथ डालकर देखता है तो हजारों की संख्या में मधुमक्खियां उसके ऊपर टूट पड़ती हैं। और उसे काट-काट कर उसका बुरा हाल कर देती हैं। वह भागकर जोर-ज़ोर से चिल्लाने लगता है, काट लियो, हाय काट लियो, लेकिन वह मधुमक्खियां किसी को नजर नहीं आतीं।
उस पतले से लड़के को मक्खियों ने काट-काट कर राक्षस जैसा मोटा बना देती हैं। लड़का चिल्लाता हुआ अपने कमरे में चला जाता है और रोता रहता है। वह बावरी के बारे में सोचता है कि वह या तो जादूगरनी है या तो मुझे बावरी का श्राप लगा है। यह सोच कर वह सारा दिन रोता रहता है। उधर, बावरी का अपने मटकी के बगैर रो-रोकर बुरा हाल हो जाता है। एक दिन उस लड़के को ढूंढते हुए उसके रिश्तेदार बरसाना धाम को आते हैं।
तो उनको अपना लड़का उस कमरे में इस अवस्था में मिलता है। उसकी ऐसी दशा होने का कारण पूछते हैं, तो वह उनको सब बात बता देता है, तो वह कहते हैं सच में तुम्हें बावरी का श्राप लगा है। चलो तुम उसकी मटकी वापस कर आओ। तो वह बरसाना की इस सीढिय़ों में जाकर बावरी को ढूंढते हैं और वहां जाकर सखियों से पूछते हैं कि क्या आज बावरी नहीं आई तो वह सब सखियां कहती हैं कि नहीं बावरी की तो मटकी खो गई है, वह तो काफी दिनों से नहीं आई।
वह सखियों से उसके घर का रास्ता पूछते-पूछते उसके घर जाते हैं। वहां जाकर देखते हैं कि बाबरी औंधे मुंह अपनी चारपाई पर लेट कर रो रही है, तो वह लड़का जाकर बावरी के पैर पकड़ लेता है और जाकर उसकी मटकी उसके पास रख देता है और कहता है कि देवी मुझे क्षमा कर दो जो मैंने तुम्हारे दिल को दुखाया।
बावरी अपनी मटकी पाकर बहुत खुश होती है, लेकिन उसके आंसू लगातार बहते रहते हैं। वह लड़का जो कि उसके पांव में पड़ा होता है, तो बावरी के आंसू उसके शरीर पर गिरते हैं। उसके आंसू गिरने से उस लड़के के सारे जख्म एकदम से ठीक हो जाते हैं। वह बावरी का धन्यवाद करते हुए अपने घर को चला जाता है। जो भक्त किशोरी जी को प्रिय होते हैं, उन भक्तों का कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इसलिए हमें किशोरी जी और उनके भक्तों का हमेशा मान करना चाहिए। कभी भी उनका दिल नहीं दुखाना चाहिए, क्योंकि उनका अपमान मतलब हमने किशोरी जी का निरादर किया।