कैची और सुई से हम सभी को सीखना चाहिए, बड़ा और छोटा होना मायने नहीं रखता, बल्कि मायने ये रखता है कि आप समाज और लोगों के लिए कितने कारगर साबित होते हो
सदीप नंदन जैन
पुराने जमाने की बात है, पहले हाथ की सिलाई मशीन हुआ करती थी और दर्जी भाई बैठ कर सिलाई करते थे। प्राय: हर एक के सिर पर टोपी हुआ करती थी। टोपी आन-बान-शान और स्वाभिमान का प्रतीक भी होती थी। दर्जी भाई टोपी में सुई को छेद कर लगाते थे और कैची को पैर के नीचे दवा कर रखते थे।
एक बार कैची ने सुई से कहा, देखी मेरी ताकत में अच्छे से अच्छे सुंदर, कीमती वस्त्रों को काट डालती हूं। तुम्हारा क्या अस्तित्व, तुम तो आकार में भी बहुत छोटी और नन्ही सी हो। कैची ने अपनी जबान की धार को और तेज चलाते हुये कहा-तुम्हारे सुराख में तो धागा डालने के लिए अच्छे अच्छों को पसीना आ जाता है।
सुई ने अपनी लघुता को बताते हुये बड़ी विन्रमता से जबाब दिया, मेरे बड़े भाई मुझे खुशी इस बात की है कि भले ही मैं शरीर से बहुत छोटी हूं, में मेरी औकात भी जानती हूं, भैया लेकिन एक बात जरूर है, मैं कभी किसी को काटती और बांटती नही हूं, मैं तो हमेशा जोड़ती और सिलती हूं।
थोड़ी देर सुई ने ठंडी गहरी सांस ली और फिर धीरे से कहा, भैया तुम मेरे बड़े भाई हो खुद कभी सोचना, जो काटता और बांटता है, वो हमेशा पैरों के नीचे रहता है और जो जोड़ता और सिलता है, वो सदा सिर पर सिरमौर रहता है। सुई की बात सुनकर कैची को अफशोस तो हुआ, लेकिन उस का अहंकार सुई की बात मानने को तैयार नहीं था।