लेखक : श्रीधर कुलकर्णी, पुणे
मोहम्मद रफी छोटे बड़े संगीतकारों के मसीहा थे! हमेशा उनकी सबको मदद करने की इच्छा रहती थी। संगीतकार रामलाल जी का किस्सा तो बड़ा ही रोचक रहा है।
अक्सर प्रभात फिल्म कंपनी के चित्रपटों को संगीतकार वसंत देसाई संगीत देते थे। इसके अतिरिक्त उन्होंने’ झनक-झनक पायल बाजे, गूंज उठी शहनाई, स्त्री, गुड्डी, प्यार की प्यास, सम्पूर्ण रामायण, राम-भरत मिलाप इन फिल्मों में लोकप्रिय मधुर संगीत दिया। रामलाल उनके सहायक संगीतकार थे।
शहनाई और बांसुरी बजाने में उस्ताद थे रामलाल
रामलाल शहनाई और बांसुरी बजाने में उस्ताद थे। अनेक फिल्मों में वसंत देसाई के सहायक के रूप में उन्होंने बढिय़ा योगदान दिया। प्रसिद्ध निर्माता-दिग्दर्शक-नाय व्ही शांताराम और वसंत देसाई की प्रभात फिल्म से ही अच्छी मित्रता थी, इसलिए रामलाल जी की भी शांताराम बापू से अच्छी जान पहचान हो गयी।
वर्ष 1961 में एक चित्रपट निर्मित करते समय रामलाल जी शांताराम से मिले और उनसे बिनती की कि उन्हें अपने चित्रपट का संगीत देने का अवसर प्रदान करें। बापू को नए-नए प्रयोग करने की आदत थी-अभिनय, गीत, संगीत तथा चित्रपटों की टेक्निकल अंगों के लिए बापू ने हमेशा सफल प्रयोग किए। इस बार भी संगीत देने की जब रामलाल जी ने विनती की तो बापू ने उनको चित्रपट की कथा सुनायी, हसरत जयपुरी ने लिखे 2 गानों के शब्द दिए और कहा कि पहले एक-दो गीत रेकॉर्ड करके ले आएं और उन्हें सुनाएं फिर वो उस पर गौर करेंगे।
रामलाल ने बड़ी उत्साह से एक प्रतिभावान और उभरते गायक की आवाज में ‘स्पूल पर’ रेकॉर्ड कर के बापू को सुनाए। इस कलाकार ने पहले भी कई चित्रपटों में गीत गाए थे, इसलिए रामलाल जी ने उसकी आवाज में वह गीत रेकॉर्ड किया। वैसे रामलाल जी का बजेट छोटा था। बापू को इस गायक की आवाज में गाने पसंद नहीं आए। बापू नाराज हो गए, फिर भी रामलाल जी ने हिम्मत नहीं हारी, वो रफी साहब के घर गए। वैसे तो रफी साहब की और उनकी जान पहचान तो थी ही। रामलाल जी ने रफी साहब को विनती की और वही गाना रेकॉर्ड करने की ईच्छा प्रकट की।
एक सहायक और वादक संगीतकार बन रहा ये सोचकर दी अनुमति
एक सहायक और वादक संगीतकार बन रहा है ये सोचकर रफी साहब ने वही गाना अपने मधुर आवाज में रेकॉर्ड करने की अनुमति दी। एक-दो रिहर्सल के बाद गाना स्पूलपर रेकॉर्ड हो गया और रफी साहब की आवाज में इस गीत को रामलालजी ने बापू को सुनाया। बापू बेहद खुश हो गए और रामलाल जी को अपनी चित्रपट का संगीतकार बनाने की अनुमति दी।
यह फिल्म थी ‘सेहरा’ और गीत था ‘तकदीर का फसाना जाकर किसे सुनाऊं…’! आगे इसी फिल्म के ..’तुमको प्यार है सजना..,’लगी मस्त जर की कटार..’, जा-जा तुझे हम जान गए..’आदि और लताजी का गाया ‘पंख होती तो उड़ आती रे..’ये सभी गीत लोकप्रिय हुए। और इसी तरहा एक सहायक वादक संगीतकार बना। रामलाल जी इसका पूरा श्रेय रफी साहब को देते हैं। रफी साहब जैसा भला मानस और कहां मिलेगा। क्या था वो जमाना और क्या थे वो लोग।