अध्यात्म

हिन्दुओं में विवाह रात्रि में क्यों होने लगे, जबकि यज्ञ वेदमन्त्र रात्रि को उच्चारण करना वर्जित है

युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ श्रीराम शर्मा जी आचार्य ने दिन में ही यज्ञ और विवाह पुन: क्यूं शुरू करवाया

क्या आपने कभी सोचा है कि हिन्दुओं में रात्रि को विवाह क्यों होने लगे, जबकि हिन्दुओं में रात में शुभकार्य करना अच्छा नहीं माना जाता है। रात को देर तक जागना और सुबह देर तक सोने को, राक्षसी प्रवृत्ति बताया जाता है। रात में जागने वाले को निशाचर कहते हैं। केवल तंत्र सिद्धि करने वालों को ही रात में हवन यज्ञ की अनुमति है।

वैसे भी प्राचीन समय से ही सनातन धर्मी हिन्दू दिन के प्रकाश में ही शुभ कार्य करने के समर्थक रहे है। तब हिन्दुओं में रात की विवाह की परम्परा कैसे पड़ी। कभी हम अपने पूर्वजों के सामने यह सवाल क्यों नहीं उठाते हैं या स्वयं इस प्रश्न का हल नहीं खोजते हैं।

दरअसल, भारत में सभी उत्सव एवं संस्कार दिन में ही किये जाते थे। सीता और द्रौपदी का स्वयंवर भी दिन में ही हुआ था। प्राचीन काल से लेकर मुगलों के आने तक भारत में विवाह दिन में ही हुआ करते थे। मुस्लिम पिशाच आक्रमणकारियों के भारत पर हमले करने के बाद ही, हिन्दुओं को अपनी कई प्राचीन परम्पराएं तोडऩे को विवश होना पड़ा था।

मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा भारत पर अतिक्रमण करने के बाद भारतीयों पर बहुत अत्याचार किये गये। यह आक्रमणकारी पिशाच हिन्दुओं के विवाह के समय वहां पहुंचकर लूटपाट मचाते थे। कामुक मुस्लिम शासन काल में, जब अत्याचार चरमसीमा पर थे, मुगल सैनिक हिन्दू लड़कियों को बलपूर्वक उठा लेते थे और उन्हें अपने आकाओं को सौंप देते थे।

भारतीय ज्ञात इतिहास में सबसे पहली बार रात्रि में विवाह सुन्दरी और मुंदरी नाम की दो ब्राह्मण बहनों का हुआ था, जिनकी विवाह वीर दुल्ला भट्टी ने अपने संरक्षण में ब्राह्मण युवकों से कराया था। उस समय दुल्ला भट्टी ने अत्याचार के खिलाफ हथियार उठाये थे। पंजाब में इसी दिन को पर्व रूप में लोहड़ी के रूप में मनाते हैं।

दुल्ला भट्टी ने ऐसी अनेकों लड़कियों को मुगलों से छुड़ाकर, उनका हिन्दू लड़कों से विवाह कराया। उसके बाद मुस्लिम आक्रमणकारियों के आतंक से बचने के लिए हिन्दू रात के अंधेरे में विवाह करने लगे। लेकिन रात्रि में विवाह करते समय भी यह ध्यान रखा जाता है कि-नाच-गाना, दावत, जयमाला, आदि भले ही रात्रि में हो जाए, लेकिन वैदिक मन्त्रों के साथ फेरे प्रात: पौ फटने के बाद ही हो। लड़के लड़की वाले घराती और बराती असल में ज्यादा इसलिए बुलाये जाते थे कि वो विवाह की सुरक्षा कर सकें, वो सभी हथियार लेकर एकजुट होकर चलते थे।

पंजाब से शुरू हुई परंपरा को पंजाब में ही समाप्त किया गया। फिल्लौर से लेकर काबुल तक महाराजा रंजीत सिंह का राज हो जाने के बाद उनके सेनापति हरीसिंह नलवा ने सनातन वैदिक परम्परा अनुसार दिन में खुले आम विवाह करने और उनको सुरक्षा देने की घोषणा की थी। हरीसिंह नलवा के संरक्षण में हिन्दुओं ने दिनदहाड़े- बैंडबाजे के साथ विवाह शुरू किये।

तब से पंजाब में फिर से दिन में विवाह का प्रचालन शुरू हुआ। पंजाब में अधिकांश विवाह आज भी दिन में ही होते हैं। अन्य राज्य भी धीरे धीरे अपनी जड़ों की ओर लौटने लगे हैं, हरीसिंह नलवा ने मुसलमान बने हिन्दुओं की घर वापसी कराई, मुसलमानों पर जजिया कर लगाया, हिन्दू धर्म की परम्पराओं को फिर से स्थापित किया, इसीलिए उनको पुष्यमित्र शुंग का अवतार कहा जाता है ।

देश आजाद होने के बाद भी आज भी कई लोग रात्रि विवाह और ज्यादा सुरक्षा बल वाली बारात वाली रूढि़वादी परम्परा लोग बिन बिचारे ढोये जा रहे हैं। अब भय किसी का नहीं है, पुन: शान से सनातन धर्म की ओर लौटें, वैदिक मन्त्रों के साथ कुछ ईष्ट मित्रों के साथ सादगी से शुभ विवाह सम्पन्न करें। गायत्री परिवार दिन में ही विवाह सम्पन्न वैदिक वैवाहिक मन्त्रों और यज्ञ द्वारा करवाता है।
साभार: गायत्री शक्तिपीठ उज्जैन

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