समाजसेवा की नई इबारत लिख रहे हैं आगरा के पूरन डावर
कोरोना महामारी ने भले ही हमारे जीवन को संकट के समुंदर में लाकर खड़ा कर दिया हो, लेकिन इस दौरान हमें समाज का एक मानवीय चेहरा भी देखने को मिला। डर को दरकिनार करते हुए कई लोग और संस्थाएं उनकी मदद के लिए आगे आए, जिन्हें अमूमन सरकारी प्रयासों का लाभ सबसे आखिरी में मिलता है। इस संकट ने हमें कई अनसंग हीरो दिए हैं, जिन्हें देखकर मानवीय मूल्यों, मानवता, परोपकार जैसे शब्दों की साथर्कता का अहसास होता है। ऐसे ही एक हीरो हैं, ताजनगरी आगरा के विख्यात व्यवसायी पूरन डावर।
यूं तो उनकी संस्था ‘सक्षम डावर मेमोरियल ट्रस्ट पिछले कई सालों से समाज के कमजोर तबके का सहारा बनती आई है, लेकिन लॉकडाउन के दौरान उन्होंने जो किया उसकी तारीफ के लिए शब्द भी कम पड़ जाएंगे। ‘सक्षम डावर मेमोरियल ट्रस्ट ने आगरा और उसके आसपास के इलाकों में गरीबों को मुफ्त भोजन उपलब्ध कराया। खास बात यह है कि भोजन पकाते वक्त उन तमाम मानदंडों का पालन किया गया, जो स्वच्छता के लिए आवश्यक हैं।
पूरन डावर के लिए समाज सेवा कर्तव्य है और इस लॉकडाउन ने उन्हें कर्तव्य निर्वहन का एक और मौका दिया, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। ऐसे लोग बिरले ही मिलते हैं, जो अतीत के अनुभवों और संघर्ष के दिनों की यादों को फीका नहीं पडऩे देते और डावर उन्हीं में से एक हैं।
भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौर में रिफ्यूजी कैंप में रहे पूरन डावर के परिवार ने भूख को बहुत करीब से देखा और इसलिए डावर भी खाली पेट की पीड़ा को समझते हैं। यही वजह है कि वे ‘कोई भूखा नहीं रहे नारे के साथ सक्षम डावर मेमोरियल ट्रस्ट के बैनर तले भूख से जंग का शंखनाद काफी पहले ही कर चुके हैं।
सक्षम डावर मेमोरियल ट्रस्ट हर रोज समाज के कमजोर तबके को महज 10 रुपए में भोजन उपलब्ध करा रहा है। आगरा के विभिन्न इलाकों में संस्थान की गाडिय़ां निर्धारित समय अनुसार पहुंचती हैं और फिर नजर आती है, समाजसेवा की एक ऐसी तस्वीर जिसे कल्पना से धरातल में उताराना हर किसी के बस की बात नहीं। ट्रस्ट की किचन में हर रोज हजारों लोगों के लिए खाना तैयार होता है।
आटा गूथने से लेकर रोटी बनाने की बड़ी-बड़ी मशीनें, यूनिफार्म में काम करते कर्मचारी और स्वच्छता का खास ख्याल, ट्रस्ट की किचन का यह नजारा पूरन डावर की इमानदार सोच को दर्शाता है। साथ ही यह भी स्पष्ट करता है कि उनका मिशन केवल लोगों का पेट भरना ही नहीं, बल्कि उन्हें स्वच्छ वातावरण में निर्मित पौष्टिक एवं स्वादिष्ट भोजन उपलब्ध कराना है।
डावर मानते हैं कि देश ने कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन भूखे तक रोटी पहुंचाने में अभी भी हमें काफी कुछ करने की जरूरत है। वह कहते हैं, ‘गांधी जी ने कहा था, भूखे के लिये भगवान मात्र रोटी के रूप में ही आ सकता है, आज की सबसे बड़ी ज़रूरत भुखमरी को समाप्त करना है, अगर ऐसा न हुआ तो यही आबादी जिसके बल पर हम दुनिया के लिये उत्पादन फ़ैक्टरी बनाना चाहते हैं, जिसे हम वरदान समझते हैं, अभिशाप बन जाएगी। यह सत्य है काम करके ही जीविका कमाई जा सकती है, उसके प्रयास हो रहे हैं, लेकिन उससे पहले पेट में दाना ज़रूरी है।
पूरन डावर सालों से समाज के लिए कुछ न कुछ करते आ रहे हैं, लेकिन ‘सक्षम डावर मेमोरियल ट्रस्ट की शुरुआत 1998 में हुई। एक हादसे में अपने जवान बेटे को खोने के बाद डावर सामान्य पिता की तरह खुद को दु:ख के भंवर में जाने दे सकते थे, लेकिन उन्होंने समाज के प्रति अपने कर्तव्य को तवज्जो दी और सक्षम डावर मेमोरियल ट्रस्ट अस्तित्व में आया।
भूखों का पेट भरने के अलावा, ट्रस्ट शिक्षा, स्वास्थ्य और खेल के क्षेत्र में भी काम करता है। डावर केवल आगरा तक ही सीमित होकर नहीं रहना चाहते। उनकी इच्छा है कि दूसरे शहरों में भी भूख के खिलाफ जंग की शुरुआत की जाए और इसके लिए उन्हें ऐसे लोगों की तलाश है, जो वास्तव में समाजसेवा को जुनून के तौर पर देखते हों।
पूरन डावर शुरू से ‘आउट ऑफ द बॉक् सोच वाले व्यक्ति रहे हैं, यही वजह है कि ‘सिफर से आरंभ हुआ उनका सफर आज शोहरत से लबरेज है। वह हमेशा कुछ न कुछ नया सोचने में विश्वास रखते हैं। उदाहरण के तौर पर कोरोना संकट को देखते हुए वह श्रमिकों को साइकिल पर चलती-फिरती दुकान लगाकर रोजगार की सीख देते हैं। वह कहते हैं, ‘साइकिल का एक ऐसा मॉडल तैयार किया जा सकता है जिस पर चाय-समोसे की दुकान चलाई जा सकती है। साइकिल पर चाय बनाने के लिए एक छोटा चूल्हा फिट किया जा सकता है, जबकि समोसे गर्म करने के लिए हॉटकेस की व्यवस्था की जा सकती है। डावर के इस विचार की एमएसएमई के मंत्री चौधरी उदयभान सिंह ने भी तारीफ की है।