अध्यात्म

गुरु का दिया हुआ ज्ञान और पिता का प्यार कभी दिखाई नहीं देता, पर हमेशा साथ रहता है

पिता और शिक्षक ने जो संस्कार तुम्हें दिये हैं, वही कमाने के लिए पथप्रदर्शक रहेंगें

भोपाल. अजी सुनते हो, राहुल को कम्पनी में जाकर टिफिन दे आओगे क्या, क्यों आज राहुल टिफिऩ लेकर नहीं गया, शरद राव ने पूछा। आज राहुल की कम्पनी के चेयरमैन आ रहे हैं, इसलिए राहुल सुबह 7 बजे ही निकल गया और इतनी सुबह खाना नहीं बन पाया था। ठीक है, दे आता हूं मैं। शरद राव ने हाथ का पेपर रख दिया और वो कपड़े बदलने के लिए कमरे में चले गए। पुष्पाबाई ने राहत की सांस ली। शरद राव तैयार हुए मतलब उसके और राहुल के बीच हुआ विवाद उन्होंने नहीं सुना था। विवाद भी कैसा, हमेशा की तरह राहुल का अपने पिताजी पर दोषारोपण करना और पुष्पाबाई का अपनी पति के पक्ष में बोलना। विषय भी वही, हमारे पिताजी ने हमारे लिए क्या किया, मेरे लिए क्या किया है मेरे बाप ने।

मां मेरे मित्र के पिताजी भी शिक्षक थे, पर देखो उन्होंने कितना बड़ा बंगला बना लिया। नहीं तो एक ये हमारे पापा (पिताजी)। अभी भी हम किराये के मकान में ही रह रहे हैं। राहुल, तुझे मालूम है कि तुम्हारे पापा घर में बड़े हैं और दो बहनों और दो भाईयों की शादी का खर्चा भी उन्होंने उठाया था। सिवाय इसके तुम्हारी बहन की शादी का खर्चा भी उन्होंने ने ही किया था। अपने गांव की जमीन की कोर्ट कचेहरी भी लगी ही रही। ये सारी जवाबदारियां किसने उठाई।

राहुल ने कहा क्या उपयोग हुआ उसका, उनके भाई-बहन बंगलों में रहते हैं। कभी भी उन्होंने सोचा कि हमारे लिए जिस भाई ने इतने कष्ट उठाए, उसने एक छोटा सा मकान भी नहीं बनाया तो हम ही उन्हें एक मकान बना कर दे दें।

एक क्षण के लिए पुष्पाबाई की आंखें भर आईं। क्या बताएं, अपने जन्म दिए पुत्र को बाप ने क्या किया मेरे लिये, पूछ रहा हैं। फिर बोली, तुम्हारे पापा ने अपना कर्तव्य निभाया। भाई-बहनों से कभी कोई आशा नहीं रखी। राहुल मूर्खों जैसी बात करते हुए बोला, अच्छा वो ठीक है। उन्होंने हजारों बच्चों की ट्यूशन्स ली। यदि उनसे फीस ले लेते तो आज पैसो में खेल रहे होते। आजकल के क्लासेस वालों को देखो, इंपोर्टेड गाडिय़ों में घुमते हैं।

पुष्पा बोली यह तुम सच बोल रहे हो, परन्तु तुम्हारे पापा (पिताजी) का तत्व था,
ज्ञान दान का पैसा कभी नहीं लेना। उनके इन्हीं तत्वों के कारण उनकी कितनी प्रसिद्धि हुई और कितने पुरस्कार मिले, उसकी कल्पना हैं तुझे। ये सुनते ही राहुल एकदम नाराज़ हो गया और बोला क्या चाटना है उन पुरस्कारों को। उन पुरस्कारों से घर थोड़े ही बनते आएगा। पड़े-पड़े ही धूल खाते हुए। कोई नहीं पूछता उनको।

इतने में दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी। राहुल ने दरवाजा खोला तो शरद राव खड़े थे। पापा ने उनका बोलना तो नहीं सुना इस डर से राहुल का चेहरा उतर गया। परन्तु शरद राव बिना कुछ बोले अन्दर चले गये और वह वाद वहीं खत्म हो गया।

ये था पुष्पाबाई और राहुल का कल का झगड़ा, पर आज, शरद राव ने टिफिन साइकिल में अटकाया और तपती धूप में औद्योगिक क्षेत्र की राहुल की कम्पनी के लिए निकल पड़े। 7 किलोमीटर दूर कंपनी तक पहुंचते-पहुंचते उनका दम फूल गया था। कम्पनी के गेट पर सिक्युोरिटी गार्ड ने उन्हें रोक दिया।

राहुल पाटिल साहब का टिफिऩ देना है। अन्दर जाऊं क्या। अभी नहीं, साहब आए हुए हैं, गार्ड बोला, चेयरमैन साहब आये हुए हैं। उनके साथ मीटिंग चल रही है। किसी भी क्षण वो मीटिंग खत्म कर आ सकते हैं। तुम बाजू में ही रहिए। चेयरमैन साहब को आप दिखना नहीं चाहिये।

शरद राव थोड़ी दूरी पर धूप में ही खड़े रहे। आसपास कहीं भी छांव नहीं थी। थोड़ी देर बोलते बोलते एक घंटा निकल गया। पांवों में दर्द उठने लगा था। इसलिये शरद राव वहीं एक तप्त पत्थर पर बैठने लगे, तभी गेट से आवाज आई, शायद मीटिंग खत्म हो गई होगी।

चेयरमैन साहेब के पीछे पीछे कई अधिकारी और उनके साथ राहुल भी बाहर आया। उसने अपने पिताजी को वहां खड़े देखा तो मन ही मन नाराज़ हो गया। चेयरमैन साहब कार का दरवाजा खोलकर बैठने ही वाले थे, पर उनकी नजऱ शरद राव की ओर उठ गई। कार में न बैठते हुए वो वैसे ही बाहर खड़े रहे। वो सामने कौन खड़ा है, उन्होंने सिक्योरिटी गार्ड से पूछा। अपने राहुल सर के पिताजी हैं। उनके लिए खाने का टिफिऩ लेकर आये हैं। गार्ड ने कंपकंपाती आवाज में कहा।

बुलवाइये उनको, जो नहीं होना था वह हुआ। राहुल के तन से पसीने की धाराएं बहने लगी। क्रोध और डर से उसका दिमाग सुन्न हुआ जान पडऩे लगा। गार्ड के आवाज देने पर शरद राव पास आए। चेयरमैन साहब आगे बढ़े और उनके समीप गए। आप पाटिल सर हैं ना, डीएन हाईस्कूल में शिक्षक थे। हां, आप कैसे पहचानते हो मुझे। कुछ समझने के पहले ही चेयरमैन साहब ने शरद राव के चरण छुए। सभी अधिकारी और राहुल वो दृश्य देखकर अचंभित रह गए।

सर, मैं अतिश अग्रवाल, आपका विद्यार्थी। आप मुझे घर पर पढ़ाने आते थे। हां, हां याद आया। बाप रे बहुत बड़े व्यक्ति बन गये आप तो। चेयरमैन हंस दिए। फिर बोले, सर आप यहां धूप में क्या कर रहे हैं, आईये अंदर चलते हैं। बहुत बातें करनी हैं आपसे। सिक्योरिटी तुमने इन्हें अन्दर क्यों नहीं बिठाया। गार्ड ने शर्म से सिर नीचे झुका लिया। वो देखकर शरद राव ही बोले, उनकी कोई गलती नहीं है, आपकी मीटिंग चल रही थी। आपको तकलीफ न हो, इसलिये मैं ही बाहर रुक गया। ओके, ओके, चेयरमैन साहब ने शरद राव का हाथ अपने हाथ में लिया और उनको अपने साथ आलीशन चैम्बर में ले गये।

बैठिये सर, अपनी कुर्सी की ओर इंगित करते हुए बोले। नहीं-नहीं, वो कुर्सी तो आपकी है, शरद राव सकपकाते हुए बोले। सर, आपके कारण वो कुर्सी मुझे मिली है। तब पहला हक आपका है। चेयरमैन साहब ने जबरदस्ती से उन्हें अपनी कुर्सी पर बिठाया। आपको मालूम नहीं होगा पवार सर, जनरल मैनेजर की ओर देखते हुए बोले, पाटिल सर नहीं होते तो आज ये कम्पनी नहीं होती और मैं मेरे पिताजी की अनाज की दुकान संभालता रहता।

राहूल और जीएम दोनों आश्चर्य से उनकी ओर देखते ही रहे। स्कूल समय में मैं बहुत ही डब्बू विद्यार्थी था। जैसे तैसे मुझे नवीं कक्षा तक पहुंचाया गया। शहर की सबसे अच्छी क्लासेस में मुझे एडमिशन दिलाया गया, परन्तु मेरा ध्यान कभी पढ़ाई में नहीं लगा। उस पर अमीर बाप की औलाद, दिन भर स्कूल में मौज मस्ती और मारपीट करना। शाम की क्लासेस से बंक मार कर मुवी देखना यही मेरा शगल था। मां को वो सहन नहीं होता।

उस समय पाटिल सर कड़े अनुशासन और उत्कृष्ट शिक्षक के रूप में प्रसिद्ध थे। मां ने उनके पास मुझे पढ़ाने की विनती की, परन्तु सर के छोटे से घर में बैठने के लिए जगह ही नहीं थी, इसलिये सर ने पढ़ाने में असमर्थता दर्शाई। माँ ने उनसे बहुत विनती की और हमारे घर आकर पढ़ाने के लिए मुंह मांगी फीस का बोला। सर ने फीस के लिए तो मना कर दिया, परन्तु अनेक प्रकार की विनती करने पर घर आकर पढ़ाने को तैयार हो गये। पहले दिन सर आये, हमेशा की तरह मैं शैतानी करने लगा। सर ने मेरी अच्छी तरह से धुनाई कर दी। उस धुनाई का असर ऐसा हुआ कि मैं चुपचाप बैठने लगा।

तुम्हें कहता हूं राहुल, पहले हफ्ते में ही मुझे पढऩे में रुचि जागृत हो गई। इसके बाद मुझे पढ़ाई के अतिरिक्त कुछ भी सुझाई नहीं देता था। सर इतना अच्छा पढ़ाते थे, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान जैसे विषय जो मुझे कठिन लगते थे वो अब सरल लगने लगे थे। सर कभी आते नहीं थे तो मैं व्यग्र हो जाता था। नवीं कक्षा में मैं दुसरे नम्बर पर आया। मां-पिताजी को खूब खुशी हुई। मैं तो, जैसे हवा में उडऩे लगा था। दसवीं में मैंने सारी क्लासेस छोड़ दी और सिर्फ पाटिल सर से ही पढऩे लगा था और दसवीं में मेरिट में आकर मैंने सबको चौंका दिया था।

माय गुडनेस, पर सर फिर भी आपने सर को फीस नहीं दी, जनरल मैनेजर ने पूछा।
मां-पिताजी के साथ मैं सर के घर पेड़े लेकर गया था। पिताजी ने सर को एक लाख रुपए का चेक दिया, पर सर ने वो नहीं लिया। उस समय सर क्या बोले वो मुझे आज भी याद है। सर बोले, मैंने कुछ भी नहीं किया। आपका लड़का ही बुद्धिमान है। मैंने सिर्फ उसे रास्ता बताया और मैं ज्ञान नहीं बेचता। मैं वो दान देता हूं। बाद में मैं सर के मार्गदर्शन में ही बारहवीं में पुन: मेरिट में आया। बाद में बीई करने के बाद अमेरिका जाकर एमएस किया और अपने शहर में ही यह कम्पनी शुरु की। एक पत्थर को तराशकर सर ने हीरा बना दिया और मैं ही नहीं तो सर ने ऐसे अनेक असंख्य हीरे बनाए हैं। सर आपको कोटि-कोटि प्रणाम। चेयरमैन साहब ने अपनी आंखों में आए आंशू रुमाल से पोंछे।

परन्तु यह बात तो अद्भुत ही है कि, बाहर शिक्षा का और ज्ञानदान का बाजार भरा पड़ा होकर भी सर ने एक रुपया भी न लेते हुए हजारों विद्यार्थियों को पढ़ाया, न केवल पढ़ाए पर उनमें पढऩे की रुचि भी जगाई। वाह सर मान गये आपको और आपके आदर्श को। शरद राव की ओर देखकर जी एम ने कहा।

अरे सर, ये व्यक्ति तत्त्वनिष्ठ हैं। पैसों और मान-सम्मान के भूखे भी नहीं हैं। विद्यार्थी का भला हो यही एक मात्र उद्देश्य था, चेयरमैन बोले। मेरे पिताजी भी उन्हीं मे से एक। एक समय भूखे रह लेंगे, पर अनाज में मिलावट करके बेचेंगे नहीं। ये उनके तत्व थे। जिन्दगी भर उसका पालन किया। ईमानदारी से व्यापार किया। उसका फायदा आज मेरे भाईयों को हो रहा है। बहुत देर तक कोई कुछ भी नहीं बोला। फिर चेयरमैन ने शरद राव से पूछा-सर आपने मकान बदल लिया या उसी मकान में रहते हैं।

उसी पुराने मकान में रहते हैं सर, शरद राव के बदले में राहुल ने ही उत्तर दिया। उस उत्तर में पिताजी के प्रति छिपी नाराजग़ी तत्पर चेयरमैन साहब की समझ में आ गई। तय रहा फिर, सर आज मैं आपको गुरु दक्षिणा दे रहा हूं। इसी शहर में मैंने कुछ फ्लैट्स ले रखे हैं, उसमें का एक थ्री बीएचके का मकान आपके नाम कर रहा हूं, क्या, शरद राव और राहुल दोनों आश्चर्य चकित रूप से बोलें। नहीं-नहीं इतनी बड़ी गुरु दक्षिणा नहीं चाहिये मुझे, शरद राव आग्रहपूर्वक बोले।

चेयरमैन साहब ने शरद राव के हाथ को अपने हाथ में लिया, सर, प्लीज ना मत करिये और मुझे माफ करें। काम की अधिकता में आपकी गुरु दक्षिणा देने में पहले ही बहुत देर हो चुकी है। फिर राहुल की ओर देखते हुए उन्होंने पुछ लिया, राहुल तुम्हारी शादी हो गई क्या, नहीं सर, जम गई है। और जब तक रहने को अच्छा घर नहीं मिल जाता तब तक शादी नहीं हो सकती। ऐसी शर्त मेरे ससुरजी द्वारा रखी होने से अभी तक शादी की डेट फिक्स नहीं की, तो फिर हॉल भी बुक नहीं किया।

चेयरमैन ने फोन उठाया और किसी से बात करने लगे। समाधान कारक चेहरे से फोन रखकर, धीरे से बोले, अब चिंता की कोई बात नहीं। तुम्हारे मैरिज़ गार्डन का काम हो गया। सागर लान्स तो मालूम ही होगा, सर वह तो बहुत महंगा है, अरे तुझे कहां पैसे चुकाने है। सर के सारे विद्यार्थी सर के लिए कुछ भी कर सकते हैं। सर के बस एक आवाज़ देने की बात है।

परन्तु सर तत्वनिष्ठ हैं, वैसा करेंगे भी नहीं। इस लान्स का मालिक भी सर का ही विद्यार्थी है। उसे मैंने सिर्फ बताया। सिर्फ हॉल ही नहीं वह तो भोजन सहित संपूर्ण शादी का खर्चा भी उठाने की जिम्मेदारियां ली है उसने। वह भी स्वखुशी से। तुम केवल तारीख बताओ और सामान लेकर जाओ। बहुत बहुत धन्यवाद सर। राहुल अत्यधिक खुशी से हाथ जोड़कर बोला। धन्यवाद मुझे नहीं, तुम्हारे पिताश्री को दो राहुल ये उनकी पुण्याई है और मुझे एक वचन दो राहुल, सर के अंतिम सांस तक तुम उन्हें अलग नहीं करोगे और उन्हें कोई दुख भी नहीं होने दोगे।

मुझे जब भी मालूम चला कि तुम उन्हें दुख दे रहे हो तो, न केवल इस कम्पनी से लात मारकर भगा दूंगा, बल्कि पूरे महाराष्ट्र भर के किसी भी स्थान पर नौकरी करने लायक नहीं छोडूंगा, ऐसी व्यवस्था कर दूंगा। चेयरमैन साहब कठोर शब्दों में बोले।

नहीं सर, मैं वचन देता हूं, वैसा कुछ भी नहीं होगा। राहुल हाथ जोड़कर बोला। शाम को जब राहुल घर आया तब, शरद राव किताब पढ़ रहे थे। पुष्पाबाई पास ही सब्जी काट रही थी। राहुल ने बैग रखी और शरद राव के पांव पकड़कर बोला, पापा मुझसे गलती हो गई। मैं आपको आज तक गलत समझता रहा। मुझे पता नहीं था पापा कि आप इतने बड़े व्यक्तित्व लिये हो। शरद राव ने उसे उठाकर अपने सीने से लगा लिया।

अपना लड़का क्यों रो रहा है पुष्पाबाई की समझ में नहीं आ रहा था, परन्तु कुछ अच्छा घटित हुआ है, इसलिये पिता-पुत्र में प्यार उमड़ रहा है। ये देखकर उनके नयनों से भी कुछ बूंदे गाल पर लुढ़क आईं।

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