अध्यात्म

जिसके रज में इतनी शक्ति है वह ईश्वर कितना शक्तिशाली होगा

मैं अज्ञानी मूर्ख ना जान सकी, मुझे ब्रज की रज की महिमा और उसकी महत्ता का नहीं पता था

भोपाल. लोग एक-एक करके खुशबू को सूंघते हुए शोभा के घर तक आ पहुंचे। साथ में उसका पति भी था। उसने आकर पूछा कि, आज तुमने खाने में क्या बनाया है। शोभा ने कहा कि, मैंने तो दाल और चावल बनाए हैं। सब लोग हैरान हो गए कि दाल-चावल की इतनी अच्छी खुशबू। सब लोग शोभा का मुंह देखने लगे कि आज तो हम भी तेरे घर से दाल चावल खा कर जाएंगे। उसने किसी को मना नहीं किया और थोड़ा-थोड़ा दाल चावल सभी को दिए। दाल-चावल खाकर सब लोग उसे कहने लगे, यह दाल-चावल नहीं! ऐसे लग रहा है कि हम लोग अमृत चख रहे हैं।

शोभा के पति ने कहा कि, तुमने आज दाल चावल कैसे बनाए। इस पर शोभा ने कहा कि, मैंने तो यह घड़े के जल से ही दाल-चावल बनाए हैं। इस पर शोभा का पति बोला-तेरी बहन ने तो बहुत अच्छा उपहार दिया है। अगले दिन जब शोभा घड़ा भरनेे के लिए जाने लगी तो उसने देखा घड़ा तो पहले से ही भरा हुआ है। उसका जल वैसा का वैसा है, जितना वो कल लाई थी। उसने उसमें से खाना भी बनाया था, जल भी पिया था, लेकिन घड़ा फिर भी भरा का भरा था। यह देख शोभा एकदम से हैरान रह गई कि यह कैसे हो गया।

अचानक उसी दिन उसकी बहन कीर्ति उससे मिलने के लिए उसके घर आई। शोभा अपनी बहन को देख कर बहुत खुश हुई। उसको गले मिली और उस को पानी पिलाया। उसने अपनी बहन को कहा कि यह जो तूने मुझे घड़ा दिया था, यह तो बहुत ही चमत्कारी घड़ा है। मैंने तो तुच्छ समझ कर रसोई के ऊपर रख दिया था, लेकिन कल से, जबसे मैंने इसमें जल भरा है, तब से जल से भरा हुआ है। इसका जल इतना मीठा है कि इसके जल से मैंने दाल और चावल बनाए जो कि अमृत के समान बने थे।

उसकी बहन बोली, अरी, ओ मेरी भोली बहन! क्या तू नहीं जानती कि यह घड़ा ब्रज की रज यानी वृंदावन की माटी से बना है? जिस पर साक्षात किशोरी जू और ठाकुर जी नंगे पांव चलते हैं, उसी रज से यह घड़ा बना है। यह घड़ा नहीं साक्षात किशोरी जी और ठाकुर जी के चरण तुम्हारे घर पड़े हैं। किशोरी जी और ठाकुर जी का ही स्वरूप तुम्हारे घर आया है।

यह सुनकर उसकी बहन अपने आप को कोसती हुई और शर्मिंदा होती हुई अपनी बहन के कदमों में गिर पड़ी और बोली – मुझे क्षमा कर दो, जो मैं वृंदावन की रज (माटी) की महिमा को न जान सकी। जिसकी माटी में इतनी शक्ति है, तो उस बांके बिहारी और लाडली जू में कितनी शक्ति होगी। मैं अज्ञानी मूर्ख ना जान सकी। मुझे ब्रज की रज की महिमा और उसकी महत्ता का नहीं पता था, मुझे क्षमा कर दो।

उसकी बहन उसको उठाकर गले लगाती हुई बोली कि, बहन किशोरी जी और ठाकुर जी बहुत ही करुणावतार हैं। तुम्हारे ऊपर उनकी कृपा थी जो इस घड़े के रूप में, इस रज के रूप में तुम्हारे घर पधारे। इस पर शोभा बोली-बहन तुम्हारे ही कारण मैं धन्य हो उठी हूं। तुम्हारा लाख-लाख धन्यवाद। यह कहकर दोनों बहने आंखों में आंसू भरकर एक दूसरे के गले लग कर रोने लगीं।

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