हारपून मिसाइल और टॉरपीडो का इस्तेमाल समुद्री सुरक्षा में कारगर साबित होगा। इसकी कीमत 11 अरब 80 करोड़ रुपए है
वॉशिंगटन. अमेरिकी सरकार ने हारपून एंटी शिप मिसाइल और टॉरपीडो को भारत के लिए बेचने की मंजूरी दी है। इसकी कीमत करीब 11 अरब 80 करोड़ 59 लाख 62 हजार 500 रुपए (155 मिलियन डॉलर) के करीब होगी। डिफेंस सिक्योरिटी कोऑपरेशन एजेंसी (डीएससीए) ने दो अलग-अलग रिलीज में जानकारी दी कि स्टेट डिपार्टमेंट ने हारपून मिसाइल समेत अन्य सैन्य उपकरणों को भारत के लिए बेचने के लिए मंजूरी दे दी है।
हारपून एंटी शिप मिसाइल की कीमत करीब 7 अरब रुपए (92 मिलियन डॉलर) है। जबकि लाइटवेट टॉरपीडो और और तीन एमके 54 एक्सरसाइज टॉरपीडो के साथ संबंधित उपकरणों की कीमत करीब 4 अरब 80 करोड़ रुपए (63 मिलियन डॉलर) है। हारपून मिसाइल एंटी शिप मिसाइल है जबकि टॉरपीडो को पी-8आई विमानों से टारगेट किया जा सकता है। इनका इस्तेमाल समुद्री सुरक्षा में कारगर साबित होगा।
अमेरिकी सरकार और कंपनी इंजीनियरिंग सहायता भी देगी
डीएससीए ने मंगलवार को एक बयान में डील से संबंधित प्रमाणपत्रों को जारी करते हुए कांग्रेस को इसकी जानकारी दी। डीएससीए के मुताबिक, हारपून एयर लॉन्च मिसाइल के साथ कंटेनर, स्पेयर पार्ट, इंस्ट्रूमेंट, तकनीक जानकारी से जुड़े कागजात, ट्रेनिंग इक्विपमेंट और स्पेसिलाइज्ड असाइनमेंट एयरलिफ्ट मिशन (एसएएएम) शामिल है। अमेरिकी सरकार और कंपनी के कॉन्ट्रैक्टर, इंजीनियरिंग और दूसरी तरह की सहायता भी मुहैया कराएंगे।
भारत हारपून और टॉरपीडो के साथ यह सब मांगा था
डीएससीए ने मंगलवार को एक बयान में डील से संबंधित प्रमाण-पत्रों को जारी करते हुए कांग्रेस को जानकारी दी। टॉरपीडो की बिक्री के बारे में डीएससीए ने बताया कि भारत सरकार ने 16 एमके 54 ऑल अप राउंड लाइटवेट टॉरपीडो और तीन एमके 54 एक्सरसाइज टॉरपीडो किट सहित) खरीदने की इच्छा जताई थी। इसके साथ एमके 54 स्पेयर पाट्र्स, दो टारपीडो कंटेनर, फ्यूल टैंक, फिक्स्ड विंग और एयर लॉन्च के लिए जरूरी उपकरणों की भी मांग की थी।
मिसाइल पी-81 विमानों से दागी जा सकती है
डीएससीए के मुताबिक, हारपून एयर लॉन्च मिसाइल के साथ कंटेनर, स्पेयर पार्ट, इंस्ट्रूमेंट, तकनीक जानकारी से जुड़े कागजात, ट्रेनिंग इक्विपमेंट और स्पेसिलाइज्ड असाइनमेंट एयरलिफ्ट मिशन (एसएएएम) शामिल हैं। अमेरिकी सरकार और कंपनी के कॉन्ट्रैक्टर, इंजीनियरिंग और दूसरी तरह की सहायता भी मुहैया कराएंगे। हारपून मिसाइल सिस्टम का इस्तेमाल अमेरिका और उनके सहयोगियों समुद्री सीमाओं की रक्षा के लिए किया जाता है। यह सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल पी-81 विमानों से दागी जा सकती हैं।
भारत वर्तमान और भविष्य के खतरों से निपट सकेगा
डील के बारे में डीएससीए ने बताया, हारपून और टॉरपीडो मिसाइल की मदद से भारत वर्तमान और भविष्य के खतरों से अपनी सुरक्षा क्षमताओं को बड़ा सकेगा। हथियारों की बिक्री से क्षेत्रीय असंतुलन के बारे में एजेंसी ने कहा, किसी तरह का क्षेत्रीय संतुलन नहीं बिगड़ेगा। यह डील अमेरिका-भारत सामरिक संबंधों को मजबूत करेगी। इसे अमेरिका द्वारा भारत के प्रमुख रक्षा भागीदार के तौर देखा जाना चाहिए। यह कदम अमेरिकी विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा का समर्थन है। इससे राजनीतिक स्थिरता आएगी। इंडो-पैसिफिक और साउथ एशिया आर्थिक प्रगति होगी।
जिरकॉन का पहला टेस्ट पिछले साल दिसंबर में
इधर, रूस जिरकॉन हाइपरसॉनिक मिसाइल का पहला टेस्ट 2024-25 में करेगा
रूस परमाणु पनडुब्बी से पहली बार जिरकॉन हाइपरसोनिक मिसाइल का पहला परीक्षण 2024-2025 में करेगा। प्रोजेक्ट 885 रू यासेन सबमरीन का इस्तेमाल किया जाएगा। जिरकॉन का पहला टेस्ट पिछले साल दिसंबर में एडमिरल गोर्शकोव फ्रिगेट (प्रोजेक्ट 22350) से हुआ था। मिसाइल का अगला टेस्ट भी उसी जहाज से होगा। इससे रूसियन मिसाइल सिस्टम को उन्नत किया जा सकेगा।