नई दिल्ली
पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार को प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह से मुलाकात के बाद कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा भेजा। कांग्रेस छोड़ने के बाद चर्चाएं शुरू हो गईं कि पार्टी सिंधिया को दरकिनार कर रही थी। इस तरह की कयासबाजी का जवाब दिग्विजय सिंह ने दिया है।
दिग्विजय सिंह ने ट्विटर पर लिखा कि दरकिनार किए जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने कहा, 'कृपया ग्वालियर चंबल संभाग से विशेष रूप से मध्य प्रदेश के किसी भी कांग्रेस नेता से पूछें तो आपको पता चलेगा कि पिछले 16 महीनों में उनकी सहमति के बिना इस क्षेत्र में कुछ भी नहीं हुआ। मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं।'
बता दें कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ ही उनके समर्थक पार्टी के 22 विधायकों के इस्तीफे से राज्य की कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। कांग्रेस छोड़ने वाले 49 वर्षीय सिंधिया केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो सकते हैं। उनकी दादी दिवंगत विजय राजे सिंधिया इसी पार्टी में थीं। ऐसी अटकले हैं कि सिंधिया को राज्यसभा का टिकट दिया जा सकता है और उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया जा सकता है।
सिंधिया की बुआ एवं मध्य प्रदेश से बीजेपी विधायक यशोधरा राजे ने कांग्रेस छोड़ने के उनके कदम का स्वागत किया है। सिंधिया की एक अन्य बुआ वसुंधरा राजे भाजपा नेता हैं और वह राजस्थान की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं।
सिंधिया क्या इस्तीफे पर क्या बोली कांग्रेस
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने के कदम की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने लोगों के साथ विश्वासघात किया है और 'व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा' को विचारधारा से ऊपर रखा।
MP में नंबर गेम
मध्य प्रदेश की 230 सदस्यीय विधानसभा में दो सीटें फिलहाल रिक्त हैं। ऐसे में 228 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास मामूली बहुमत है। अगर 22 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार कर लिये जाते हैं तो विधानसभा में सदस्यों की प्रभावी संख्या महज 206 रह जाएगी। उस स्थिति में बहुमत के लिये जादुई आंकड़ा सिर्फ 104 का रह जाएगा। ऐसे में, कांग्रेस के पास सिर्फ 92 विधायक रह जाएंगे, जबकि भाजपा के 107 विधायक हैं। कांग्रेस को चार निर्दलीयों, बसपा के दो और सपा के एक विधायक का समर्थन हासिल है। उनके समर्थन के बावजूद कांग्रेस बहुमत के आंकड़े से दूर हो जाएगी। हालांकि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि निर्दलीय और बसपा तथा सपा के विधायक कांग्रेस का समर्थन जारी रखेंगे या वे भी भाजपा से हाथ मिला लेंगे।