नई दिल्ली
इसरो के वैज्ञानिक अब इस बात बात की जांच कर रहे हैं कि विक्रम लैंडर की लैंडिंग में गड़बड़ी कहां हुई, कैसे हुई और क्यों हुई? इसके लिए इसरो के वैज्ञानिकों ने लंबा-चौड़ा डाटा खंगालना शुरू कर दिया है. इसरो के वैज्ञानिक इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए विक्रम लैंडर के टेलिमेट्रिक डाटा, सिग्नल, सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर, लिक्विड इंजन का विस्तारपूर्वक अध्ययन कर रहे हैं.
अंतिम 20 मिनट का डाटा
विक्रम की लैंडिंग आखिरी पलों में गड़बड़ हुई. ये दिक्कत तब शुरू हुई जब विक्रम लैंडर चांद की सतह से मात्र 2.1 किलोमीटर ऊपर था. अब वैज्ञानिक विक्रम लैंडर के उतरने के रास्ते (Telemetric data of descent trajectory) का विश्लेषण कर रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक हर सब-सिस्टम के परफॉर्मेंस डाटा में कुछ राज छिपा हो सकता है. यहां लिक्विड इंजन का जिक्र बेहद अहम है. विक्रम लैंडर की लैंडिंग में इसका अहम रोल रहा है.
लैंडर से मिले आखिरी सिग्नल
वैज्ञानिक उन सिग्नल या उत्सर्जन संकेतों की जांच कर रहे हैं जिससे कुछ गड़बड़ी का पता चले. इसमें सॉफ्टवेयर की समस्या, हार्डवेयर की खराबी शामिल हो सकती है. इसमें आखिरी के 2.1 किलोमीटर के आंकड़े ज्यादा महत्व हैं.
सेंसर से डाउनलोड हुआ डाटा
विक्रम लैंडर जब चांद की सतह पर उतरने की कोशिश कर रहा था तो उसके सेंसर ने कई डाटा कमांड सेंटर को भेजे हैं. इनमें चांद के सतह की तस्वीर समेत कई दूसरे डाटा शामिल हैं. इस पर इसरो की टीम काम कर रही है.
संपर्क की कोशिश जारी
इसरो के वैज्ञानिक इस बात की लगातार कोशिश कर रहे हैं कि लैंडर से संपर्क स्थापित किया जा सके. वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर विक्रम ने क्रैश लैंड किया है तो उसके उपकरणों को नुकसान पहुंचा हुआ होगा, लेकिन अगर ऑर्बिटर के जरिए सही दिशा में लैंडर से संपर्क करने की कोशिश की जाए तो संपर्क स्थापित हो सकता है.
लैंडिग एरिया की मैपिंग
ऑर्बिटर में ऐसे उपकरण है कि जिनके पास चांद के सतह को मापने, तस्वीरें खींचने की क्षमता है. अगर ऑर्बिटर ऐसी कोई भी तस्वीर भेजता है तो लैंडर के बारे में जानकारी मिल सकती है.
आंतरिक चूक या बाहरी तत्व
इसरो विक्रम लैंडर की लैंडिंग में आई खामी का पता करने के लिए हर पहलू की जांच कर रहा है. इसरो की टीम अब ये जांच कर रही है कि क्या किसी किस्म की आंतरिक चूक हुई है या फिर कोई बाहरी तत्व का हाथ है.
दूसरी एजेंसियों से मदद
दुनिया भर की स्पेस एजेंसियों की निगाह चंद्रयान-2 की लैंडिंग पर थी. इसलिए इसरो इस पर भी विचार कर सकता है कि दूसरी एजेंसियों, जैसे कि स्पेस स्टेशन, टेलिस्कोप से विक्रम लैंडर से जुड़े जरूरी सेंसर डाटा को लिया जाए, ताकि विक्रम लैंडर का लोकेशन पता चल सके.
इसरो अब इस बात का अध्ययन कर रहा है कि क्या विक्रम की लैंडिंग के आखिरी फेज में कुछ परफॉर्मेंस विसंगति (divergences) आई है. क्योंकि जब लैंडर चांद की सतह से 2.1 किमी दूर था तब तक लैंडर की इन्हीं मशीनों ने सटीक काम किया था.