नई दिल्ली
ऐसे वक्त में जब निर्भया के गुनहगारों की फांसी लगातार किसी न किसी वजह से टलती जा रही है, सुप्रीम कोर्ट ने एक हत्यारे की मौत की सजा को माफ कर दिया है। हत्यारे ने 9 साल पहले 3 बच्चों की हत्या की थी। कोर्ट ने उसकी फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया है।
जस्टिस यू. यू. ललित, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एम. आर. शाह की बेंच ने ट्रायल कोर्ट और छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के उस फैसले पर तो मुहर लगाई कि मनोज सूर्यवंशी हत्याओं का दोषी है लेकिन मौत की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया। यह सजा कम से कम 25 वर्ष की होगी। बेंच ने मनोज सूर्यवंशी को 8 और 6 साल की उम्र के 2 लड़कों व 4 साल की एक लड़की की हत्या का दोषी माना लेकिन अपराध के वक्त हत्यारे की मानसिक स्थिति के मद्देनजर उसकी मौत की सजा माफ कर दी।
हत्यारे ने अदालत में कहा कि उसने बच्चों के पिता से 'बदला' लेने के लिए उनकी तब हत्या कर दी जब वे स्कूल से घर लौट रहे थे। सूर्यवंशी ने बताया कि बच्चों के पिता का छोटा भाई उसकी पत्नी को भगा ले गया था और उसने इसी का बदला लेने के लिए बच्चों को मार डाला।
बेंच ने अपने फैसले में 'वाजिब सजा' के सिद्धांत का जिक्र किया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में लिखा, 'अपराध के वक्त दोषी की मानसिक अवस्था…तब जब उसकी मृतकों के चाचा के साथ भाग गई थी और उसके खुद के बच्चे मां के साथ से वंचित हो गए थे…ये परिस्थितियां दोषी की मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने के पक्ष में हैं।'
बेंच के लिए फैसला लिखते हुए जस्टिस शाह ने वाजिब सजा के सिद्धांत का जिक्र किया और लिखा, 'यह सच है कि कोर्ट को समाज की वेदनाओं का जवाब देना चाहिए और जघन्य अपराध के लिए ऐसी सजा देनी चाहिए जो निवारक हो।' फैसले में आगे लिखा गया है कि कभी-कभी कहा जाता है कि सिर्फ अपराधियों के अधिकारों को ध्यान में रखकर फैसला सुनाया गया है और पीड़ितों को भूला दिया गया है। हालांकि, उसी दौरान जब दुर्लभ से दुर्लभतम मामले में मौत की सजा सुनाई जाती है तो कोर्ट को अपराध की कारक परिस्थितियों पर भी ध्यान रखना चाहिए। हर मामले में ये परिस्थितियां अलग-अलग होती हैं और सजा उसी पर निर्भर होनी चाहिए।