तेहरान
ईरान को कोरोना वायरस ने डरा दिया है। इतना डर कि प्रेजिडेंट हसन रूहानी इंटरनेट पर सख्त पाबंदी लगाने की सोच रहे हैं। ऐसा करने के लिए इस्लामी मूल्यों और शरिया को बहाना बनाया जा सकता है। इससे पहले नवंबर, 2019 में भी नेट बैन लगाया गया था। चीन के ग्रेट फायरबॉल की तरह ईरान सरकार हलाल नेट का कंसेप्ट लेकर आई है। इसकी आड़ में अंग्रेजी वेबसाइटों और डिजिटल प्लेटफॉर्म को बैन किया जा सकता है। फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर ईरान ने पहले ही बैन लगा दिया है।
दरअसल कोरोना वायरस को लेकर ईरान के लोगों में गुस्सा है। उन्हें लगता है कि सरकार इससे निपटने में फेल हो रही है। अब तक 66 मौतों ने ईरान में खौफ पैदा कर दिया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1500 लोगों में ये बीमारी है। 1500 में 66 मौत का मतलब है कि लगभग 4.5 परसेंट मरीज नहीं बच पा रहे हैं। इसी से शंका पैदा होती है कि ईरान सही आंकड़े नहीं बता रहा। सरकार को डर है कि आज नहीं तो कल इंटरनेट के जरिए इस पर कयास लगाए जाएंगे। इसलिए हलाल नेट का इस्लामी तरीका अपनाया जा सकता है। इसके बाद सिर्फ सरकार से मंजूरी पाने वाली साइट ही खुल पाएगी।
ग्रेट फायरबॉल जैसा है हलाल नेट
विकीपीडिया पर सोमवार रात बैन लग चुका है। इसने खबर दी थी कि ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खमेनेई के करीबी सलाहकार मोहम्मद मोहम्मदी कोरोनावायरस से पीड़ित हैं। इसके बाद ही ये कार्रवाई की गई। ईरान में इस्लामी क्रांति के बाद से ही चीन की तरह नेट पर सख्त नजर रखी जाती है। 2014 में वॉशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जैसन रेजाईआन के घर पर इंटेलिजेंस वालों ने छापा मारा था। उनकी पत्नी के सामने मारने की धमकी दी गई। वो कुछ और नहीं बस उनके ई-मेल का पासवर्ड चाहते थे। इसी से पता चलता है कि ईरान को इंटरनेट से कितना डर है।
हालांकि पिछले चार साल में इंटरनेट प्रसार बढ़ा है। ईरान की आधी आबादी के जेब में स्मार्टफोन है। 2018 में देश भर में हुए विरोध प्रदर्शन स्मार्टफोन की ही देन माने जाते हैं। ईरान सरकार को पता है कि अगर इंटरनेट विकास का इंधन है तो विरोध का जोरदार हथियार भी है। इसे देखते हुए अधिकारियों ने हलाल नेट का कॉन्सेप्ट ईजाद किया। ये स्थानीय नियंत्रण से चलने वाला नेट है। इसमें जनता क्या देखना चाहती है, इसे कंट्रोल किया जा सकता है।