नई दिल्ली
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मामले में आज सुप्रीम कोर्ट अहम फैसला सुनाया. यह मामला बड़ी बेंच में नहीं जाएगा. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत के संविधान पीठ ने ये फैसला सुनाया है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मामले पर 23 याचिकाओं पर सुनवाई होनी है.
दरअसल, याचिकाकर्ताओं ने पांच जजों के संविधान पीठ के दो अलग- अलग और विरोधाभासी फैसलों का हवाला देकर मामले क बड़ी बेंच को भेजे जाने की मांग की थी. इस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एनवी रमन्ना की अगुवाई वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने 23 जनवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था.आज फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने मामले को बड़ी बेंच के पास नहीं भेजने का निर्णय किया.
केंद्र ने किया था विरोध
केंद्र सरकार ने याचिकाओं का विरोध किया है. केंद्र की दलील है कि जम्मू-कश्मीर के हालात में बदलाव के लिए अनुच्छेद 370 हटाना ही एकमात्र विकल्प था. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलील सुनी थी और बड़ी बेंच में मामला भेजे जाने पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. कोर्ट ने कहा था कि इस केस की सुनवाई करने के बाद अब हम इस पर विचार करेंगे कि इस मामले को कहां भेजना है.
अलग राज्य चाहते हैं अलगाववादी
केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि अलगाववादी वहां जनमत संग्रह का मुद्दा उठाते आए हैं, क्योंकि वह जम्मू कश्मीर को अलग संप्रभु राज्य बनाना चाहते हैं. उन्होंने कहा था कि अलगाववादी अलग राज्य चाहते हैं, जिसको सही नहीं ठहराया जा सकता है.
5 अगस्त को केंद्र ने हटाया था अनुच्छेद 370
पिछले साल 5 अगस्त को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला किया था. इसके साथ ही विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया था. केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में तब्दील कर दिया था. अनुच्छेद 370 हटाए जाने की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.
अनुच्छेद 370 पर कायम हैं और रहेंगे : मोदी
एक रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, 'चाहे अनुच्छेद 370 पर फैसला हो या फिर नागरिकता संशोधन कानून पर फैसला हो, यह देश हित में जरूरी था. दबाव के बावजूद हम अपने फैसले के साथ खड़े हैं और इसके साथ बने रहेंगे. 70 सालों से पीछे छूटे फैसलों पर अब देश निर्णय ले रहा है. आजादी के बाद कालखंड में सुलझाने के बजाए उलझाने की राजनीति की गई.'