दिल्ली
बिहार सिर्फ प्रदेश ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजनैतिक बदलाव की प्रयोगशाला रही है। इसी कड़ी में नई कोशिश की तैयारी परवान चढ़ चुकी है। बिहार में नए राजनैतिक प्रयोग की अगुआई प्रशांत किशोर करने जा रहे हैं।उन्होंने कहा कि मंगलवार यानी 18 फरवरी को पटना में वो इसके बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।
प्रशांत बिहार में कल करेंगे बड़ा ऐलान
प्रशांत किशोर ने इतना जरूर बताया कि वो राजनीति से कहीं दूर नहीं जा रहे हैं। उनकी राजनीतिक सक्रियता बढ़ने जा रही है। इससे पहले प्रशांत किशोर 11 फरवरी को ही पटना में अपने राजनीतिक भविष्य का एलान करने वाले थे। उसी दिन दिल्ली विधानसभा चुनाव की मतगणना थी। पीके दिल्ली आ गए और नई घोषणा टाल दी। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के साथ उस दिन की उनकी तस्वीर बिहार में होने जा रहे नए राजनैतिक प्रयोग की कहानी खुद ब खुद बयान करती है।
केजरीवाल की जीत में पीके का बड़ा योगदान
केजरीवाल के तीसरी बार दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने में प्रशांत किशोर ने भी भूमिका निभाई। उनकी संस्था इंडिनय पॉलिटिकल एक्शन कमेटी ( I-PAC) ने केजरीवाल के प्रचार में अहम योगदान दिया। अच्छे बीते पांच साल, लगे रहो केजरीवाल .. जैसे स्लोगन बिहार में नीतीश कुमार की तर्ज पर दिल्ली में केजरीवाल को फिर से कुर्सी पर बिठाने में सहयोग कर रहे थे। उधर पटना में नीतीश के साथ प्रशांत किशोर की तल्खियां भी बढ़ा रहे थे जिसका जिक्र नीतीश ने खुद भी किया था। उसी के अगले दिन प्रशांत किशोर जनता दल यूनाईटेड ( JDU) से बाहर कर दिए गए।
नीतीश से दो-दो हाथ करेंगे प्रशांत!
अब जो जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक प्रशांत किशोर पटना में जमे रह नीतीश से लोहा लेने के मूड में हैं। हालांकि उनकी राजनैतिक हैसियत नीतीश के सामने कहीं नहीं ठहरती। पीके की पूरी कोशिश केजरीवाल फॉर्मूले को लागू करने की होगी। वो बदलाव और नई राजनीति को अपना हथियार बनाएंगे। जेडीयू के उपाध्यक्ष रहते ही I-PAC ऐसे लाखों युवाओं का प्रोफाइल तैयार कर चुकी है जो सक्रिय राजनीति में आना चाहते हैं। अब नए मिशन में ये डाटाबेस काम आने वाला है।
जातीय फैक्टर से लड़ने का केजरीवाल फॉर्मूला
ये भी सही है कि प्रशांत चुनावी राजनीति में नौसिखियां हैं। पोल स्ट्रैटेजिस्ट के करियर से बाहर निकल कर वोट के दंगल में कूदना आसान नहीं है। नीतीश और लालू इसके महारथी हैं। एक और तथ्य पीके के विरोध में जाती है। बिहार की राजनीति में जातीय फैक्टर। इसका जवाब भी पीके समर्थक बिहार के राजनीतिक इतिहास में ही खोजते हैं जब जेपी के परिवर्तन लहर में जातीयता गौण हो गई थी।
बिहार के रोहतास के रहने वाले हैं प्रशांत
प्रशांत किशोर का गांव रोहतास के कोनार गांव में है लेकिन उनके पिता श्रीकांत पांडेय बक्सर में बस गए जहां से पीके ने स्कूल की पढ़ाई पूरी की। पीके ब्राह्मण जाति से हैं। इस बिना पर जेडीयू के भीतर भी खलबली मची थी जब उन्हें नीतीश का उत्तराधिकारी बताया जाने लगा। दरअसल लालू – नीतीश – पासवान सामाजिक न्याय वाली धारा से उभरे हुए नेता हैं । इस उभार ने बिहार की शीर्ष सत्ता से सवर्णों को दूर कर दिया।
युवा शक्ति से बिहार में पैठ बनाएंगे प्रशांत
ऐसी परिस्थितियों में प्रशांत किशोर युवा शक्ति के सहारे बिहार का केजरीवाल बनने की कोशिश करेंगे। दीगर है कि अरविंद केजरीवाल ने शपथ के बाद दिल्ली के रामलीला मैदान से यूपी – बिहार को सीधा संदेश दिया। उन्होंने कहा कि गांव फोन कर बता देना कि उनका बेटा सीएम बन गया है। केजरीवाल को पता है कि दिल्ली में बिहार और यूपी के लोग भारी संख्या में बसते हैं। बिहार के कोई गांव ऐसा नहीं होगा जहां के 10 लोग दिल्ली में न रहते हों। तो कनेक्शन समझिए। जब अलग-अलग सामाजिक पृष्ठभूमि के लोग दिल्ली आकर केजरीवाल को नेता बना सकते हैं तो बिहार में ऐसी संभावना क्यों नहीं बन सकती?