लखनऊ
राजधानी लखनऊ (Lucknow) के घंटाघर पर नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ शुरु हुए प्रदर्शन को आज ( रविवार को ) एक महीना पूरा हो गया. जनवरी महीने की 17 तारीख को चंद घरेलू महिलाओं ने इसे शुरु किया था. 15-20 की संख्या में घरेलू महिलायें लखनऊ में हुई तीन दिनों की बरसात के बाद अचानक घंटाघर पहुंचकर वहां विरोध प्रदर्शन करने बैठ गई थीं. तब शायद ही किसी को मालूम था कि आन्दोलन का आकार इतना बड़ा हो जायेगा. इस आन्दोलन के एक महीना पूरा होने पर दिनभर घंटाघर पर विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है.
असल में दिल्ली के शाहीनबाग में सीएए के खिलाफ शुरु हुए प्रदर्शन को लेकर लखनऊ के पुराने शहर में बेचैनी तो बहुत थी लेकिन, इस बेचैनी को बाहर कैसे निकाला जाये, ये किसी के समझ नहीं आ रहा था. एक प्लान जरूर तैयार किया गया था. मशहूर शायर मुन्नौवर राणा की बेटी सुमैया दावा करती हैं कि उन लोगों ने सीएए के विरोध के लिए जगह चुन ली थी. 14 जनवरी से लखनऊ के कैसरबाग में आन्दोलन पर सभी बैठने वाले थे. कैसरबाग इसलिए क्योंकि तब ये आन्दोलन फेमस हो चुके शाहीनबाग जैसा ही लगता. दोनों इलाके में "बाग" शब्द जो जुड़ा है. लेकिन, तभी बरसात शुरु हो गयी. 16 तक बरसात चली और 17 की सुबह उनके दल से पहले ही कुछ महिलाओं ने घंटाघर पर आंदोलन का बिगुल फूंक दिया.
किसने जलाई घंटाघर पर सीएए के खिलाफ प्रदर्शन की चिंगारीघंटाघर पर चल रहे जिस आंदोलन में अब सैकड़ों की भीड़ रहती है उसे चार-पांच महिलाओं ने अपने बच्चों के साथ 17 जनवरी को शुरु किया था. इसमें मुख्य किरदार कौसर का हैं जो अपने तीन बच्चों और कुछ भतीजे-भतीजियों के साथ घंटाघर दोपहर 2 बजे पहुंच गयी थी. 16 जनवरी की रात उन्होंने अपने बच्चों से सीएए की खिलाफत के बैनर बनवाये. अगली सुबह कुछ परिचित महिलाओं रूखसाना ज़िया और नसरीन जावेद को भी साथ बुला लिया. इस तरह लगभग 20 महिलाओं और बच्चों के साथ ये प्रदर्शन शुरु हुआ. कौसर ने न्यूज़ 18 को बताया कि उन्हें देशभर में सीएएके खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को देखकर ये पीड़ा हुई कि अपने लखनऊ में ऐसा प्रदर्शन क्यों नहीं हो रहा है. इसीलिए उन्होंने बिना किसी बड़ी तैयारी अपने बच्चों के साथ घंटाघर पर आ बैठीं.
वैसे तो इस आंदोलन को धार देने के लिए कोई संगठित दस्ता अभी तक वजूद में नहीं आया है, लेकिन, इसमें सहयोग करने वालों ने इस बात का खास ध्यान रखा है कि कैसे घंटाघर के इस आंदोलन को देशभर में चर्चा में लाया जाये. इसके लिए कई मशहूर लोगों को यहां आंदोलनकारियों को एड्रेस करने के लिए आमंत्रित किया गया इसमें प्रमुख हैं – लेखक और एक्टिविस्ट हर्ष मंदर, एडवोकेट अबु बक्र, ऑल इण़्डिया प्रोग्रेसिव वुमेन्स एसोसिएशन की अध्यक्ष और सीपीआई नेता कविता कृष्णन, अतुल कुमार अनजान मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर जॉन दयाल, सांगवारी बैण्ड और कई विश्वविद्यालयों के छात्रसंघ के लोग. रेमन मैग्सेस पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय और पूर्व राज्यपाल अज़ीज़ कुरैशा भी इसमें शामिल हुए. मशहूर शायर मुन्नवर राणा ने भी आंदोलन के पक्ष में बोलते हुए आंदोलनकारी महिलाओं को मर्दे-ए-मुजाहिद (विधर्मियों से लड़ने वाला योद्धा) का नाम दिया.
जिन महिलाओं ने इसे शुरु किया था उन्हें उम्मीद नहीं थी कि इसका रूप इतना बड़ा हो जायेगा. लिहाजा अब बढ़ी भीड़ को संभालने के लिए कई महिलायें मोर्चा ले रही हैं. अक्सर मंच का संचालन करने वाली शाज़िया कहती हैं कि वे यहां लगातार 40 घंटे रहती हैं उसके बाद ही 10-12 घण्टे के लिए घर जाती हैं. फिर कार्यक्रम में दोबारा आ जाती हैं. कितना टाइम घंटाघर के आंदोलन को देती हैं. इस सवाल का जवाब देते हुए एक दूसरी महिला सना बताती हैं कि वे अपना पूरा फ्री टाइन आंदोलन को देती हैं. वैसे चार पांच घंटे दिन और रात में वे यहां रहती हैं और लोगों को सम्बोधित भी करती रहती हैं.
आंदोलन के तीस दिन पूरे होने पर अब नया नारा दिया गया है. ये है – "महिलाओं के संघर्ष के तीस दिन आओ संघर्ष के साथ चलें." तीस दिन पूरे होने पर घंटाघर पर कई लोगों के संबोधन के साथ साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जायेगा. ब्लू पैंथर ग्रुप के सुशील गौतम, मानवाधिकार कार्यकर्ता विपुल कुमारी भी आयेंगी.