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मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड: दिल्ली कोर्ट ने ब्रजेश ठाकुर को सुनाई उम्रकैद की सजा

नई दिल्ली

दिल्ली की एक अदालत ने बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक आश्रयगृह में कई लड़कियों के यौन शोषण और शारीरिक उत्पीड़न के मामले में ब्रजेश ठाकुर को मंगलवार (11 फरवरी) को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सौरभ कुलश्रेष्ठ ने ठाकुर को उसके शेष जीवन के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई। अदालत ने ठाकुर को 20 जनवरी को पॉक्सो कानून और भारतीय दंड संहिता (भादंसं) की संबंधित धाराओं के तहत बलात्कार तथा सामूहिक बलात्कार का दोषी ठहराया था। दिल्ली स्थित साकेत कोर्ट ने 4 फरवरी को सजा पर बहस पूरी कर ली थी। 11 फरवरी सजा की तारीख मुकर्रर की गई थी।अदालत ने अपने 1,546 पन्नों के फैसले में ठाकुर को धारा 120बी (आपराधिक षड्यंत्र), 324 (खतरनाक हथियारों या माध्यमों से चोट पहुंचाना), 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाना), उकसाने, पॉक्सो कानून की धारा 21 (अपराध होने की जानकारी देने में विफल रहने) और किशोर न्याय कानून की धारा 75 (बच्चों के साथ क्रूरता) के तहत भी दोषी ठहराया है।

 

ब्रजेश ठाकुर की संस्था सेवा संकल्प एवं विकास समिति द्वारा संचालित बालिका गृह में नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार सहित अन्य वीभत्स घटनाओं को अंजाम दिया जाता था। रिपेार्ट में हुए खुलासे के बाद 31 मई 2018 को मुजफ्फरपुर महिला थाने में केस दर्ज किया गया था। बाद में बालिका गृह कांड को लेकर राजनीतिक गलियारों में तूफान खड़ा हो गया था। विधानसभा से लेकर लोकसभा तक में विपक्षी दलों के नेताओं ने बवाल काटा था। बाद में इसकी जांच सीबीआई को सौंपी गई थी।

 

उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के मुताबिक इस मामले में सुनवाई प्रतिदिन चली और छह माह के भीतर पूरी कर ली गई। अदालत ने 30 मार्च, 2019 को ठाकुर समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए थे। अदालत ने बलात्कार, यौन उत्पीड़न, नाबालिगों को नशा देने, आपराधिक धमकी समेत अन्य अपराधों के लिए मुकदमा चलाया था।

 

ठाकुर और उसके आश्रय गृह के कर्मचारियों के साथ ही बिहार के समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों पर आपराधिक षड्यंत्र रचने, ड्यूटी में लापरवाही और लड़कियों के उत्पीड़न की जानकारी देने में विफल रहने के आरोप तय किए गए थे। इन आरोपों में अधिकारियों के प्राधिकार में रहने के दौरान बच्चों पर क्रूरता के आरोप भी शामिल थे जो किशोर न्याय कानून के तहत दंडनीय है।उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर इस मामले को सात फरवरी, 2019 को बिहार के मुजफ्फरपुर की स्थानीय अदालत से दिल्ली के साकेत जिला अदालत परिसर की पॉक्सो अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया था। यह मामला टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) द्वारा 26 मई, 2018 को बिहार सरकार को एक रिपोर्ट सौंपने के बाद सामने आया था। यह रिपोर्ट उसी साल फरवरी में टिस ने बिहार समाज कल्याण विभाग को सौंपी थी।

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