रायपुर
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार से विधानसभा के आगामी सत्र में नागरिकता कानून के खिलाफ स्पष्ट शब्दों में प्रस्ताव पारित करने की मांग की है, जैसा कि केरल विधानसभा में माकपा के नेतृत्व वाले वाममोर्चा सरकार ने किया है। पार्टी ने मंत्रिमंडल द्वारा पारित प्रस्ताव की शब्दावली को नर्म बताते हुए कहा है कि कांग्रेस सरकार को साहस के साथ नागरिकता संशोधन कानून को संविधानविरोधी कहना चाहिए और इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की घोषणा करनी चाहिए।
आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा है कि केंद्र में अपने बहुमत के बल पर मोदी सरकार ने जो नागरिकता कानून पारित किया है, वह पूरी तरह असंवैधानिक है। इस कानून को लागू करने के लिए केंद्र सरकार को एनपीआर-एनआरसी की प्रक्रिया से गुजरना होगा, जिसे लागू करने का अधिकार केवल राज्य सरकारों के पास ही है और वे इस प्रक्रिया को रोककर संविधानविरोधी नागरिकता कानून पर अमल की प्रक्रिया को रोक सकते है।
माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने आरोप लगाया कि जनगणना और एनपीआर दोनों अलग-अलग चीजें हैं, लेकिन मोदी सरकार ने आम जनता में भ्रम फैलाने के लिए दोनों प्रक्रिया को मिला दिया है और दोनों काम एक साथ जनगणना अधिकारियों से ही कराए जा रहे हैं। एनपीआर में किसी व्यक्ति के माता-पिता के जन्म से संबंधित जो जानकारियां मांगी जाएंगीं, उसको एनआरसी में सत्यापित करने के लिए कहा जायेगा। इस प्रकार एनआरसी का पहला चरण एनपीआर है। संसद में मोदी सरकार ने भी इस बात को माना है।
उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग इस प्रक्रिया से अपनी नागरिकता साबित करने में असमर्थ होंगे, क्योंकि उनके पास अपने माता-पिता की नागरिकता साबित करने के कोई प्रामाणिक दस्तावेज नहीं है। इसलिए यह स्पष्ट है कि यह कानून एनआरसी के जरिये भारतीय निवासियों के लिए नागरिकता छीनने का भी कानून है। इस प्रक्रिया में जो लोग अपनी नागरिकता के दस्तावेज पेश नहीं कर पाएंगे, उनमें से मुस्लिमों को घुसपैठिये और गैर-मुस्लिमों को शरणार्थी माना जायेगा।