बस्ती
रेलवे के तत्काल कोटे में सेंधमारी कर मिनटों में सैकड़ों टिकट बनाने का अवैध साफ्टवेयर 'एएनएम' बेचने वाला हामिद महज 10 साल में हजार से करोड़पति हो गया। मौजूदा समय देश में अवैध ई-टिकट के कारोबार के 85 फीसदी मार्केट पर उसका होल्ड है। 2016 से नेपाल में बैठा हामिद भारत के कोने-कोने में फैले 10 हजार एजेंटों के जरिए 'टेरर फंडिंग' कर रहा है। नेपाल से दुबई भी उसका बराबर जाना-आना है।
डीजी आरपीएफ अरुण कुमार ने दिल्ली स्थित मुख्यालय में प्रेसवार्तर कर ई-टिकट के अंतरराष्ट्रीय गिरोह का पर्दाफाश किया था। डीजी के मुताबिक भुवनेश्वर से पकड़े गए गुलाम मुस्तफा के पास से बरामद लैपटॉप, मोबाइल व अन्य दस्तावेज के मुताबिक ई-टिकट से जुटाई गई रकम को दुबई टेरर फंडिंग के लिए भेजा जाता है। डीजी ने बताया कि इस पूरे गिरोह का सरगना हामिद है। जो मौजूदा समय दुबई में बैठा है।
वहीं सूत्रों के मुताबिक मूलत: बस्ती जिले के कप्तानगंज थानांतर्गत रमवापुर गांव का रहने वाला इंटर पास हामिद पुरानी बस्ती थाना क्षेत्र में ई-टिकट बनाने का काम करता था। आईआरसीटीसी वेबसाइट स्लो चलने और कम समय में ज्यादा मुनाफा कमाने के फेर में हामिद ने खुद का अपना साफ्टवेयर बना डाला। सबसे पहले उसने ब्लैक टीएस, नियो और रेड मिर्ची साफ्टवेयर बनाया।
साफ्टवेयर बेचकर एजेंटों के जरिए पूरे देश में उसने जाल फैलाना शुरू किया। आईआरसीटीसी की वेबसाइट को लगभग उसने ध्वस्त कर दिया। आईआरसीटीसी की बजाए अन्य वेबसाइट से मिनटों में तत्काल कोटे का टिकट बनने की भनक लगते ही रेलवे के साथ ही अन्य खुफिया एजेंसिया सक्रिय हुई। जांच में साफ्टवेयर का 'मदर सर्वर' और सरगना का अड्डा बस्ती में होना पाया गया।
28 अप्रैल 2016 को पहली दफा हामिद को उसी के सुपर सेलर शमशेर की मुखबिरी पर सीबीआई बेंगलुरु और विजिलेंस मुम्बई की संयुक्त टीम ने पुरानी बस्ती थाना क्षेत्र से गिरफ्तार कर लिया। कुछ दिनों बाद जमानत पर रिहा हुआ तो सुरक्षा एजेंसियों से बचने के लिए नेपाल चला गया। बस्ती कोतवाली में भी मुकदमा दर्ज किया गया। कुछ दिनों तक नेपाल राष्ट्र के नवलपरासी जिले में रहा और फिर काठमांडू को स्थाई ठिकाना बना लिया। मौजूदा समय भी वह काठमांडू में ही है। वहीं से दुबई जाता है।