नई दिल्ली
मंगलवार रात्रि 2.06 बजे सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही सूर्य उत्तरायण के हो जाएंगे, अर्थात सूर्य पृथ्वी के उत्तरी भाग में अपना अधिकाधिक प्रकाश उत्सर्जित करेंगे। सूर्य का यह संक्रमण शुक्र प्रधान पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में और शोभन योग में हो रहा है, जो सभी के लिए अत्यंत लाभप्रद है।
एक कथा के अनुसार, शनि देव को उनके पिता सूर्य देव पसंद नहीं करते थे। इसी कारण सूर्य देव ने शनि देव और उनकी मां छाया को अपने से अलग कर दिया। इस बात से क्रोध में आकर शनि और उनकी मां ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया। पिता को कुष्ठ रोग में पीड़ित देख सूर्य भगवान की दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज ने तपस्या की। यमराज की तपस्या से सूर्यदेव कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए। लेकिन सूर्य देव ने क्रोध में आकर शनि देव और उनकी माता के घर ‘कुंभ', जो शनि प्रधान राशि है, को जला दिया। इससे माता छाया और पुत्र शनि दोनों को बहुत कष्ट हुआ। यमराज ने अपनी सौतेली माता और भाई शनि को कष्ट में देख उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को समझाया। यमराज की बात मान सूर्य देव शनि से मिलने उनके घर पहुंचे। कुंभ में आग लगने के बाद वहां काले तिल के अलावा सब कुछ जल गया था। इसीलिए शनि देव ने अपने पिता सूर्य देव की पूजा काले तिल से की। इसके बाद सूर्य देव ने शनि को उनका दूसरा घर ‘मकर' दिया। मान्यता है कि शनि देव को तिल की वजह से ही उनके पिता, घर और सुख की प्राप्ति हुई, तभी से मकर संक्रांति पर सूर्य पूजा के साथ तिल का बड़ा महत्व माना जाता है।
चंद्र के शुक्र प्रधान पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में रहते हुए सूर्य का राशि परिवर्तन सभी के लिए लाभदायक होगा, क्योंकि यह संयोग सभी की एकरूपता को भंग करेगा, जिससे नए विचार और नए दृष्टिकोण विकसित होंगे। नए अवसर भी प्राप्त होंगे। वे लोग, जो प्रगति नही कर पा रहे, उन्हें प्रगति की नई इच्छाशक्ति प्राप्त होगी। धन-धान्य की परिपूर्ति भी होगी।
संक्रांति की तिथि बदलना, खगोलीय घटना है। कुल बारह राशियां है और माह भी बारह हैं। सूर्य प्रत्येक माह अपनी राशि बदलता है। प्रत्येक राशि में 30 अंश (डिग्री) होते हैं। इस तरह से सूर्य का एक दिन 1 अंश के बराबर होता है और इसीलिए वह 30 अंश पूरे होते ही राशि बदलते हैं। पृथ्वी सौरमंडल में अपने अक्ष पर तो घूमती ही है, साथ ही अपने अक्ष पर घूमते हुए अपने स्थान में भी परिवर्तन करती रहती है। पृथ्वी के इस व्यवहार के कारण लगभग प्रत्येक 27,500 वर्ष के बाद पृथ्वी के स्थान में व्यापक परिवर्तन आ जाता है। इसीलिए सौर स्थिति पर आधारित इस पर्व की तिथि में भी परिवर्तन आता है।
सूर्य संबंधी दोषों से होंगे आप मुक्त
सूर्य संबंधी दोषों के समाधान के लिए यह संक्रांति अत्यंत कारक समय होगा। यदि आप रक्त, संतान, मस्तिष्क संबंधी समस्या या उच्च रक्तचाप से परेशान हैं, तो यह लक्षण है कि आप की कुंडली में सूर्य या तो नीच का होकर तुला राशि में स्थित हैं या वृषभ, धनु या मीन राशि में है।
उपाय: स्वास्थ्य संबंधी इन समस्याओं के समाधान हेतु बुधवार 15 तारीख को प्रात:काल एक ताम्बे के पात्र में जल लेकर उस में कुंकुम, शक्कर और एक बेलपत्र डालें और इस मंत्र से सूर्य को सात बार जल दें- ‘नमो नम: सहस्रांशु आदित्याया नमो नम: ह्रीं सूर्याय नम:'। तिल, लाल वस्त्र, हरे फल और शक्कर या गुड़ का दान करें। हर रविवार को सूर्य को इसी तरह जल दें।
आप रोजगार की स्थिति से परेशान हैं और आर्थिक समस्या, ऋण संबंधी समस्या से भी ग्रस्त हैं, तो रविवार को यह उपाय करें- लाल आसन पर बैठ कर इस मंत्र का जाप करें। ‘ह्रीं श्रीं आदित्य वर्णे तपसोधि जातों ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:॥' तत्पश्चात शिवालय में जाकर शिव मंत्रों का जाप करते हुए जल चढ़ाएं। सायंकाल लक्ष्मी नारायण के मंदिर में जाकर एक नारियल पर हल्दी से स्वास्तिक बनाकर अर्पित करें। लाभ होगा।
मंत्र जाप व दान का पर्व आपको लाभ देगा:
राशियों के अनुसार सफेद तिल के साथ निम्न मंत्रों का जाप करने के बाद निर्दिष्ट सामग्रियों का दान किया जाए, तो ग्रह दशा अनुकूल होगी।
मेष: मंत्र- ऊं रवये नम:।
दान सामग्री- गुड़।
वृषभ: मंत्र- ऊं मित्राय नम:।
दान सामग्री – शक्कर।
मिथुन: मंत्र- ऊं खगाय नम:।
दान सामग्री-सिंघाड़ा, नारियल।
कर्क: मंत्र- जय भद्राय नम:।
दान सामग्री- दूध और चावल।
सिंह: मंत्र- ऊं भास्कराय नम:।
दान सामग्री-अनार।
कन्या : मंत्र- ऊं भानवे नम:।
दान सामग्री- हरे फल।
तुला: मंत्र- ऊं पुष्णे नम:।
दान सामग्री- चावल, खट्टे फल।
वृश्चिक: मंत्र- ऊं सूर्याय नम:।
दान सामग्री-दूध और गुड़।
धनु: मंत्र- ऊं आदित्याय नम:।
दान सामग्री- चना दाल, गुड़।
मकर: मंत्र- ऊं मरीचये नम:।
दान सामग्री – मूंगफली।
कुम्भ: मंत्र- ऊं सवित्रे नम:।
दान सामग्री- शक्कर, उड़द दाल।
मीन: मंत्र- ऊं अर्काय नम:।
दान सामग्री – बेसन की मिठाई।