नई दिल्ली
देश की राजधानी दिल्ली जब कड़ाके की ठंड में कांप रही है, तब इसी दिल्ली का शाहीन बाग इलाका और उसकी सबसे व्यस्त सड़क नागरिकता संशोधन कानून यानी CAA और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस यानी NRC के खिलाफ जंग का अखाड़ा बन चुकी है. विरोध का ये परचम शाहीन बाग और आस-पास के इलाकों की महिलाओं ने बुलंद किया हुआ है.
यहां दिन में संविधान की बचाने का संकल्प गूंजता है तो रात इंकलाबी नारों से रोशन होती है. देश के अलग-अलग हिस्सों से एक्टिविस्ट, कलाकार, साहित्यकार, कानूनविद, शिक्षाविद यहां पहुंचकर इन प्रदर्शनकारियों में जोश भर रहे हैं. कई मायनों में ऐतिहासिक ये विरोध प्रदर्शन पिछले दो हफ्तों से दिल्ली के इस पूरे इलाके की जिंदगी का हिस्सा बन चुका है.
CAA के खिलाफ 24 घंटे जारी विरोध प्रदर्शन
दरअसल, नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में पिछले करीब दो हफ्ते से शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन जारी है. खास बात ये है कि प्रदर्शनकारियों में सबसे बड़ी हिस्सेदारी महिलाओं की है. इसे महिलाओं की अगुवाई में, महिलाओं का ही प्रदर्शन कहा जाए तो भी गलत नहीं होगा. दिल्ली में इस बार हाड़ कंपाती ठंड पड़ रही है. यहां तापमान रात में 2 डिग्री सेल्सियस तक गिरा है लेकिन इस सर्द रात में भी शाहीन बाग में प्रदर्शन की गर्मजोशी कम नहीं पड़ी है, न ही ये ठंड प्रदर्शनकारी महिलाओं के जोश को ठंडा कर पाई है.
ऐसी ठंड में दिन में भी लोगों की बिस्तर से निकलने की हिम्मत नहीं होती, वहीं शाहीन बाग की सड़कों पर 90 साल से ज्यादा उम्र तक की महिलाएं मुस्तैदी से डटी हैं. जीवन के 90 बसंत बिता चुकीं असमा खातून कहती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमें सड़कों पर निकलने के लिए मजबूर कर दिया है. उन्हें तो अपनी मां की उम्र की हम महिलाओं की खिदमत करनी चाहिए. असमा कहती हैं कि मैं अपनी सात पुश्तों की जानकारी उंगलियों पर गिना सकती हूं लेकिन सरकार मुझसे दस्तावेज मांगेगी तो कहां से लाऊंगी. क्या खुद सरकार के मंत्रियों के पास अपनी सात पीढ़ियों के दस्तावेजी सबूत हैं?
क्यों खुलकर नहीं बोल रहे PM मोदी?
82 साल की बुजुर्ग बिलकीस CAA के खिलाफ जारी इस प्रदर्शन में रोज आती हैं और कहती हैं कि तब तक आती रहूंगी जब तक मोदी सरकार नागरिकता कानून को वापस नहीं लेती. उन्होंने कहा, हम चुप नहीं रहेंगे, हमें अपने मुल्क को बचाना है. सरकार पर भरोसा नहीं है. नागरिकता कानून से देश की जनता खतरे में है. बिलकीस कहती हैं कि सरकार की मंशा देश को धर्म के आधार पर बांटना है. वो प्रधानमंत्री मोदी की इस मुद्दे पर कथित चुप्पी पर भी सवाल उठाती हैं. वो कहती हैं कि पीएम मोदी क्यों कुछ खुलकर नहीं बोल रहे.
आखिर मोदी सरकार को किस बात का है डर?
ज्यादातर प्रदर्शनकारी महिलाओं में केंद्र सरकार के इरादों को लेकर संदेह तो है ही, गुस्सा भी है. वो इस बात से नाराज हैं कि सैकड़ों की संख्या में दिल्ली की सड़कों पर दो हफ्ते से प्रदर्शन कर रही हैं लेकिन सरकार की ओर से कोई ऐसी पहल नहीं हुई जिससे ये संकेत मिले कि उनकी बात सुनने-समझने को कोई तैयार है.
वे हैरानी जताती हैं कि सरकार और बीजेपी इस कानून के बारे में लोगों को समझाने के लिए घर-घर जाने का प्लान बना रही है लेकिन जो सैकड़ों महिलाएं, बच्चे, छात्र इसके खिलाफ अपना घर छोड़कर सड़कों पर रात बिता रहे हैं, सरकार की तरफ से उनतक पहुंचने की कोई कोशिश नजर क्यों नहीं आ रही.
प्रदर्शनकारी महिला नसरीन जिनकी उम्र 39 साल है, वो अपने इलाके के सांसद गौतम गंभीर से नाराज हैं. उनका कहना है कि गौतम गंभीर देश के जाने-माने क्रिकेटर रहे हैं. पूरी दुनिया में उनका नाम है. उनकी छवि भी एक नेक इंसान की है लेकिन वे भी पार्टी पॉलीटिक्स में इस कदर डूब गए हैं कि अपने ही क्षेत्र में चल रहे इस धरना-प्रदर्शन की ओर से आंखें मूंदे हुए हैं. वो पूछती हैं कि अगर गौतम गंभीर जैसा जेंटलमैन इस तरह का व्यवहार करेगा तो अब वे किससे उम्मीद रखें?