छत्तीसगढ़

आओ शिक्षक बनकर राष्ट्र निर्माण करें

रायपुर
देश के प्रथम उपराष्ट्रपति भारत रत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। जब वे भारत के राष्ट्रपति थे तब कुछ पूर्व छात्रों और दोस्तों में उनसे अपना जन्मदिन मनाने का आग्रह किया। उन्होंने विनम्रता दिखाते हुए कहा कि यह बेहतर होगा कि आप इस दिन को शिक्षकों के योगदान के तौर पर मनाए। इसके बाद 5 सितम्बर को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। हमारी जिंदगी में पहले शिक्षक होते हैं हमारे माता-पिता। आखिर सीखना-सिखाना जिंदगीभर चलने वाली प्रक्रिया है। पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम कहा करते थे कि- शिक्षकों को छात्रों में प्रश्न पूछने, सृजनात्मकता, उद्यमिता और नैतिक नेतृत्व की क्षमता विकसित करनी चाहिए और उसका रोल मॉडल खुद बनना चाहिए।

शिक्षक, शिक्षा और ज्ञान के जरिये बेहतर मानव संसाधन तैयार करता है, जो राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देता है। शिक्षक दिवस के दिन स्कूल जाने वाला हर बच्चा उस दिन स्कूल में होने वाले कार्यक्रम को लेकर उत्साहित रहता है। हमारे देश की संस्कृति और संस्कार शिक्षकों, गुरूओं को विशेष सम्मान और स्थान देती है। गुरू शिष्य के जीवन को बदलकर सार्थक बना देता है। परिवर्तन संसार का नियम है और शिक्षक दिवस खुद इसी परिवर्तन का गवाह बना है। स्कूलों में होने वाले कार्यक्रम बदलकर अब राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में मनाया जाने लगा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों की स्थिति में सुधार के लिए शिक्षकों और छात्र-छात्राओं से किए गए वादे को न केवल निभाया है, बल्कि अमलीजामा पहनाना भी शुरू कर दिया है। छत्तीसगढ़ राज्य में नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत पहली बार बारहवीं कक्षा तक के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार प्रदान किया है। राज्य निर्माण के बाद पहली बार लगभग 15 हजार शिक्षकों की नियमित नियुक्ति की प्रक्रिया जारी है। स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षाकर्मियों का पंचायत शिक्षक और शिक्षिका के रूप में संविलियन किया गया। राज्य में पहली बार कक्षा बारहवीं तक के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार मिला है। सभी पाठ्य पुस्तकों में समझ विकसित करने क्यू आर कोड के माध्यम से अतिरिक्त शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराई गई। शिक्षकों और बच्चों को लर्निंग आउटकम आधारित आॅनलाइन प्रश्न बैंक बनाया गया।

प्राथमिक स्तर पर अध्ययनरत बच्चों के लिए सरल कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है। 10 जिलों में कक्षा आठवीं और नवमीं के छात्र-छात्राओं के उपचारात्मक शिक्षण के लिए निखार कार्यक्रम प्रारंभ किया गया। शिक्षकों को अच्छे कार्यों के लिए पुरस्कार की प्रक्रिया में सुधार किया गया है। सभी शिक्षकों को आई कार्ड उपलब्ध कराने की पहल की गई है। बच्चों को लिखने की अभ्यास के लिए विभिन्न विषयों में अभ्यास पुस्तिकाएं दी गई। छोटे बच्चों के लिए स्थानीय भाषा में पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराए जाने को प्रावधान किया गया। शिक्षकों के क्षमता विकास के लिए शिक्षक-प्रशिक्षण प्रबंधन प्रणाली लागू की गई है। शिक्षकों को एक-दूसरे से सीखने प्रोफेशनल लर्निंग कम्यूनिटी को बढ़ावा दिया है। सभी स्कूलों में सुरक्षा के लिए शाला सुरक्षा योजना लागू की गई है। सभी प्रारंभिक शालाओं में किचन गार्डन की व्यवस्था, दो हजार शालाओं में सोलर पैनल लगाने की योजना है। शिक्षकों के क्षमता विकास के लिए विभिन्न आॅनलाइन पाठ्यक्रम की उपलब्धता, एक लाख 86 हजार शिक्षकों को सहायक सामग्री निर्माण के लिए शिक्षक अनुदान, सभी उच्च प्राथमिक से लेकर हायर सेकेण्डरी तक के स्कूलों में यूथ इको क्लब का गठन किया गया है।

प्रदेश के 6 हजार 806 नि:शक्त बच्चों को स्कूल आने-जाने के लिए वाहन/एस्कोर्ट भत्ते का प्रावधान, 15 हजार 259 दिव्यांग बच्चों को उनकी आवश्यकतानुसार उपकरण एवं सहायक सामग्री का वितरण किया गया। मानसिक रूप से कमजोर एक हजार 784 बच्चों के लिए कौशल विकास कार्यक्रम, 17 हजार 662 दिव्यांग बालिकाओं के लिए छात्रवृत्ति का प्रावधान किया गया है। नक्सल गतिविधियों में ध्वस्त हुए शाला भवनों के स्थान पर 60 पोटा केबिन के माध्यम से 28 हजार 322 बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था की गई है। वर्ष 2018-19 में शाला से बाहर चिन्हांकित 24 हजार 114 बच्चों के लिए विशेष आवासीय और गैर-आवासीय प्रशिक्षण केन्द्र के माध्यम से शिक्षण की व्यवस्था आदिवासी क्षेत्रों में और पलायन प्रभावित जिलों में 10 बच्चों से कम बच्चे उपलब्ध होने पर 50 डॉरमेटरी विद्यालय के माध्यम से शिक्षण की व्यवस्था की गई है। शासन का यह प्रयास है कि गांव में शिक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए कार्य का उत्तरदायित्व ग्रामवासियों को सौंपा जाए इसके लिए शाला प्रबंधन समिति का गठन किया गया है।

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