मध्य प्रदेश

धार्मिक स्थल, स्कूल, कालेज और रहवासी इलाकों से दूर बनेगे शराब दुकाने!

भोपाल
प्रदेश में शराब दुकानों से नगरीय निकायों व पंचायतों की आमदनी बढ़ाने की तैयारी राज्य सरकार कर रही है। इसके साथ ही सरकार शराब दुकानों को लेकर होने वाले विवादों का समाधान भी इन्हीं निकायों के माध्यम से करने की तैयारी में है ताकि शराब की बिक्री भी प्रभावित नहीं हो और लोगों को दिक्कतों का सामना भी न करना पड़े। इसके लिए निकायों से दुकानों का निर्माण कराकर वहां शराब बिक्री कराई जाएगी। निकाय की दुकानों में शराब का कारोबार किए जाने से निकाय का राजस्व भी बढ़ेगा।

वाणिज्यिक कर विभाग के पास नगर पालिका, नगर पंचायत और नगर निगम क्षेत्रों के अलावा पंचायतों में शराब दुकानें खोले जाने के दौरान लोगों के विरोध की शिकायतें सबसे अधिक आती है। इसकी वजह शराब दुकानों का किराए से संचालित किया जाना है जिसकी जगह ठेकेदार बदलने से हर साल बदलने की नौबत आती है। यह शराब दुकानें रहवासी इलाकों और मंदिर, मस्जिद या अन्य किसी धार्मिक स्थल, स्कूल, कालेज के आस-पास होने से सबसे अधिक विवाद होता है। ऐसे मामले में शराब ठेकेदार गलती न होने के बाद भी कोपभाजन बनते हैं। कई बार शराब दुकानें विवाद के चलते नहीं खुल पाने से उसकी बिक्री प्रभावित होती है।

शराब को लेकर ऐसे मामलों में सरकार की किरकिरी भी होती है और कलेक्टर, एसपी को जबरन ऐसे विवाद में उलझना पड़ता है। इसे देखते हुए सरकार अब तय कर रही है कि शराब की दुकानों का स्थायी निर्माण पंचायत, नगर निकाय से ही कराया जाए। एक बार दुकानें बन जाने से किराए से चलने वाली शराब दुकानों को स्थायी जगह मिल जाएगी और विवाद की स्थिति नहीं रहेगी।

वाणिज्यिक कर मंत्री बृजेन्द्र सिंह राठौर के अनुसार विभाग चाहता है कि निकाय दुकान बनाएं। इसके लिए आबकारी विभाग के अफसरों के साथ लोकेशन विजिट कर निर्माण स्थल तय हो। जहां निकाय दुकानें बनाएंगे, वहां शराब की दुकानें परमानेंट हो जाएंगी। हर साल ठेकेदार बदल जाते हैं तो किराए पर चलने वाली दुकानों का स्थान भी बदलता है। शराब ठेकेदार दुकान का किराया देता ही है तो स्थायी निर्माण पर वह निकाय को किराया भुगतान करेगा। इससे निकाय की आमदनी बढ़ेगी और ठेकेदार को कारोबार में दिक्कत नहीं होगी। लोग निकाय द्वारा बनाई गई दुकान के स्थल को लेकर विरोध नहीं करेंगे क्योंकि इसमें सारे नार्म्स को ध्यान में रखकर निर्माण कराया जाएगा। सरकार की कोशिश है कि अगले साल से यह व्यवस्था लागू कर दी जाए।

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