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दिल्ली की हिंसा में डूब गए 1500 करोड़

नई दिल्ली
जामिया की हिंसा के बाद से दिल्ली के अन्य हिस्सों में भी हो रहे विरोध-प्रदर्शन और दंगों में बाजारों का 1500 करोड़ रुपये से भी अधिक का घाटा हो चुका है। अगर जल्द ही हालात काबू में नहीं आए तो दिल्ली के बाजारों का बिजनस बुरी तरह से चरमरा जाएगा। यहां के लगातार बिगड़ते माहौल से ना केवल रिटेल मार्केट प्रभावित हो रहा है, बल्कि दिल्ली के थोक बाजार भी औंधे मुंह गिर रहे हैं। सबसे ज्यादा असर थोक बाजारों पर पड़ रहा है। यहां से अन्य राज्यों के व्यापारी माल ले जाते हैं लेकिन जब से दिल्ली में बवाल शुरू है, तब से दूसरे राज्यों के व्यापारियों का यहां आना लगभग बंद हो गया है। पांच दिनों में ही दिल्ली की मार्केट पर कम से कम 60 फीसदी तक बिजनेस मंदा हो गया है।

कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल का भी कहना है कि इन विरोध-प्रदर्शनों की वजह से दिल्ली के बाजारों की हालत लगातार बुरी होती जा रही है। उनका कहना है कि दिल्ली में हर दिन 500 करोड़ रुपये का बिजनस होता है। इसमें 60 फीसदी तक की गिरावट नजर आ रही है। कुछ बाजार तो ऐसे हैं, जहां ग्राहक देखने को ही नहीं मिल रहे हैं। 15 दिसंबर को जामिया हिंसा के बाद शुक्रवार 20 दिसंबर तक कम से कम 1500 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो स्थिति बहुत बुरी होने वाली है। दिल्ली में क्रिसमस और नए साल की पार्टियों के लिए जो आयोजन होते थे, उन पर भी काफी असर पड़ सकता है।

लगातार खराब हो रही है व्यापार की स्थिति
दिल्ली-6 के बाजारों की बात की जाए तो यहां की स्थिति लगातार डाउन हो रही है। जामिया और सीलमपुर-जाफराबाद हिंसा के बाद से ही बाहर के व्यापारियों ने दिल्ली का रुख करना छोड़ दिया था। अब गुरुवार को लालकिला के सामने और रविवार को जामा मस्जिद के पास विरोध-प्रदर्शन ने इसमें आग में घी डालने का काम किया है क्योंकि दिल्ली-6 में ही चांदनी चौक, भगीरथ प्लेस, सदर बाजार, सीताराम बाजार, चावड़ी बाजार, दरीबा, कूचामहाजनी, नया बाजार और पहाड़गंज जैसे बड़े बाजार हैं। ये दिल्ली के सबसे बड़े थोक के आजार हैं। अब यहां बाहरी राज्यों के व्यापारियों ने आना छोड़ दिया है। दंगे भड़कने के डर से लोकल ग्राहक भी इन बाजारों में जाने से परहेज कर रहे हैं।

दिल्ली में दंगे रोकने के लिए दिल्ली पुलिस यूपी और हरियाणा पुलिस से बात करके लगभग हर रात बॉर्डरों पर कड़ा पहरा दे रही है। इस वजह से सड़क मार्ग से भी माल ढोने के काम में समय अधिक लग रहा है। बाजारों में मंदी होने से यहां काम करने वाले हजारों कर्मचारियों की रोजी-रोटी पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ा है। यहां ज्यादातर लोग ऐसे हैं, जो हर दिन कमाते हैं और खाते हैं लेकिन बाजारों में ग्राहकों के नदारद होने से हर वर्ग को समस्या हो रही है।

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