नींद और न्यूरॉलजिकल डिजीज के बीच क्या संबंध है? इस विषय से जुड़ी शोध करने के दौरान विशेषज्ञों ने पाया कि अगर लगातार रात को नींद के दौरान डिस्टर्बेंस होता रहे और गहरी नींद सोने की स्थितियां ना बन पाएं तो व्यक्ति माइग्रेन का शिकार हो सकता है। यह रिसर्च इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अभी तक तनाव और अन्य मानसिक और शारीरिक स्थितियों को ही माइग्रेन की वजह माना जाता था।
न्यूरॉलजी जर्नल में पब्लिश स्टडी में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति समय से बेड पर चला जाए और नींद लेने के लिए पूरे 8 घंटे बेड लेटा तो रहे लेकिन सो ना पाए तो ऐसी स्थिति में उसे माइग्रेन का सामना करना पड़ सकता है। खास बात यह है कि जरूरी नहीं कि यह दर्द उसे अगले दिन ही महसूस हो बल्कि माइग्रेन का दर्द उसे 1 से 2 दिन बाद भी सता सकता है।
ब्रिघम ऐंड विमिन हॉस्पिटल के डॉक्टर और इस रिसर्च के को-ऑर्थर सुजैन बेर्टिश का कहना है कि 'नींद और माइग्रेन से जुड़ी इस रिसर्च में सामने आया है कि लो स्लीप क्वालिटी या बिल्कुल नींद ना आना, सिर्फ अगले दिन ही परेशान नहीं करता है। बल्कि यह कुछ दिन बाद भी अपना असर दिखा सकता है। मेरे पास माइग्रेन के ऐसे पेशंट अक्सर आते हैं, जिनकी इनसोमनिया की परेशानी को ट्रीट करना होता है। जो एक्सपर्ट नींद की समस्या से जूझ रहे मरीजों का इलाज करते हैं, उनके सामने ययह बड़ा चैलेंज होता है कि अपने मरीज को माइग्रेन के रिस्क से कैसे बचाएं। लेकिन इस बारे में अभी पर्याप्त लिट्रेचर उपलब्ध नहीं है कि किस प्रकार की नींद उन्हें यानी REM और NREM उन्हें माइग्रेन के रिस्क से ज्यादा सुरक्षित रख सकती है।'
हालांकि शोध में यह बात भी साबित हुई है कि रात को पूरी नींद ना ले पाने पर अगली सुबह माइग्रेन होने का खतरा अधिक होता है। लेकिन दूसरे या तीसरे दिन भी व्यक्ति को माइग्रेन की समस्या हो सकती है। इससे बचने के लिए जरूरी है कि ऐसी हर ऐक्टिविटी से खुद को दूर रखने का प्रयास किया जाए जो रात को नींद में खलल पैदा कर सकती है।