नई दिल्ली
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में पूर्वोत्तर से लेकर दिल्ली तक देश के कई हिस्सों में चल रहे प्रदर्शनों के बीच सरकार ने इस पर अपना पक्ष रखा है। इस ऐक्ट को लेकर समाज में फैली कई तरह की भ्रांतियों को लेकर गृह मंत्रालय ने सभी अहम सवालों के जवाब दिए हैं। आइए सिलसिलेवार ढंग से जानते हैं आखिर क्या है नागिरकता संशोधन कानून और किस पर क्या होंगे इसके असर…
सवाल- क्या नागरिकता संशोधन कानून भारत के किसी नागरिक पर प्रभाव डालता है?
जवाब- नहीं। इसका भारतीय नागरिकों से किसी भी तरह से कोई लेना-देना नहीं है। भारतीय नागरिकों को संविधान में वर्णित मूल अधिकार मिले हुए हैं। नागरिकता संशोधन कानून या अन्य कोई भी चीज उनसे इन्हें वापस नहीं ले सकती। यह एक तरह का दुष्प्रचार चल रहा है। नागरिकता संशोधन कानून मुस्लिम समुदाय के लोगों समेत किसी भी भारतीय नागरिक पर कोई प्रभाव नहीं डालता।
सवाल- फिर नागरिकता संशोधन कानून किस पर लागू होता है?
जवाब- यह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 तक धार्मिक उत्पीड़न के चलते आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी समुदाय के शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए है। इसके अलावा इन तीन देशों से भारत आए मुस्लिमों या फिर अन्य विदेशियों के लिए यह ऐक्ट नहीं है।
सवाल- पाक, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को इससे क्या फायदा है?
जवाब- यदि उनके पास पासपोर्ट, वीजा जैसे दस्तावेजों का अभाव है और वहां उनका उत्पीड़न हुआ हो तो वह भी भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। नागरिकता संशोधन कानून ऐसे लोगों को नागरिकता का अधिकार देता है। इसके अलावा ऐसे लोगों को जटिल प्रक्रिया से मुक्ति मिलेगी और जल्द भारत की नागरिकता मिलेगी। इसके लिए भारत में एक से लेकर 6 साल तक की रिहाइश की ही जरूरत होगी। हालांकि अन्य लोगों के लिए भारतीय नागरिकता हासिल करने को 11 साल भारत में रहना जरूरी है।
सवाल- क्या इसका अर्थ यह है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुस्लिम कभी भारत की नागरिकता नहीं ले सकेंगे?
जवाब- नहीं। सिटिजनशिप ऐक्ट के सेक्शन 6 में किसी भी विदेशी व्यक्ति के लिए नैचरलाइजेशन के जरिए भारतीय नागरिकता हासिल करने का प्रावधान है। इसके अलावा ऐक्ट के सेक्शन 5 के तहत भी रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता है। यह दोनों ही प्रावधान जस के तस मौजूद हैं। बीते कुछ सालों में भी इन तीनों देशों से आने वाले सैकड़ों मुस्लिमों को इन्हीं प्रावधानों के तहत भारत की नागरिकता दी गई है। भविष्य में भी यदि योग्य पाए जाते हैं तो ऐसे लोगों को नागरिकता दी जाएगी। इसके लिए उनका धर्म या फिर संख्या मायने नहीं रखती। 2014 के आंकड़ों के मुताबिक भारत-बांग्लादेश सीमा के निर्धारण के बाद से 14,864 बांग्लादेशी लोगों को भारतीय नागरिकता दी गई। इनमें कई हजार लोग मुस्लिम समुदाय के भी थे।
सवाल- क्या इन तीन देशों से गैर-कानूनी रूप से भारत आए मुस्लिम अप्रवासियों को CAA के अंतर्गत वापस भेजा जाएगा?
जवाब- नहीं। CAA का किसी भी विदेशी को भारत से बाहर भेजने से कोई लेना-देना नहीं है। किसी भी विदेशी नागरिक को देश से बाहर भेजने, चाहे वह किसी भी धर्म या देश का हो, की प्रक्रिया फॉरनर्स ऐक्ट 1946 और /अथवा पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) ऐक्ट 1920 के तहत की जाती है। ये दोनों कानून, सभी विदेशियों- चाहे वे किसी भी देश अथवा धर्म के हों, देश में प्रवेश करने, रिहाइश, भारत में घूमने-फिरने और देश से बाहर जाने की प्रक्रिया को देखते हैं।
इसलिए सामान्य निर्वासन प्रक्रिया सिर्फ गैरकानूनी रूप से भारत में रह रहे विदेशियों पर लागू होगी। यह पूरी तरह सोच-समझ कर बनाई गई कानूनी प्रक्रिया है जो स्थानीय पुलिस अथवा प्रशासनिक प्राधिकारियों द्वारा गैरकानूनी रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों की पहचान करने के लिए की गई जांच के बाद तैयार की गई है। इस बात का ध्यान रखा गया है कि ऐसे गैरकानूनी विदेशी को उसके देश के दूतावास/उच्चायोग ने उचित यात्रा दस्तावेज दिए गए हों ताकि जब उन्हें डिपोर्ट किया जाए तो उनके देश के अधिकारियों द्वारा उन्हें सही प्रकार से रिसीव किया जा सके।
असल में, ऐसे लोगों को देश से बाहर भेजने की प्रक्रिया तभी शुरू होगी जब कोई व्यक्ति को द फॉरनर्स ऐक्ट, 1946 के तहत 'विदेशी' साबित हो जाएगा। इसलिए पूरी प्रक्रिया में स्वचालित, मशीनी या भेदभावपूर्ण नहीं है। राज्य सरकारों और उनके जिला प्रशासन के पास फॉरनर्स ऐक्ट के सेक्शन 3 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) ऐक्ट 1920 के सेक्शन 5 के तहत केंद्र सरकार द्वारा प्रदुत्त शक्तियां होती हैं, जिससे वे गैरकानूनी रूप से रह रहे विदेशी की पहचान कर सकता है, हिरासत में रख सकता है और उसके देश भेज सकता है।