भारत में ऐसे कई रहस्यमय किले मौजूद हैं, जो बाहर से देखने पर तो काफी खूबसूरत लगते हैं, लेकिन वो अपने अंदर कुछ राज समेटे हुए हैं। एक ऐसा ही रहस्यमय किला है बुदेंलखंड प्रांत में, जिसे कालिंजर के किले के नाम से जाना जाता है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि बुदेंलखंड प्रांत उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों राज्यों में बंटा हुआ है। इस प्रांत के अंदर आने वाले कुछ जिले उत्तर प्रदेश में पड़ते हैं तो कुछ मध्य प्रदेश में पड़ते हैं। वैसे कालिंजर यूपी के बांदा जिले में स्थित है।
कालिंजर का किला भारत के सबसे विशाल और अपराजेय दुर्गों में गिना जाता रहा है। प्राचीन काल में यह दुर्ग जेजाकभुक्ति (जयशक्ति चन्देल) साम्राज्य के आधीन था। बाद में यह 10वीं शताब्दी तक चन्देल राजपूतों के आधीन और फिर रीवा के सोलंकियों के आधीन रहा। इन राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेर शाह सूरी और हुमांयू जैसे योद्धाओं ने आक्रमण किए, लेकिन इस पर विजय पाने में असफल रहे। कालिंजर विजय अभियान में ही तोप का गोला लगने से शेरशाह की मृत्यु हो गई थी। बाद में मुगल बादशाह अकबर ने इस पर अधिकार कर लिया और किले बीरबल को तोहफे में दे दिया।
इस किले में कई प्राचीन मंदिर भी हैं। इनमें से कई मंदिर तीसरी से पांचवीं सदी यानी गुप्तकाल के हैं। यहां के शिव मंदिर के बारे में मान्यता है कि सागर-मंथन से निकले विष को पीने के बाद भगवान शिव ने यहीं तपस्या कर उसकी ज्वाला शांत की थी।
यहां स्थित नीलकंठ मंदिर को कालिंजर के प्रांगण में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण और पूज्यनीय माना गया है। कहते हैं कि इसका निर्माण नागों ने कराया था। इस मंदिर का जिक्र पुराणों में भी है। इस मंदिर में एक शिवलिंग स्थापित है, जिसे बेहद प्राचीनतम माना गया है।
नीलकंठ मंदिर के ऊपर ही जल का एक प्राकृतिक स्रोत है, जो कभी सूखता नहीं है। इसी जल से मंदिर में मौजूद शिवलिंग का अभिषेक निरंतर प्राकृतिक तरीके से होता रहता है। वैसे बुंदेलखंड का यह इलाका सूखे के कारण जाना जाता है, लेकिन यहां कितना भी सूखा पड़े, जल का यह स्रोत कभी नहीं सूखता है।
कहते हैं कि कालिंजर के किले में कई रहस्यमयी छोटी-बड़ी गुफाएं भी मौजूद हैं। इन गुफाओं के रास्तों की शुरुआत तो किले से ही होती है, लेकिन यह कहां जाकर खत्म होती है, यह कोई नहीं जानता।
जमीन से 800 फीट की ऊंची पहाड़ी पर बना कालिंजर का यह किला जितना शांत है, उतना ही खौफनाक भी। कहते हैं कि रात होते ही यहां एक अजीब सी हलचल पैदा हो जाती है। लोगों का मानना है कि यहां मौजूद रानी महल से रात को अक्सर घुंघरुओं की आवाज सुनाई देती है। यही वजह है कि यहां दिन के समय तो लोग घूमने के लिए आते हैं, लेकिन रात होने से पहले ही वो यहां से निकल जाते हैं।
इस किले में प्रवेश के लिए सात दरवाजे बने हुए हैं और ये सभी दरवाजे एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। यहां के स्तंभों और दीवारों में कई प्रतिलिपियां बनी हुई हैं। मान्यता है कि प्रतिलिपियों में यहां मौजूद खजाने का रहस्य छुपा हुआ है, जिसे अब तक कोई भी ढूंढ नहीं पाया है।
इस किले में सीता सेज नामक एक छोटी सी गुफा है, जहां एक पत्थर का पलंग और तकिया रखा हुआ है। माना जाता है कि यह जगह माता सीता की विश्रामस्थली थी। यहीं एक कुंड भी है, जो सीताकुंड कहलाता है। किले में बुड्ढा और बुड्ढी नामक दो ताल हैं, जिसके जल को औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है। मान्यता है कि इनका जल चर्म रोगों के लिए लाभदायक है और इसमें स्नान करने से कुष्ठ रोग भी ठीक हो जाता है।