नई दिल्ली
देव आनंद को अपने दौर का कूल अभिनेता माना जाता था. इसका एक कारण ये भी था कि वे अपनी फिल्मों में प्रयोगों से घबराते नहीं थे. उन्होंने ऐसा ही एक प्रयोग खुद डायरेक्ट की गई फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा के साथ भी किया था. इस फिल्म के सहारे देव आनंद ने 60 के दशक में हिप्पी कल्चर को सिनेमा के रुपहले पर्दे पर उतारा था.
दरअसल, 60 के दशक में अमेरिका वियतनाम के साथ युद्ध से जूझ रहा था. इसके अलावा नस्लभेदी हिंसा के साथ ही साथ लोगों में उस दौर के हालातों को लेकर व्याकुलता भी मौजूद थी. ऐसे में रॉक एंड रोल और साइकेडेलिक ड्रग्स का इस्तेमाल करने वाले कुछ युवा मेनस्ट्रीम और पूंजीवादी सिस्टम से इतर अपने सच की तलाश में निकल पड़े थे. फ्लावर पावर जनरेशन के नाम से विख्यात इस जनरेशन ने युद्ध और हिंसा का विरोध किया और शांति और प्यार का संदेश दिया. 1969 में अमेरिका के वुडस्टॉक फेस्टिवल के दौरान गिटार गॉड जिमी हेन्ड्रिक्स और कार्लोस सैंटाना जैसे आर्टिस्ट्स ने परफार्म किया था. 70 के दशक में जब अमेरिकी सरकार ने इस कल्चर पर नकेल कसी तो कई हिप्पी नेपाल और भारत जैसे देशों में आ गए थे.
एक लड़की को देखकर आया फिल्म बनाने का ख्याल
देव आनंद उस दौरान नेपाल के काठमांडू में मौजूद थे. उन्हें जानकारी मिली थी कि उनका एक जर्मन दोस्त भी वहां डॉक्यूमेंट्री शूट करने के लिए आ रहा है. देवानंद के दोस्त ने उन्हें कहा कि नेपाल में ही एक जगह पर हिप्पी कल्चर के लोग आते हैं. कौतूहल देवानंद उस जगह पर उनके साथ चल दिए. वहां उन्होंने देखा कि कई विदेशी झूम रहे हैं, चिलम में भरकर चरस पी रहे हैं, और इंजॉय कर रहे हैं. देवानंद ने वहां एक लड़की को देखा, जो विदेशी नहीं बल्कि देसी लग रही थी. उन्होंने उस जगह के बारमेन ने इस बारे में बात की और अगले दिन देव साहब की उस लड़की के बारे में पता चला. भारतीय मूल की उस लड़की ने बताया कि वो कनाडा में रहती है और भागकर यहां नेपाल आई है. दरअसल इस लड़की की अपनी मां से नहीं बनती थी और काफी अनबन होती थी. घर से दूर वो नेपाल आ गई थी और नए कल्चर में रच बस गई थी. उसका नाम जसबीर था और प्यार से लोग उसे जेनिस बुलाते थे.
जेनिस अपनी कहानी सुना रही थी वहीं जेनिस की कहानी सुन देवानंद अपने दिमाग में एक फिल्म का अक्स तैयार कर रहे थे. वे इस कल्चर से प्रभावित हुए और अपनी दूसरी निर्देशित फिल्म को इसी सब्जेक्ट पर बनाने का फैसला किया. इस रोल के लिए देव ने काफी अभिनेत्रियों को ट्राई किया, जिसमें उस दौर की मिस इंडिया भी शामिल थीं. हालांकि, देव को इस रोल के लिए जीनत अमान एकदम परफेक्ट लगीं. वे अमेरिका में स्टूडेंट एक्सचेंज के चलते एक साल बिता कर आई थीं और वे बोर्डिंग स्कूल प्रोडक्ट थीं. वे मुंबई के उस पार्टी सेट का हिस्सा थीं जो हिंदी फिल्मों से दूर रहता था. उनके इंटरनेशनल लुक्स और वेस्टर्न सभ्यता के प्रभाव के चलते देव आनंद ने उन्हें अपनी फिल्म में लेने का मन बनाया था.
देवानंद ने 1971 में हरे रामा हरे कृष्णा बनाई. फ़िल्म सुपरहिट हुई थी और फ़िल्म का गाना 'दम मारो दम' कल्ट क्लासिक साबित हुआ और देवानंद के सहारे हिंदी सिनेमा के रुपहले पर्दे पर पहली बार हिप्पी कल्चर नजर आया था.