मुंबई
मोटापे की चपेट में बच्चे भी आ रहे हैं। मुंबई के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों पर हाल ही में किए गए एक सर्वे के परिणाम चौंकाने वाले हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 21 प्रतिशत बच्चों का वजन सामान्य से अधिक पाया गया, जबकि 16 प्रतिशत बच्चे गंभीर रूप से मोटापे के शिकार हैं। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों में बढ़ते मोटापे की समस्या को समझने के लिए 'आस्था हेल्थ केयर' की तरफ से एक कार्यक्रम 'इरेडिकेटिंग चाइल्डहुड ओबेसिटी' (बचपन के मोटापे का खात्मा) की शुरुआत की गई है। इसके तहत स्कूली बच्चों में मोटापे की समस्या का समाधान ढूंढा जा रहा है।
यह सर्वे तीन महीने तक मुंबई के 9000 स्टूडेंट्स पर किया गया। इनमें 4806 लड़के और 4194 लड़कियों को शामिल किया गया था। बच्चों में मोटापे की समस्या को समझने के लिए उनका बॉडी मास इंडेक्स (BMI) जांचा गया। उसी के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया।
क्या हैं लक्षण
सांस फूलना, सुस्त रहना, पेट के पास अतिरिक्त चर्बी जमा होना
क्यों बढ़ रही यह समस्या
– आउटडोर ऐक्टिविटी कम होने और स्क्रीन पर बहुत अधिक समय बिताने के कारण बच्चों में यह समस्या हो रही है।
– 9 प्रतिशत लड़कों और 37 प्रतिशत लड़कियों में यह समस्या अवसाद और ऐंग्जाइटी के कारण भी दिख रही है।
मोटापे का शिकार हो रहा बचपन, जानें कारण और बचाव के उपाय
मोटापे से खतरे
– डॉक्टरों के अनुसार, बढ़ते मोटापे के कारण बच्चों में कम उम्र में डायबीटीज होने का खतरा बढ़ जाता है।
– आगे चलकर उन्हें दिल की बीमारी होने की भी काफी अधिक संभावना होती है।
50 हजार बच्चों पर होगा सर्वे
सर्वे करने वाले मोटापा रोग विशेषज्ञ डॉ. मनीष मोटवानी ने कहा कि बचपन में मोटापे से बच्चों का न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और सामाजिक जीवन भी प्रभावित होता है। पिछले कुछ सालों से इसके कारण बच्चों के शैक्षणिक परफार्मेंस पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है। बच्चों में यह समस्या समझने और समय रहते उसे हल करने के लिए हम मुंबई के 50 हजार बच्चों पर सर्वे करेंगे।
मोटापा बच्चों में बढ़ा सकता है अस्थमा का खतरा: अध्ययन
पोषण आहार की कमी, एक्सरसाइज से दूरी और जंक फूड पर अधिक निर्भरता के कारण दो दशक में विकसित देशों में बच्चों में होने वाला मोटापा तीन गुना बढ़ा है। इसे बेहद ही गंभीरता से लेने की जरूरत है। – डॉ. मनीष मोटवानी, मोटापा रोग विशेषज्ञ
तनाव और अवसाद के कारण भी मोटापे की समस्या बढ़ती है। खानपान के अलावा मेंटल हेल्थ के बारे में भी चर्चा करने की जरूरत है। – डॉ. सागर मुंदड़ा, मनोचिकित्सक