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रामालय ट्रस्ट व सुन्नी वक्फ बोर्ड का पहले ही हो गया था समझौता

अयोध्या
शारदा व द्वारिका पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित मध्यस्थता कमेटी के समक्ष रामालय ट्रस्ट के प्रयास से सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित स्थल पर बिना शर्त अपना दावा छोड़ते हुए लिखित समझौता कर लिया था। उनका दावा है कि यह समझौता कोर्ट के समक्ष पेश भी कर दिया गया। उनका यह भी दावा है कि इसी समझौते के ही आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट के पांचों न्यायाधीशों ने सर्वसम्मत फैसला दिया।

वह शुक्रवार को अयोध्या में रामलला के दर्शन करने के लिए आए थे। इससे पहले जानकी घाट बड़ा स्थान में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को नया ट्रस्ट बनाने का आदेश नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने धारा छह के अनुसार केन्द्र सरकार को तीन माह में नियमावली बनाकर उस ट्रस्ट को सौंपने का आदेश दिया है जो सात जनवरी 1993 के एक्ट के अनुसार गठित हो। उन्होंने कहा कि मीडिया ने जल्दबाजी में गलत खबर प्रसारित कर दी है।

शंकराचार्य के उत्तराधिकारी श्री स्वामी का दावा है कि दूसरे न्यास के सापेक्ष रामालय ट्रस्ट अयोध्या एक्ट के अनुरुप गठित है और यही ट्रस्ट ही रामजन्मभूमि में भव्य मंदिर का निर्माण भी कराएगा। श्री स्वामी ने बताया कि मंदिर का माडल तैयार कराया जा रहा है। इसके लिए चेन्नई के काष्ठ कलाकार से सम्पर्क किया गया था। उन्होंने एक मॉडल दिखाया है। उसके अनुसार फोर डी यानि कि चार डायमेनशल मॉडल सात दिसम्बर को अयोध्या में सार्वजनिक किया जाएगा।

स्वर्ण मंदिर बनना चाहिए जिसका शिखर 1008 फिट हो
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का यह भी कहना है कि विहिप की ओर से प्रस्तुत मॉडल जमीन मिलने के पहले ही तैयार कर दिया गया जो कि गलत है। जमीन के अनुसार मॉडल बनेगा तभी उसको मूर्त रूप दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने यह बयान भी दिया था कि ऐसा राम मंदिर बनना चाहिए जिसका शिखर आकाश को चूमता हो लेकिन विहिप के मॉडल का शिखर आकाश  चूमता नहीं दिखाई देता है। इस माडल में कारसेवकों की भावनाएं जुड़ी हैं लेकिन भव्यता और दिव्यता नहीं है। उन्होंने कहा कि धर्माचार्यों के मतानुसार रामलला के लिए स्वर्ण मंदिर बनना चाहिए जिसका शिखर कम से कम 1008 फिट का हो और उसमें एक लाख आठ हजार श्रद्धालु एक साथ बैठकर पूजन कर सकें। उन्होंने कहा कि कंबोडिया का अंकोरवाट का मंदिर आज भी विश्व में सबसे बड़ा है। रामलला का मंदिर उससे बड़ा होना चाहिए।

निर्माण से पहले भी स्वर्ण मंदिर में ही विराजेंगे रामलला
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण करने से पहले विराजमान रामलला को छोटा स्वर्ण मंदिर बनवाकर उसी में प्रतिष्ठित किया जाएगा। इसी मंदिर में उनका दर्शन-पूजन चलता रहेगा। उन्होंने कहा कि भव्य मंदिर के निर्माण में पर्याप्त समय लगेगा। इसीलिए रामलला की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जब सम्पूर्ण रूप से मंदिर का निर्माण हो जाएगा तो विधि-विधान से धर्माचार्यों के निर्देशन में पुन: रामलला को नवीन मंदिर में प्रतिष्ठित किया जाएगा।

सूर्यदेव के उत्तरायण होने पर नवीन मंदिर में विराजें रामलला
शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का यह भी कहना है कि धर्माचार्यों की इच्छा है कि सूर्य उत्तरायण हो तब रामलला नवीन मंदिर में विराजें। उन्होंने कहा कि देवताओं का एक दिन एक वर्ष का होता है। अभी देवताओं की रात्रि चल रही है। देवउठनी एकादशी से भगवान का योगनिद्रा से जागरण हो गया है लेकिन मकर संक्रांति से सूर्य के उत्तरायण के साथ ही देवताओं का दिन आरम्भ हो जाएगा।

केन्द्र सरकार के समक्ष रामालय ट्रस्ट ने प्रस्तुत कर दिया है दावा
रामालय ट्रस्ट के सचिव स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि केन्द्र सरकार को पत्र भेजकर दावा प्रस्तुत कर दिया गया है। यह पत्र प्रधानमंत्री व केन्द्रीय गृहमंत्री को प्रेषित कर दिया गया है। अब सरकार को निर्णय लेना है कि वह तीन माह के भीतर नियमावली बनाकर रामालय ट्रस्ट को जमीन सौंपे जिससे कि मंदिर निर्माण की प्रक्रिया को प्रारम्भ किया जा सके।

पर्यटन स्थल नहीं तीर्थ स्वरुप रहे कायम
रामालय ट्रस्ट के सचिव स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की मांग है कि अयोध्या को पर्यटन स्थल नहीं बनाया जाना चाहिए बल्कि इसके तीर्थ के स्वरुप को ही बरकरार रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि पर्यटन स्थल का अर्थ है कि जहां पर्यटक आनंद की प्राप्ति करते हैं। इसके विपरीत तीर्थ स्थल में कष्ट सह कर भी वह संतुष्ट होते हैं और उन्हें लगता है कि उनके सारे पाप धुल गए और वह फिर से अपने आपको तरोताजा महसूस करने लगते हैं। उन्होंने कहा कि धर्माचार्य प्रबंधन के लिए नहीं लड़ रहे हैं बल्कि तीर्थ की मर्यादा बनी रहे, यही उनकी चिंता है और पद की मर्यादा के अनुसार यही चिंता वाजिब है।

धार्मिक ट्रस्ट में नहीं होना चाहिए सरकार का हस्तक्षेप
रामालय ट्रस्ट के सचिव स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है कि जगन्नाथ पुरी के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि धर्मनिरपेक्ष सरकार का धार्मिक ट्रस्ट में कोई काम नहीं है। यही नहीं बागपत के भाजपा सांसद सत्यपाल मलिक ने भी संसद में विधेयक पेश किया है जिसमें कहा गया कि सरकार के अधीन धार्मिक ट्रस्टों को मुक्त किया जाए। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में केन्द्र सरकार न्यास का गठन क्यों करेगी। उन्होंने कहा कि अफसर अधिक से अधिक रेवन्यू एकत्र करने के लिए धार्मिक न्यासों पर अधिकार की योजना बनाते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार यह प्रयास अमानत में खयानत है क्योंकि जिस मद का धन है, वह उसी मद में खर्च होना चाहिए लेकिन सरकारें धर्मादा धन का उपयोग दूसरे मदों में करती हैं। दक्षिण भारत का उदाहरण

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