राजस्थान में निकाय चुनाव आज, 33 लाख मतदाता करेंगे मतदान

 
जयपुर

राजस्थान की कुल 49 निकायों के लिए 16 नवंबर यानी आज चुनाव होने हैं. इनमें 28 नगर पालिका, 18 नगर परिषद एवं 3 नगर निगम शामिल हैं. इन चुनावों के नतीजे राजस्थान की राजनीति के हिसाब से महत्वपूर्ण हो सकते हैं. पिछले महीने 2 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में से एक में कांग्रेस और एक पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने जीत हासिल की थी.

बीजेपी को इनमें से मंडावा की सीट पर 30,000 से ज्यादा मतों से हार का सामना करना पड़ा था जबकि खींवसर की सीट पर उसने चुनाव नहीं लड़ा था. निकाय चुनावों को लेकर दी गई चुनाव आयोग द्वारा जानकारी के मुताबिक इन चुनावों में 33 लाख से अधिक लोगों के पास अपने मत का उपयोग करने का हक होगा जबकि 7942 उम्मीदवारों पर फैसला इन चुनावों के द्वारा किया जाएगा.

निकाय चुनावों को लेकर राजस्थान की गहलोत सरकार के एक फैसले की वजह से उसे अंदरूनी लड़ाई भी झेलनी पड़ी थी. राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने गहलोत सरकार के एक फैसले का विरोध किया था जिसके तहत मेयर एवं चेयरपर्सन के पदों को बिना चुनाव लड़े हासिल किया जा सकता था.

हालांकि, बाद में पायलट ने गहलोत सरकार के अपने ही फैसले को बदलने पर खुशी जाहिर की थी. पायलट ने यह तक कहा कि किसी भी अन्य प्रदेश में ऐसा प्रावधान नहीं है कि बिना चुने ही लोग मेयर और चेयरमैन के पद के लिए चुनाव लड़ सकते हों.

अशोक गहलोत सरकार के निकाय चुनावों को लेकर लिए गए निर्णय पर यू-टर्न ने भाजपा को कांग्रेस पर कटाक्ष करने का एक और मौका दे दिया था. भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने अशोक गहलोत सरकार के निकाय चुनावों पर लिए गए निर्णय पर यू टर्न को जनता की जीत बताया. पूनिया ने कहा था कि विपक्ष के दबाव के आगे सरकार को अपना अलोकतांत्रिक निर्णय वापस लिया है.

सतीश पूनिया ने कहा, 'भाजपा ने सरकार द्वारा हाईब्रिड मॉडल के अंतर्गत लिए गए निर्णयों के खिलाफ सांसदों, विधायकों, प्रमुख लोगों और कार्यकर्ताओं से चर्चा कर यह ऐलान किया था कि अगर सरकार इस हाईब्रिड मॉडल को वापस नहीं लेगी तो जनहित में भाजपा 1 नवम्बर को प्रदेश के सभी निकायों में सरकार के खिलाफ आंदोलन करेगी व पार्टी द्वारा इसके लिए तैयारियां भी कर शुरू कर दी गई थी. भाजपा द्वारा आंदोलन की चेतावनी के बाद दो गुटों वाली असमंजस में फंसी सरकार बैकफुट पर आ गई.'

सतीश पूनिया ने यह भी कहा कि निकाय चुनावों को लेकर यह सरकार शुरू से ही असमंजस की स्थिति में लग रही है और अजीबो-गरीब फैसले ले रही है, सरकार अपने द्वारा लिए गए निर्णयों पर ही अनेक मामलों में विभक्त दिखाई दी. निकाय चुनावों को लेकर सरकार ने पहले अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के तहत पार्षदों द्वारा मेयर, सभापति और चेयरमेन का चुनाव करने की घोषणा की.

लेकिन इससे भी आशंकित सरकार ने हाईब्रिड मॉडल का फार्मूला जनता के समक्ष रखा जिसके अंतर्गत बाहर से कोई भी व्यक्ति अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव लड़कर मेयर, सभापति या चेयरमेन बन सकेगा, उसे पार्षद का चुनाव लड़ने की आवश्यकता नहीं होगी. सरकार के इस अलोकतांत्रिक निर्णय पर स्वयं उपमुख्यमंत्री, सरकार के मंत्री और विधायक असहमत दिखाई दिए.'

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