नई दिल्ली
अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस फैसले को सुनाने से पहले मामले की सुनवाई कर रही 5 सदस्यीय बेंच ने देश की सुरक्षा-व्यस्था पर खास चर्चा की थी। मामले की सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के पांचों जजों ने कानून-व्यवस्था को लेकर पुलिस, खुफिया तंत्र और केंद्रीय गृह सचिव से अपनी चिंताओं को लेकर विस्तृत चर्चा की थी। जब देश में कानून-व्यवस्था को लेकर जजों को सभी तरफ से यह पुख्ता आश्वसन मिल गया कि फैसले के बाद हालात काबू में रहेंगे। इतना ही नहीं गृह मंत्रालय ने यह भी भरोसा दिलाया कि अगर इस निर्णय से आम जनता में कहीं गुस्सा फूटा भी तो वे उस पर काबू पाने के लिए वह पूरी तरह तैयार हैं। तब जाकर ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाने की तारीख तय की। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई की अगुआई में मामले की सुनवाई कर रही 5 सदस्यीय बेंच को ऐसा अंदेशा था कि इस संवेदनशील मामले पर फैसला सुनाने के बाद कहीं समाज के किसी वर्ग में गुस्सा न फूट जाए।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई, गोगोई के बाद नए चीफ जस्टिस बनने जा रहे जस्टिस एसए बोबड़े और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस. अब्दुल नजीर ने जब केंद्रीय गृह सचिव एके भल्ला और खुफिया विभाग के चीफ अरविंद कुमार से गुरुवार को देश भर में सुरक्षा-व्यवस्था को लेकर पूरी तरह आश्वासन पा लिया तो इसके बाद ही बेंच ने अपना यह निर्णय सुनाने का फैसला लिया। जजों को आशंका थी कि इस निर्णय से दो संप्रदायों में कहीं किसी प्रकार की टेंशन न बढ़ जाए।
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जब खुफिया विभाग के प्रमुख ने जजों को इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त कर दिया कि देश में शांति-व्यवस्था को लेकर कहीं से भी किसी प्रकार के खतरे का कोई इनपुट नहीं है। इसके बाद गृह सचिव ने भी जजों को यह विश्वास दिलाया कि देश में सुरक्षा-व्यवस्था को लेकर और किसी भी अनचाही स्थिति से निपटने के लिए केंद्र और सभी राज्यों में पर्याप्त तैयारियां की जा रही हैं। केंद्र के स्पष्टीकरण के बाद चीफ जस्टिस समेत बाकी जजों ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक से भी इस बात को लेकर विस्तृत चर्चा की कि अयोध्या पर फैसला आने के बाद कहीं से किसी भी तरह के आशांति का अंदेशा तो नहीं है। दोनों ने जजों को यह विश्वास दिलाया कि इस निर्णय को लेकर कहीं से भी कानून-व्यवस्था बिगड़ने का कोई अंदेशा नहीं है।
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इसके बाद शुक्रवार को भी जजों ने एक फिर सुरक्षा-व्यवस्था से जुड़ी इन्हीं चिंताओ पर स्पष्टीकरण लिया और इसके बाद ही उन्होंने शनिवार को अपना यह निर्णय सुनाने का फैसला लिया। इस सर्वसम्मति वाले फैसले का पहला ड्राफ्ट 3 नवंबर को ही तैयार हो गया था और अगले ही दिन यह बेंच के जजों को सौंप दिया गया। इसके बाद जजों ने इस ड्राफ्ट को लेकर अपने विचार रखे और इस फैसले पर अपनी-अपनी कांट-छांट (जोड़ना या हटाना) के सुझाव दिए। इसके बाद बुधवार को इस फैसले को फाइनल ड्राफ्ट के लिए भेजा गया और अगले दिन गुरुवार को अंतिम जजमेंट का ड्राफ्ट बनकर तैयार हो चुका था। लेकिन पांचों जजों ने इस निर्णय को लिखने की अपनी-अपनी तैयारी इस मामले की सुनवाई के पहले दिन (6 अगस्त) से शुरू कर दी थी।
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इस खंडपीठ के पांचों जजो ने जब 6 अगस्त से इस मामले की सुनवाई शुरू की थी, तभी से सभी ने सतकर्तापूर्वक अपने नोट्स लिखने शुरू कर दिए थे। जजों ने इस मामले में सुनाए गए इलाहाबाह हाई कोर्ट के 4000 पन्नो के निर्णय का भी बारीकी से अध्ययन किया था। पांचों जज इस मामले की सुनवाई से आधे घंटे पहले और आधे घंटे बाद में रोजाना चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के चैंबर में दो बार मिलते थे। वह इस मामले की सुनवाई के दौरान वकीलों के वाद-विवाद से जुड़ी महत्वपूर्ण टिपप्णियों और साक्ष्यों पर बनाए अपने नोट्स का आदान-प्रदान यहां करते थे।
6 अगस्त को शुरू हुई यह मैराथन सुनवाई जब 16 अक्टूबर को पूरी हो गई तब तक जजों ने अदालत में हुई जिरह और साक्ष्यों के आधार पर 20,000 पेज लिख लिए थे। जजों के यह नोट्स 135 खंडों में कोर्ट में जमा कराए हैं, हर खंड में 15 से 50 पेज शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, 'जजों के लिए यह अत्यंत चुनौतीपूर्ण काम था कि वे अगले 23 दिनों (सुनवाई खत्म होने के बाद) के भीतर 25, 000 पन्नों को पढ़कर ऐसे मामले पर अपना निर्णय सुनाएं, जो अब तक का सबसे संवेदनशील और ऐतिहासिक केस है।'