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अयोध्यानामा-2 : 22-23 दिसंबर की वह रात…

 नई दिल्ली 
1949 दिसंबर की उस रात अयोध्या में कुछ ऐसा हुआ कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा। अयोध्या की फिजा रातोरात बदल गई। ढेरों पौराणिक आख्यानों को अपने सीने में समेटे यह शांत-सा शहर भारत के सबसे बड़े धार्मिक-राजनीतिक विवाद का मैदान बन गया। उस घटना ने भारत की राजनीति में एक युग का सूत्रपात किया। सरकारों के बनने-बिगड़ने का कारण भी बना। उसकी प्रतिध्वनियां अब तक सुनाई पड़ती हैं।

अयोध्या में बाबरी मस्जिद के निर्माण के कुछ बाद से ही ‘मस्जिद में स्थित गर्भगृह' में रामलला को पुन: स्थापित करने के प्रयास शुरु हो गए थे, क्योंकि हिंदुओं का मानना था कि राम मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया गया था। सन् 1853 में इस मुद्दे को लेकर पहली बार सांप्रदायिक हिंसा हुई। इस मुद्दे में एक महत्त्वपूर्ण घटना 1859 में हुई, जब ब्रिटिश सरकार ने एक पार्टीशन कर मस्जिद के भीतरी परिसर में मुसलमानों को इबादत और बाहरी परिसर में हिदुओं को पूजा करने की अनुमति दे दी। इस बात के करीब एक-चौथाई सदी बाद यानी 1885 में यह मामला पहली बार न्यायालय में पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद न्यायालय में अपील दायर की। उन्होंने बाबरी मस्जिद के बगल में एक राम मंदिर के निर्माण की अनुमति देने की प्रार्थना न्यायालय से की।

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद में सबसे ऐतिहासिक मोड़ देश की आजादी के करीब दो साल बाद 23 दिसंबर को आया। अयोध्या के लिए शुक्रवार की वह सुबह बाकी सभी दिनों से अलग थी। वहां सबके होंठों पर गोस्वामी तुलसीदास की चौपाई ‘भये प्रगट कृपाला' थी। बाबरी मस्जिद में उस स्थान पर, जहां हिंदुओ का विश्वास था कि भगवान राम पैदा हुए थे, रामलला की मूर्ति ‘प्रकट' हुई थी।

23 दिसंबर,1949 की सुबह अयोध्या की फिजा बदली हुई थी। बाबरी मस्जिद के मुख्य भवन में ‘रामलला प्रकट हुए थे'। अयोध्या के थानाध्यक्ष रामदेव दुबे जब रुटीन जांच के लिए सुबह सात बजे के करीब उस स्थान पर पहुंचे, तब वहां ‘प्राकट्य स्थल' सैकड़ों लोग जमा हो चुके थे। दिन चढ़ने के साथ यह संख्या बढ़ते-बढ़ते हजारों तक पहुंच गई। मंदिर शंख ध्वनियों से गूंजने लगे और बाल रूप में भगवान राम के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी।

गौरतलब है कि बाबरी मस्जिद उन दिनों सिर्फ जुमे की नमाज के लिए शुक्रवार को खुलती थी। उसी मस्जिद के एक हिस्से में राम चबूतरा था, जिस पर भगवान राम की बाल्यावस्था की मूर्ति थी। उन दिनों वहां दर्शन करनेवालों लोगों की संख्या शहर के अन्य मंदिरों के दर्शनार्थियों जितनी ही हुआ करती थी। लेकिन ‘रामलला के प्राकट्य' के बाद सब कुछ अचानक से बदल गए, मंदिर के लिए भी और शहर के लिए भी।

उस दिन बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के ठीक नीचेवाले कमरे में वही मूर्ति प्रकट हुई थी, जो जमाने से राम चबूतरे पर विराजमान थी। पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव ने अपनी किताब ‘अयोध्या : 6 दिसंबर, 1992' में उस एफ.आई.आर. का ब्यौरा दिया है, जो उस दिन घटना के बाद लिखी गई थी- ‘रात में 50-60 लोग ताला तोड़कर और दीवार फांदकर मस्जिद में घुस गए और वहां उन्होंने श्री रामचंद्रजी की मूर्ति की स्थापना की। उन्होंने दीवार पर अंदर और बाहर गेरू और पीले रंग से ‘सीताराम' आदि भी लिख दिया। उस समय ड्यूटी पर तैनात कांस्टेबल ने उन्हें ऐसा करने से मना किया लेकिन उन्होंने उसकी बात नहीं सुनी। वहां तैनात पी.ए.सी. को भी बुलाया गया, लेकिन उस समय तक वे मंदिर में प्रवेश कर चुके थे।'

मामला संवेदनशील था, लिहाजा बात लखनऊ और दिल्ली तक पहुंची। राज्य और केंद्र की सरकार ने तय किया कि अयोध्या में पूर्व स्थिति बहाल की जाए। तब उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव भगवान सहाय ने फैजाबाद के जिलाधिकारी और उपायुक्त के. के. नायर को लिखित आदेश दिया कि अयोध्या में पूर्व स्थिति बहाल की जाए। मुख्य सचिव का आदेश था कि इसके लिए बल प्रयोग भी करना पड़े तो संकोच न किया जाए, लेकिन नायर ने सरकार का आदेश मानने से मना कर दिया। उन्होंने भगवान सहाय को भेजे गए अपने जवाब में लिखा-‘रामलला की मूर्तियों को गर्भगृह से निकालकर राम चबूतरे पर ले जाना संभव नहीं है। ऐसा करने से अयोध्या, फैजाबाद और आसपास के गांवों-कस्बों में कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है।

जिला प्रशासन के अधिकारियों, यहां तक कि पुलिसवालों की जान की गारंटी भी नहीं दी जा सकती।' उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत नायर की बात से सहमत नहीं हुए। दोबारा आदेश दिया गया कि पूर्व स्थिति बहाल की जाए। इसके जवाब में नायर ने 27 दिसंबर,1949 को लिखे पत्र में इस्तीफे की पेशकश कर दी और सरकार को एक सुझाव भी दिया। इस सुझाव में उन्होंने कहा कि स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए इस विषय को न्यायालय पर छोड़ा जा सकता है और जब तक फैसला आए, तब तक विवादित ढांचे के बाहर एक जालीनुमा गेट लगाया जा सकता है, जहां से लोग रामलला के दर्शन कर सकें, लेकिन अंदर न जा पाएं। उन्होंने विवादित ढांचे के आसपास सुरक्षा का घेरा सख्त करने की भी सलाह दी।

प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू और प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने नायर का इस्तीफा तो स्वीकार नहीं किया, लेकिन उनके सुझावों पर अमल जरूर किया। और उसी समय से रामलला वहीं ‘गर्भगृह' में विराजमान हैं।

यकायक मैंने मस्जिद के भीतर तेज रोशनी देखी। मेरी आंखें चौंधियां गईं। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। जब रोशनी कम हुई तो मैंने यह चमत्कार देखा। वहां भगवान राम अपने तीन भाईयों के साथ प्रकट हुए थे। -अब्दुल बरकत, गार्ड

23 दिसंबर, 1949 समय प्रात: लगभग 9 बजे। मैं जब जन्मभूमि पहुंचा, तब मुझे ज्ञात हुआ कि 50-60 व्यक्तियों के एक समूह ने बाबरी मस्जिद के परिसर का ताला खोलकर एवं सीढ़ियों तथा दीवारों को खुरचकर वहां अ

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