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डेंगू के मरीजों की संख्या पता न चले इसलिए कर दिया ये खेल, जान पर बनी

 कानपुर 
डेंगू लोगों की जान ले रहा है और स्वास्थ्य विभाग आंख-कान बंद किए है। बीमारी की भयावहता से शहर में भय का माहौल न पैदा हो, इसके लिए डेंगू की जांच के लिए बनी गाइडलाइन ही बदल दी गई है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) की हिदायत के बाद जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में एनएस-1 टेस्ट बंद है। इससे नतीजे जल्दी आ जाते हैं और डेंगू के मरीजों की सही-सही संख्या सामने आ जाती है। इसके विपरीत यहां आईजीएम जांच की जा रही है, जिसका रिजल्ट एक हफ्ते बाद मिलता है। 

केन्द्र सरकार का दिशानिर्देश है कि डेंगू के मरीजों का इलाज जल्द से जल्द शुरू हो जाए, इसके लिए सैम्पलों का एनएस-1 टेस्ट पहले किया जाना चाहिए। इससे एक से पांच दिन में ही पता चल जाता है कि किसी मरीज को डेंगू है या नहीं। इसके विपरीत इस बीमारी के लिए नोडल सेंटर बनाए गए जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में डेंगू की आईजीएम जांच की जा रही है। इसमें सात दिन बाद डेंगू के एंटीबॉडीज सामने आते हैं, तब पता लगता है कि मरीज को डेंगू है या नहीं। इतने समय में तो मरीज की जान पर बन आती है।   

मेडिकल कॉलेज लौटा रहा सैम्पल

माइक्रोबायोलॉजी विभाग को स्वास्थ्य विभाग ने मई में एनएस-1 जांच की किट दी थी। इससे 256 मरीजों के सैम्पल टेस्ट किए गए। किट खत्म होने के बाद फिर उपलब्ध ही नहीं कराई गई। इससे आईजीएम टेस्ट का ही सहारा है। यही नहीं, यह जांच सुविधा भी माइक्रोबायोलॉजी विभाग सिर्फ हैलट के मरीजों की ही उपलब्ध करा रहा है। मेडिकल कॉलेज प्रशासन का कहना है कि उसके पास बाकी मरीजों के लिए संसाधन नहीं हैं। इसलिए निजी अस्पतालों, नर्सिंग होम और अन्य सरकारी अस्पतालों से जांच के लिए आए सैम्पल वापस किए रहे हैं। हद तो यह है कि इस दिशा में स्वास्थ्य विभाग कोई कदम नहीं उठा रहा है।  

उर्सला में जांच की सुविधा उपलब्ध

स्वास्थ्य विभाग ने उर्सला अस्पताल को जरूर एनएस-1 टेस्ट किट उपलब्ध कराई है। इससे 19 अक्तूबर से टेस्ट किए जा रहे हैं। शुक्रवार को उर्सला में 10 मरीजों में डेंगू की पुष्टि हुई है। हालांकि, अस्पताल के पास इतने संसाधन नहीं हैं कि पूरे शहर की जांच का दबाव संभाल सके। इसके लिए मेडिकल कॉलेज बेहतरीन विकल्प है पर उस ओर स्वास्थ्य विभाग ध्यान ही नहीं दे रहा है। 

समय पर जांच रिपोर्ट जरूरी

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के डॉ. प्रेम सिंह का कहना है कि कई अन्य बुखार के लक्षण भी डेंगू जैसे ही होते हैं। इसलिए बेहद जरूरी है कि एनएस-1 किट से जांच हो, जिससे कम समय में डेंगू होने या न होने की पुष्टि हो सके। सिर्फ लक्षण के आधार पर इलाज करने से मरीजों को दिक्कत हो सकती है। 

पता करेंगे क्यों नहीं हो रही जांच

उधर, सीएमओ डॉ. अशोक शुक्ल का दावा है कि उर्सला में एनएस-1 जांच की गई है। जिसे भी जांच कराना हो, वहां करा सकता है। इस बीमारी के नोडल सेंटर जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में डेंगू की एनएस-1 जांच क्यों नहीं हो रही है, इसकी पड़ताल की जाएगी। संख्या छिपाने के लिए ऐसा नहीं किया गया है। शहर में चौतरफा मच्छर हैं, जिसके कारण डेंगू फैल रहा है। सबसे संवेदनशील 96 इलाकों की सूची भी नगर निगम को सौंपी जा चुकी है। 

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