प्रयागराज
दुनिया में योग और आयुर्वेद का पचरम लहराने वाले आचार्य बालकृष्ण जल्द ही सनातन धर्म का प्रचार प्रसार भी करते जल्द नजर आएंगे। इसके लिए पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी आचार्य बालकृष्ण को महामंडलेश्वर की पदवी देने जा रहा है। साधु-संतों की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत नरेन्द्र गिरि ने हरिद्वार स्थित पतंजलि योगपीठ में बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण से मुलाकात के बाद उन्हें महामंडलेश्वर बनाये जाने का प्रस्ताव रखा।
अखाड़ा परिषद सचिव के इस प्रस्ताव पर आचार्य बालकृष्ण ने अपनी सहमति भी दे दी है। अब हरिद्वार में 2021 में आयोजित होने वाले महाकुंभ के दौरान आचार्य बालकृष्ण पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी से विधिवत जुड़ जाएंगे। इससे पहले अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि शुक्रवार को योग गुरु स्वामी रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण का हालचाल पूछने पतंजलि योगपीठ हरिद्वार पहुंचे थे। नरेंद्र गिरि के मुताबिक, अखाड़ों में धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए महामंडलेश्वर बनाए जाने की परंपरा रही है। कुंभ के दौरान या शुभ मुहूर्त में पट्टाभिषेक कर साधु-संतों की मौजूदगी में महामंडलेश्वर की पदवी दी जाती है।
शिक्षा और संस्कार के आधार पर मिलता है पद
बता दें कि, सनातन परंपरा में संन्यासी बनना सबसे कठिन होता है। शिक्षा, ज्ञान और संस्कार के साथ सामाजिक स्तर को ध्यान में रखते हुए संन्यासी को महामंडलेश्वर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर बिठाया जाता है। महामंडलेश्वर अखाड़ों का अंग होते हैं और अखाड़ों को सनातन धर्म की रक्षा करने वाले नागा संन्यासियों के संगठन के रूप में जाना जाता है। साधारण संत को महामंडलेश्वर जैसे पद पर पहुंचने में वर्षो लग जाते हैं। पहले साधु-संतों की मंडलियां चलाने वालों को मंडलीश्वर कहा जाता था।
निजी जीवन की होती है पड़ताल
महंत नरेंद्र गिरि ने बताया कि, ऐसे महापुरुष जिन्हें वेद और गीता का अध्ययन हो, उन्हें बड़े पद के लिए नामित किये जाने की परंपरा रही है। संन्यासी परंपरा से होना चाहिए और उसने वेद का अध्ययन भी किया हो। उसका चरित्र, व्यवहार और ज्ञान का स्तर अच्छा होना चाहिए। इसके साथ ही महामंडलेश्वर की पदवी के लिए अखाड़ा कमिटी भी निजी जीवन की पड़ताल करती है और पूरी तरह से संतुष्ट होने पर ही उसे महामंडलेश्वर बनाया जाता है।