नीमच
राज्य सरकार से फसल बीमा (Crop insurance) का मुआवज़ा (compensation) नहीं मिलने और केंद्र सरकार द्वारा जारी नई अफीम नीति (opium policy) से किसानों (farmer) की नाराज़गी के चलते फिर मालवा सुलगने की राह पर है. आए दिन किसान ज्ञापन और धरना दे रहे हैं. माहौल को देखते हुए लगता है, यदि सरकारों ने किसानों के मामलों पर गंभीरता से नहीं सोचा तो मालवा में 2016 जैसे हालात बन जाएंगे.
गौरतलब है कि नीमच में आई बाढ़ के बाद करीब एक लाख 25 हज़ार हेक्टेयर में लगी सोयाबीन और करीब 32 हज़ार हेक्टेयर में लगी चना, उड़द और मूंग की फसल तबाह हो गई, लेकिन इन किसानों को अभी तक न तो मुआवजा मिला न ही फसल बीमा की राशि ही मिली है. साथ ही कर्ज माफी का काम अधर में लटकने से किसानों में जमकर गुस्सा है.
इस मामले में किसान नेता अर्जुन सिंह बोराना कहते हैं कि प्रदेश की कमलनाथ सरकार की कर्जमाफी छलावा साबित हुई है, जसके चलते कई किसान आज बैंकों में डिफाल्टर घोषित हो चले हैं. ऐसे में किसानों को बीमे तक का लाभ नहीं मिल पाया है. वहीं केंद्र सरकार की नई अफीम नीति से भी किसान खुश नहीं है. किसानों को लगता है कि दोनों ही मामलों में सरकार किसानों के हित में नहीं सोच रही है.
किसानों में खासा आक्रोश है और जल्द मुआवजा, बीमा राशि और कर्जमाफी को लेकर MP सरकार और अफीम नीति पर केंद्र सरकार विचार नहीं करती है तो किसानों को आंदोलित होकर सड़क पर आना पड़ेगा. अधूरी कर्जमाफी, मुआवजा और फसल बीमा नहीं मिलने से नाराज किसानों को नई अफीम नीति ने और अधिक आक्रोशित कर दिया है.
ऐसे में किसान मांग कर रहे हैं कि पट्टा औसत के पुराने नियम के आधार पर दिया जाएं और केंद्र सरकार नीति में परिवर्तन करे. अफीम किसान मोहन नागदा कहते हैं कि किसान कैसे पता करें कि अफीम में कितनी मॉर्फिन है और अफीम में मॉर्फिन का पर्सेंटेज कम या ज्यादा किसान के हाथ में नहीं, कुदरत के हाथ में है. वहीं इस मामले में भाजपा प्रदेश कार्य समिति के सदस्य करण सिंह परमाल कहते हैं कि किसान कमलनाथ सरकार को सबक सिखाने के लिए तैयार है और जल्द कोई आंदोलन इसके लिए खड़ा होगा जबकि कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष राजकुमार अहीर कहते हैं कि नई अफीम नीति किसान विरोधी है. केंद्र सरकार किसानों की दुख की घड़ी में मदद को तैयार नहीं है.