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सीरिया में कुर्द-असद सरकार के समझौते से अमेरिका ने कर दी रूस की मदद

 
इदलिब

रविवार की देर रात कुर्दिशों के नेतृत्व में सीरियन डेमोक्रैटिक फोर्सेज (एसडीएफ) ने सीरिया की बशर अल असद सरकार से समझौता किया। समझौते के तहत सीरिया की संप्रभुता की रक्षा के बात पर दोनों दल सहमत हो गए। डील के तहत समझौता किया गया है कि देश के उत्तर-पूर्वी इलाके में सोमवार को तुर्की के आक्रमण को रोका जाएगा और इसमें सीरियन अरब फोर्स साथ देंगे। हालांकि, इन सबके बीच एक दिलचस्प स्थिति यह है कि सीरिया में एक तरह से रूस को अमेरिका का साथ मिल गया है।

इन सबका क्या है महत्व?
सीरिया में बशीर-अल-असद सरकार को रूस का समर्थन है और अमेरिका असद सरकार की घोर विरोधी है। आतंकी संगठन आईएस के खिलाफ जंग में कुर्दों ने अमेरिका का साथ दिया और अभी तक वह अमेरिका के प्रति ही वफादार रहे हैं। अब कुर्दों ने असद सरकार से समझौता कर लिया है और इस तरह से उन्होंने रूस से भी हाथ मिला लिया है।

रूस और ईरान की बदौलत ही बची रही असद की कुर्सी
रूस के समर्थन और ईरान के सहयोग के बदौलत ही सीरिया में असद सरकार गृहयुद्ध के बाद भी बनी रही। 2011 में बशीर-अल-असद के खिलाफ शुरू हुए संघर्ष के बाद भी वह अपनी सत्ता बचाए रखने में कामयाब हो सके। अमेरिका ने इस संघर्ष में असद के खिलाफ संघर्ष करनेवाले लड़ाकों का साथ दिया था। नॉर्थ ईस्ट सीरिया से डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने का आदेश दिया। कुर्दों के पास अब तक अमेरिका का संरक्षण था, लेकिन अमेरिकी सैनिकों की वापसी के कारण उनकी स्थिति कमजोर हो गई। इसी परिस्थिति में तुर्की ने कुर्दों पर आक्रमण कर दिया और अब अपने अस्तित्व की लड़ाई में कुर्दों ने पाला बदल लिया है।

कुर्दों के पाला बदलने का क्या होगा प्रभाव
सीरियन आर्मी और तुर्की समर्थित तुर्की-सीरियन नैशनल आर्मी के साथ रूस के प्रेजिडेंट व्लादिमिर पुतिन के हाथों में अब सीरिया की कमान है। ध्यान देने की बात है कि तुर्की समर्थित सीरियन नैशनल आर्मी सीरिया की राष्ट्रीय सेना नहीं हैं। अब तुर्की और रूस के बीच विश्लेषकों को किसी बड़े डील की संभावना नजर आ रही है। पुतिन के पास एसडीएफ का समर्थन है और इस परिस्थिति में रूस मजबूत स्थिति में है। रूस की मजबूत स्थिति को देखते हुए ही तुर्की के प्रेजिडेंट रेचप तैयप एर्दोगान ने पिछले साथ पुतिन के साथ सीरिया में एक असैन्य क्षेत्र की स्थापना का समझौता किया था। एक बार फिर दोनों ही शीर्ष नेताओं ने मतभेदों के बाद भी एक-दूसरे के साथ रहने और समझौते के संकेत दे दिए हैं।
 
एर्दोगान और पुतिन के समीकरण भी रहे हैं अच्छे
तुर्की नाटो का सदस्य देश है और अमेरिका के बाद नाटो का सबसे बड़ा सदस्य देश है। हालांकि, पिछले कुछ वक्त में तुर्की और अमेरिका के बीच दूरी साफ दिखने लगी है। इस कारण से भी रूस और तुर्की एक-दूसरे के काफी करीब आ गए हैं। अमेरिका से खिंचाव ने पुतिन और एर्दोगान को समझौतों और आपसी सहयोग के लिए प्रेरित किया है। रूस से तुर्की ने S400 मिसाइल शील्ड की खरीदारी की है। अब रूस अपनी मजबूत स्थिति को ध्यान में रखकर तुर्की के साथ समझौता कर सकता है। रूसी मामलों के एक जानकार ने भी एपी से बातचीत में ऐसी उम्मीद जताते हुए कहा, 'वॉशिंगटन के तीखे तेवर, यूरोपियन यूनियन की प्रतिक्रिया और कई तरह के प्रतिबंधों की आशंका के कारण मॉस्को और अंकारा एक-दूसरे के और करीब आएंगे।' ऐसी परिस्थितियां एर्दोगान को रूस के जरिए बशीर-अल-असद के साथ समझौते के लिए प्रेरित करेगी।

ईरान के साथ रूस के समीकरण, सऊदी फिर भी पुतिन के साथ
सोमवार को व्लादिमिर पुतिन सऊदी अरब की यात्रा पर पहुंचे हैं। पुतिन की इस यात्रा के टॉप अजेंडे पर तेल और ईरान के साथ सऊदी का विवाद है। सीरिया में ईरान और रूस के एक साथ होने के समीकरणों को जानते हुए भी सऊदी अरब ने पुतिन का वेलकम किया है। रूस के साथ सऊदी अरब आर्थिक भागीदारी कर रहा है। सऊदी को भी इसका अहसास है कि ओपेक+ ग्रुप में रूस एक महत्वपूर्ण साझीदार बन सकता है।
 

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