मध्य प्रदेश

66 फीसदी फसल मंडी नहीं पहुंचने से हो रहा दो हजार करोड़ के कर का नुकसान

भोपाल
बिचौलियों और व्यापारियों की वजह से सरकार को मंडी से मिलने वाले करों में करीब दो हजार करोड़ का नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस स्थिति से निपटने के लिए अब नाथ सरकार प्रदेश के सभी किसानों को मंडी से जोडऩे के मॉडल पर गंभीरता से विचार कर रही है। दरअसल प्रदेश में पैदा होने वाली फसल का एक तिहाई हिस्सा ही बिक्री के लिए मंडी तक पहुंच रहा है। उत्पादन का बाकी हिस्सा व्यापारी सीधे किसान से खरीद रहे हैं, जिससे न तो किसान को उसकी फसल का उचित मूल्य मिल पा रहा है और न ही सरकार के पास मंडी टैक्स के रूप में राजस्व आ रहा है। सरकार को लगता है कि व्यवस्थाओं में थोड़ा सुधार और बदलाव कर एक पंथ दो काज किए जा सकते हैं। मंडी से होने वाली दो हजार करोड़ की अतिरिक्त आय से किसानों को अधिक सब्सिडी दी जा सकती है, नई योजनाएं शुरू की जा सकती हैं और अलग-अलग जगह प्रोसेसिंग सेंटर भी खोले जा सकते हैं।

सरकार किसानों को मंडी तक लाने के लिए कई उपाय कर रही है। व्यापारियों के लिए ई-अनुज्ञा लागू करने से किसानों की मंडी में आवक बढ़ी है। प्रदेश की 80 मंडियों में फसल की ग्रेडिंग और शॉर्टिंग की व्यवस्था की जा रही है। सरकार मानती है कि किसानों की फसल की वैज्ञानिक तरीके से ग्रेडिंग के आधार पर फसल का मूल्य देना पड़ेगा।

पिछले पांच साल के फसल उत्पादन और मंडी में बिक्री का रिकॉर्ड देखें तो प्रदेश में सालाना औसतन दो लाख करोड़ मूल्य का उत्पादन होता है, लेकिन मंडी में बिकने के लिए आधे से भी कम फसल जाती है। मंडी टैक्स के रूप में सरकार को औसतन एक हजार करोड़ की आय होनी चाहिए। इस तरह सरकार सीधे-सीधे दो हजार करोड़ का सालाना घाटा सह रही है।

  • साल 2014-15 में मंडी से 49919 करोड़ की फसल की बिक्री हुई, जिससे सरकार को मंडी टैक्स के रूप में 998 करोड़ की आय हुई।
  • साल 2015-16 में 53721 करोड़ की बिक्री पर मंडी टैक्स के जरिए सरकार ने 1074 करोड़ रुपए की कमाई की।
  • साल 2016-17 में 56347 करोड़ का मंडी में विक्रय हुआ जिस पर मंडी टैक्स के रुप में सरकार को 1126 करोड़ की आय हुई।
  • साल 2017-18 में 62764 करोड़ का व्यापार हुआ, जिसमें 1255 करोड़ मंडी टैक्स के रूप में राजस्व आया।
  • साल 2018-19 में 71766 करोड़ की फसल का विक्रय मंडी में हुआ, जिससे 1237 करोड़ मंडी टैक्स से सरकार ने कमाए।

कृषि विशेषज्ञ केदार सिरोही कहते हैं कि व्यापारी किसान के घर से ही फसल खरीद कर ले जाते हैं, जिससे किसान का परिवहन बचता है और उसको नकद पैसे मिलते हैं। दूसरा कारण है कि किसान की फसल का मंडी में एफएक्यू के नाम पर व्यापारी कम दाम लगाते हैं, जिससे किसान का नुकसान होता है और तीसरा कारण है कि व्यापारी मंडी के बाहर फसल का सौदा कर लेते हैं, जिससे मंडी टैक्स देने से वो बच जाते हैं। सिरोही कहते हैं कि सरकार किसानों को मंडी तक निशुल्क परिवहन व्यवस्था उपलब्ध कराए और मंडी के बाहर खरीदी पर पाबंदी लगे तो इसका व्यापक असर दिख सकता है।

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