मध्य प्रदेश

25-30 सालों की नौकरी, अब भी मिल रहा 10-12 हजार रुपए वेतन

BHEL management and central leaders of unions will decide the future of BHEL employeesthousand rupees salary

1600 रुपए की कटौती, भेल ठेका श्रमिकों को भरण-पोषण करना हो रहा मुश्किल
25-30 years job, still getting 10-12 thousand rupees salary: भोपाल. भेल में कार्यरत 1200 सोसाइटी श्रमिकों की ज्वलंत समस्याओं को लेकर भेल ठेका मजदूर संघ ने शुक्रवार को कार्यपालक निदेशक के नाम पांच सूत्रीय मांगों का ज्ञापन भेजकर निराकरण किए जाने के लिए समय मांगा है। समय नहीं देने और मांगों का निराकरण नहीं किए जाने पर संघ ने आंदोलन की बात कही है।

बता दें कि विगत कई वर्षों से ठेका मजदूर संघ ठेका श्रमिकों की ज्वलंत समस्याओं को लेकर संघर्षरत है। फरवरी 2021 से कोरोना का बहाना बनाकर भेल प्रबंधन ने 1600 सौ रुपए प्रति माह की कटौती की गई है, जो कि आज तक लगातार जारी है। यह कटौती से बीते दो साल में इन दिहाड़ी मजदूरों का करीब 45000 रुपए का नुकसान अब तक हो चुका है। ठेका मजदूर संघ भोपाल से लेकर भेल कार्पोरेट कार्यालय दिल्ली तक श्रमिकों के वेतन से की जा रही 1600 रुपए की कटौती को बंद करवाने के साथ ही एरियर्स सहित राशि दिलवाने का प्रयास कर चुकी है, लेकिन अब तक मामले का समाधान नहीं हो पाया।

30 साल की नौकरी में भी 12 हजार वेतन
भेल प्रबंधन मजदूरों के संबंध में मनमर्जी का निर्णय लेती आ रही है। वर्ष 2014 से भेल प्रबंधन ने ठेका श्रमिकों का वेज रिवीजन नहीं किया। भेल नवरत्न कंपनियों में शुमार होने के बाद भी विगत 25-30 वर्षों से कार्यरत ठेका श्रमिक खुद को ठगा महसूस कर रहा हैं। इतने लम्बे समय तक सेवा देने के बाद भी 10-12 हजार रुपए प्रति माह वेतन पा रहे हैं। वहीं एम्स भोपाल में कार्यरत ठेका श्रमिकों को करीब 25000 रुपए प्रति माह वेतन मिल रहा है। ऐसे में भेल प्रबंधन सरेआम मजदूरों का शोषण करती आ रही है।

स्थायी कर्मचारियों को एरियर्स सहित भुगतान
बता दें कि कोरोना काल में भेल के स्थाई कर्मचारियों का भी वेतन काटा गया था, जिसे भेल प्रबंधन ने एरियर्स सहित पूरा वेतन वापस कर दिया है। भेल में कार्यरत ठेका श्रमिकों की समस्याओं का समाधान कराने और उनका हक दिलाने में भेल कारखाने में स्थाई कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली यूनियनें भी नतमस्तक दिखाई दे रही हैं। यूनियनें सिर्फ अपना वजूद बनाए रखने के लिए दिखावा करते हुए गेटों पर हो हल्ला करती हैं और फिर चुक होकर दबड़े में बैठ जाती हैं।

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