रांची
झारखंड इस वक्त डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है। हर साल 300 डॉक्टर्स तैयार करने वाले झारखंड को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित प्रति हजार मरीजों पर एक डॉक्टर के अनुपात तक पहुंचने में करीब 87 साल लग जाएंगे। मेडिकल काउन्सिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है।
झारखंड की आबादी इस वक्त करीब 3 करोड़ 25 लाख की है। वहीं डॉक्टरों की संख्या 10 हजार है। डबल्यूएचओ के मानक के अनुसार 22 हजार 500 से अधिक डॉक्टरों की कमी है। हमारे सहयोगी टीओआई ने कई सारे डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों से बात की, जिन्होंने योजना में कमी और बजट के अनुसार राशि के आवंटन को स्वास्थ्य विभाग की खराब दशा के लिए जिम्मेदार ठहराया।
'बेहतर हॉस्पिटल और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से दूसरी जगह मूव कर रहे डॉक्टर'
राजेन्द्र इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) में सीनियर प्रफेसर डॉक्टर ए.के. वर्मा ने बताया, 'अगर आपको यह जानना है कि स्थिति कितनी खराब है तो आप केवल राज्य में मेडिकल संस्थानों की गिनती कर लीजिए जो यहां पर आजादी के बाद से बने हैं।' सरकारी और प्राइवेट दोनों ही स्तर पर बेहतर हॉस्पिटल और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी की वजह से छात्र दूसरी जगहों पर मूव कर जाते हैं।
बड़ी संख्या में प्रशासनिक पदों पर हो रही डॉक्टरों की नियुक्ति भी बनी कमी की वजह
झारखंड आईएमए सचिव डॉक्टर प्रदीप सिंह ने बताया, 'राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं में करीब 1500 डॉक्टर्स शामिल हैं। यह संख्या जरूरी क्षमता से काफी नीचे है। स्थिति तब और भी खराब हो गई, जब 200 से अधिक डॉक्टरों को प्रशासनिक पदों पर नियुक्त कर दिया गया। इससे डॉक्टरों की कमी हो गई।'
रिम्स के डायरेक्टर डी. के. सिंह ने कहा, 'झारखंड में पोस्टग्रैजुएट कोर्स में सीटों की कमी भी डॉक्टरों की कमी की एक वजह है। दूसरे राज्यों से आकर रिम्स में पढ़ाई करने वाले छात्र अपने प्रदेश जाकर पढ़ाई करने पर जोर देते हैं, जहां बेहतर सुविधाएं हैं।'