अहमदाबाद
गुजरात के अहमदाबाद में रेप के प्रयास का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां दो नाबालिग लड़कियों के खिलाफ नाबालिग से ही रेप के प्रयास का मामला दर्ज हुआ है। हालांकि दोनों आरोपी नाबालिग लड़कियों को बाद में रिहा कर दिया गया क्योंकि पीड़िता मानसिक रूप से अस्वस्थ है और इसलिए पॉक्सो कोर्ट के सामने गवाही नहीं दे सकी।
घटना जून 2017 में अहमदाबाद के ओढव स्थित एक महिला शेल्टर होम के अंदर स्थित लड़कियों के लिए बालगृह की है। 22 जून 2017 में एक लड़की ने बालगृह अधीक्षक से शिकायत की थी कि वहां मौजूद उसकी तीन साथी कपड़े बदलते वक्त उसके साथ छेड़खानी करती हैं। पीड़िता ने अपनी शिकायत में कहा कि आरोपी लड़कियां उसके प्राइवेट पार्ट्स पर उंगली करती हैं और छेड़खानी करती हैं। पीड़िता ने आरोप लगाया कि आरोपियों ने उसके साथ पहले भी छेड़खानी की और चुप रहने को कहा।
घटना के वक्त आरोपी 17 साल की थीं
शेल्टर होम अधिकारियों ने मामले की जांच की और महिला पुलिस थाने (पूर्वी) में तीन में से दो नाबालिग लड़कियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई जो उस वक्त 17 साल की थीं। पुलिस ने दोनों के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के साथ पॉक्सो की धाराएं लगाईं क्योंकि पीड़िता भी नाबालिग थी। इनमें से एक आरोपी को वडोदरा बालगृह भेज दिया गया।
164 के तहत पीड़िता का बयान दर्ज
दोनों में एक को जमानत मिल गई जबकि एक को नहीं मिली क्योंकि उसके खिलाफ पहले भी शेल्टर होम में यौन उत्पीड़न की शिकायतें आ चुकी हैं। सेशन कोर्ट में मौजूद पॉक्सो कोर्ट में दोनों आरोपियों को पेश किया गया। इस दौरान सामने आया कि पीड़िता स्किट्सफ्रीनिया से पीड़ित है। यह एक ऐसी दशा होती है जिसमें मरीज को ऐसी चीजें दिखाई और सुनाई देती हैं, जो हकीकत में होती ही नहीं। इसलिए पीड़िता का बयान सेक्शन 164 सीआरपीसी के तहत मैजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराया गया जिसे कोर्ट में गवाही के रूप में पेश किया गया।
मानसिक रूप से अस्वस्थ है पीड़िता
ट्रायल के दौरान बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि पीड़िता मानसिक रूप से अस्वस्थ है और उसे जब भी स्किट्सफ्रीनिक अटैक आते हैं तो मेंटल हॉस्पिटल में भर्ती कराया जाना चाहिए। ट्रायल पूरा होने के बाद अडिशनल जज पीसी जोशी ने 16 जनवरी को दोनों आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट का कहना है कि सबूतों का आकलन करने के बाद स्पष्ट हुआ कि पीड़िता मानसिक बीमारी से पीड़ित है और एक भी वाक्य सही से नहीं बोल सकती है।
मामले में कई सारे विरोधाभास
मेडिकल सर्टिफिकेट में भी कहा गया कि पीड़िता कोर्ट में गवाही नहीं दे सकती थी इसलिए धारा 164 के तहत उसका बयान दर्ज कराया गया। उसके बयान में आरोपी का नाम नहीं था और न ही यह स्पष्ट था कि आरोपियों ने उसके साथ क्या किया। अभियोजक वकील भी यह साबित नहीं कर सके कि पीड़िता की उम्र 18 से कम थी और इसलिए केस में कई सारे संदेह पैदा हो गए।